Sachin Pilot Fast: न हरा सकते हैं न डरा सकते हैं, पायलट खाली टिरटिरा सकते हैं!

मजबूरी का नाम सचिन पायलट....

Sachin Pilot Fast

Defiant Sachin Pilot Holds Fast: कभी शेक्सपियर ने कहा था, नाम में क्या रखा है? व्हाट्स इन ए नेम? भई बहुत कुछ रखा है, सभी नाम सब पे नहीं सूट करते । जैसे सचिन नाम रखने से सब कीर्तिमान ध्वस्त करने में विशेषज्ञ नहीं हो जाते। कभी कभी आपकी हालत सचिन पायलट जैसी भी हो जाती है, जो न घर के रहेंगे, न घाट के।

इस लेख में मिलिये पढिये कि कैसे सचिन पायलट ने अपनी ऐसी दुर्गति की है, कि कांग्रेस तो छोड़िए, अब तो भाजपा भी उन्हे गंभीरता से नहीं लेता।

Defiant Sachin Pilot Holds Fast: पुनः अनशन पे पायलट

हाल ही में सचिन पायलट पुनः चर्चा का केंद्र बने हुए हैं, और इस बार भी गहलोत से विवाद (Defiant Sachin Pilot Holds Fast) के कारण। राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरुद्ध पुनः मोर्चा खोलते हुए पायलट ने सीएम गहलोत पर भाजपा नेताओं के साथ साठगाँठ करने और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को बचाने का आरोप लगाया है।

पायलट ने कहा कि कॉन्ग्रेस सरकार भ्रष्टाचार को लेकर जो कहती है, वह करके दिखाती है। उन्होंने कहा कि जब राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सरकार बनी थी तो भ्रष्टाचार को लेकर कई बातें कही गई थी, लेकिन उन पर अभी कार्रवाई नहीं की गई है।

इसके अतिरिक्त पायलट ने ये भी कहा कि जब वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी तो भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए थे। इसको लेकर अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जन-जन तक बात पहुँचाई थी। उस दौरान कॉन्ग्रेस ने वादा किया था कि पार्टी सत्ता में आती है तो भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। इसका यह परिणाम हुआ कि 2018 में वसुंधरा की सरकार बदल गई।

तो फिर समस्या क्या है? उन्होंने कहा कि सवा साल पहले उन्होंने सीएम गहलोत को चिट्ठी लिखी थी और वादों के अनुसार भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करने की बात कही। उन्होंने कहा कि उस वक्त उन्होंने कहा था कि साढ़े तीन साल हो गए लेकिन खान माफिया, भूमाफिया, शराब माफिया, ललित मोदी सहित किसी भी भ्रष्टाचारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई।

पायलट ने कहा कि उनकी चिट्ठी का कोई जवाब नहीं आया। उन्होंने कहा कि यह चिट्ठी उन्होंने पार्टी को भी लिखी थी, लेकिन पार्टी की तरफ से भी कोई जवाब नहीं आया। अब 6-7 महीने बचे हैं, उसके बाद जनता के बीच जाना पड़ेगा। उन्होंने कहा इससे पहले कुछ कार्रवाई हो जानी चाहिए।

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पहले भी कर चुके हैं प्रयास

परंतु आपको क्या लगता है, सचिन पायलट का गुस्सा अब निकलके बाहर आया है? बिल्कुल नहीं, ये महोदय पहले भी ऐसे स्टंट बारम्बार कर चुके हैं, परिणाम निल बट्टे सन्नाटा ही क्यों न हो। इससे पूर्व में भी सचिन पायलट गहलोत सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल चुके हैं। परंतु अंत में परिणाम वही हुआ : खोदा पहाड़, निकला चुहिया।

ऐसा क्यों? सचिन पायलट वो प्राणी है जिन्हे अवसर भी मिला था, और समर्थन भी, परंतु न जाने कौन सी ऐसी विवशता है कि वे चाहकर भी अपनी आक्रामकता में वो कदम नहीं उठा पाए, जिसके पीछे आज ज्योतिरादित्य शिंदे [सिंधिया] और एकनाथ शिंदे की जमकर चर्चा होती है।

“मजबूरी का नाम महात्मा गांधी” वाली कहावत को बदलकर इनके नाम पर करने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होंगी।

2018 में बहुमत सहित चुनाव जीतने पर सचिन पायलट को चुनाव जिताने और रणनीति कांग्रेस के लिए अनुकूल करने का मात्र यह प्रतिफल मिला कि उन्हें उप मुख्यमंत्री बनकर ही संतोष करना पड़ा।

इस दर्द को स्वयं में समेटे हुए पायलट चलते रहे। हालांकि 2020 में उनके यह दर्द विस्फोटक स्थिति में पहुंचकर फट गया। उस दौरान पायलट समर्थक विधायक सचिन पायलट के साथ रिज़ॉर्ट पॉलिटिक्स की शुरुआत करते हुआ बगावत पर उतर आए।

इस बगावत में कहां कमी रही यह तो पायलट ही बेहतर जानते होंगे, क्योंकि इस बगावत का कोई खास प्रभाव या पायलट खेमे के लिए कोई खास परिणाम बाहर नहीं आए। और तो और तब सचिन पायलट के हाथों से अध्यक्ष पद और उप मुख्यमंत्री की कुर्सी दोनों चली गई।

बात का सार यह निकला कि बगावत का एक प्रतिशत फायदा न पायलट उठा पाए और न ही उनके साथी। सारा का सारा लाभ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हुआ, जहां सचिन पायलट अब एक सामान्य विधायक बनकर ही रह गए।

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बेटा पायलट, तुमसे न हो पाएगा

सचिन पायलट के पक्ष में कई बार परिस्थितियाँ आई, परंतु हर बार वे उसका लाभ उठाने में फिसड्डी सिद्ध हुए। कई विधायक भी सचिन पायलट के नीचे काम नहीं करना चाहते। उनमें से कुछ का तर्क है कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करना जिसने कथित तौर पर पार्टी के विरुद्ध विद्रोह किया था।

राजस्थान सरकार में मंत्री अशोक चांदना द्वारा सचिन पायलट पर हालिया हमला यह भी दर्शाता है कि उन्हें (पायलट को) अभी और समर्थन जुटाने की आवश्यकता है। इसके अलावा राजस्थान में कांग्रेस के कई विधायक वरिष्ठ हैं, जो सचिन पायलट के अंडर में काम करने के लिए तैयार नहीं है।

बचपन में एक कहानी सुनी थी, “भेड़िया आया” वाली। उसका सार सरल पर स्पष्ट था : किसी समस्या का ऐसा भी बतंगड़ मत बनाओ कि जब वो समस्या वास्तव में उत्पन्न हो, तो लोग आप पर विश्वास करना ही बंद कर दे। इस समय सचिन पायलट (Defiant Sachin Pilot Holds Fast) की हालत भी उसी गड़रिये जैसी है, कि अगर वे वास्तव में गहलोत सरकार के विरुद्ध विद्रोह करते हैं, तो कोई भी उनपर विश्वास नहीं कर पाएगा।

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