Brahmin Welfare Board: ब्राह्मण, एक ऐसा समुदाय, जिसे आप एक साँचे में नहीं ढाल पाएंगे। ये कब क्या कर सकते हैं, कई बार इन्हे स्वयं भी आभास नहीं होता। इनका योगदान हमारे समाज में अद्वितीय है, और इसी को भाँपते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने एक ऐसा दांव चला है जो आने वाले समय में इनका भाग्य हमेशा के लिए बदल सकता है।
इस लेख में जानिये एमपी सरकार द्वारा (Brahmin Welfare Board) ब्राह्मण वेल्फेयर बोर्ड के गठन के निर्णय से, जो आने वाले विधानसभा चुनावों हेतु वर्तमान एमपी प्रशासन के लिए लाभकारी भी सिद्ध होगा ।
परशुराम जयंती पर क्रांतिकारी निर्णय
हाल ही में मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक क्रांतिकारी निर्णय लिया है। परशुराम जयंती के उपलक्ष्य पर आयोजित कार्यक्रम में सीएम ने कहा कि हमने निर्णय लिया है कि मंदिरों की गतिविधियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा। साथ ही अब मंदिरों से लगी जमीनों की नीलामी कलेक्टर नहीं कर सकेंगे। बल्कि इन जमीनों की नीलामी अब मंदिर से जुड़े पुजारी कर पाएंगे।
बता दें कि राज्य में लंबे समय से यह मांग की जा रही थी कि मंदिरों में प्रशासन का दखल बंद किया जाए और पुजारियों को उनका हक दिया जाए। वहीं, अब उनकी मांग को पूरा कर दिया गया है। सीएम ने सभा में ब्राह्मण कल्याण बोर्ड बनाने की भी घोषणा की है। उन्होंने यह भी कहा कि ब्राह्मणों ने हमेशा धर्म और संस्कृति की रक्षा की है, इसलिए उनके कल्याण के लिए हम ‘ब्राह्मण कल्याण बोर्ड’ (Brahmin Welfare Board) की स्थापना करेंगे।
परशुराम जयंती पर आयोजित इस कार्यक्रम में चर्चित कथावाचक धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री भी मौजूद थे। सीएम ने Brahmin Welfare Board की स्थापना करने से पहले उन्होंने कहा था, “एक बात और महाराज जी (धीरेंद्र शास्त्री) ने कही है ब्राह्मणों ने हमेशा धर्म की रक्षा की है। अगर आप देखेंगे तो हम सबको बहुत गर्व होता है और यह कहते हुए कि ब्राह्मण धर्म-अध्यात्म, ज्ञान-विज्ञान, योग-आयुर्वेद, परंपरा और संस्कृति को संरक्षित करने का काम करते हैं।
ब्राह्मणों ने यज्ञों, हवनों, शस्त्र-शास्त्रों, सब को सुरक्षित रखने का काम किया है। ऐसे कितने विद्वान हैं…वेदव्यास जी महाराज ने महाभारत लिखी, तुलसीदास जी ने रामायण लिखी, हर क्षेत्र में ऐसे विद्वान हैं और इसलिए हमारे धर्म के रक्षक हैं उनके कल्याण के लिए ब्राह्मण कल्याण बोर्ड की स्थापना की जाएगी”।
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Brahmin Welfare Board का क्या असर पड़ेगा?
इस निर्णय से भारतीय संस्कृति एवं राजनीति में क्या व्यापक परिवर्तन हो सकता है, इसका कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता। कुछ ही माह पूर्व कर्नाटक सरकार ने भी एक क्रांतिकारी निर्णय में मंदिरों का स्वामित्व अपने हाथों से स्थानांतरित कर मंदिर के पुजारियों के हाथों में दे दिया।
तो क्या ये निर्णय चुनावी लाभ के परिप्रेक्ष्य से लिया गया है? हो भी सकता है और नहीं भी। ऐसा इसलिए क्योंकि 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुआ था, तो सबसे बड़ा मुद्दा था एससी/एसटी एक्ट में संशोधन और इससे उत्पन्न सवर्ण वर्ग, विशेषकर ब्राह्मणों में आक्रोश था । उनकी सबसे बड़ी आपत्ति थी कि इस अधिनियम से ब्राह्मणों एवं ठाकुरों पर अत्याचार और बढ़ेंगे, और हुआ भी वही। ऐसे में ये एक संभव कारण है, जिसके पीछे मंदिरों का स्वामित्व ब्राह्मणों के हाथों में दिया जा रहा है। परंतु कर्नाटक में तो ऐसा नहीं हुआ था, तो वहाँ ऐसा निर्णय क्यों लिया गया
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एक नए युग का आरंभ
असल में मंदिरों को सरकार के नियंत्रण से छुड़ाने हेतु व्यापक स्तर पर आंदोलन एवं प्रदर्शन देशभर में आयोजित किये जा रहे हैं। ऐसे में मंदिरों का स्वामित्व पुजारियों के हाथ में पुनः केवल समय की मांग, भारतीय संस्कृति के हित में एक नैतिक कर्तव्य भी है।
इतना ही नहीं, भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान हेतु ये अवश्यंभावी है कि भारत को सांस्कृतिक रूप से और अधिक सशक्त बनाया जाए। इस कार्य में पहले से ही गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, असम जैसे राज्य सक्रिय रूप से लगे हुए हैं, और मध्यप्रदेश बिल्कुल नहीं चाहेगा कि इस एक कार्य में वह पीछे छूट जाए।
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