“जय श्री राम” के नारे और कसाब का कलावा: सब एक ही है!

ये संयोग नहीं, सोचा समझा प्रयोग...

एक अपराधी को उसके भाई सहित पेशे पर लाया जाता है। अति उत्साही मीडिया उससे विभिन्न मुद्दों पर प्रश्नों के बुलेट दागती है। दोनों भाई जवाब दे ही रहे हैं कि सबके समक्ष, लाइव प्रसारण पे दोनों अपराधियों को गोलियों से भून दिया जाता है, और मारने वाले पकड़े जाने से पूर्व “जय श्री राम” का नारा लगाते हैं। ये प्लॉटलाइन सुना सुना सा नहीं लगता?

इस लेख में पढिये अतीक अहमद की मृत्यु के उपरांत लगाए गए नारों और उसके पीछे की प्रवृत्ति से, जो कोई संयोग नहीं है।

“जय श्री राम” के नारों ने बदल दिया खेल

हाल ही में प्रयागराज में मेडिकल परीक्षण के लिए ले जाते समय अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को कुछ हमलावरों ने गोलियों से भून दिया। तीनों आरोपी अविलंब हिरासत में लिया गए, और पूछताछ जारी है।

परंतु ये कौन थे, जिन्होंने लाइव कवरेज के समक्ष अतीक को गोलियों से भून दिया? अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ है, परंतु पुलिस द्वारा साझा जानकारी के अनुसार, लवलेश तिवारी, सनी सिंह और अरुण मौर्य नामक व्यक्तियों ने अतीक अहमद को प्रयागराज में अस्पताल परिसर के समक्ष गोलियों से भून दिया। कुछ लोगों के अनुसार ये आरोपी नशेड़ी थे, जबकि कुछ का यह मानना है कि ये फेमस होना चाहते थे, इसलिए इन्होंने अतीक को मार डाला। एक अनुमान ये भी लगाया जा रहा है कि इन्होंने एक साथ धावा बोला, परंतु पहली गोली अतीक पर लवलेश ने ही चलाई। अब वास्तविकता तो जांच के बाद ही सामने आएगी।

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परंतु चूंकि उक्त वीडियो में कथित तौर पर “जय श्री राम” के नारे लगाए गए, इसलिए एजेंडावादियों का हाल ऐसा था, मानो डूबते को तिनके का सहारा मिल गया। तुरंत टूट पड़े योगी प्रशासन पर हिन्दू आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए। क्या मीर फैसल, क्या मोहम्मद ज़ुबैर , सभी योगी प्रशासन, विशेषकर सीएम योगी को इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाने लगे। कुछ तो यहाँ तक दावा करने लगे कि इनके घरों पे बुलडोज़र नहीं चलेगा, क्योंकि ये एक विशिष्ट समुदाय से नहीं कहते।

2008 में भी ऐसा ही हुआ था….

परंतु आपको क्या लगता है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ? समय का चक्र घुमाइए, 2008 में जब देश पर 26/11 का दंश पड़ा, तो ये लोग क्या कर रहे थे? इनकी चली होती, तो ये सम्पूर्ण प्रकरण “आरएसएस की साजिश” घोषित हो जाता, जिसके लिए व्याख्यान से लेकर पुस्तकों तक की व्यवस्था हो चुकी थी।

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ऐसा क्यों? क्योंकि जितनी भी फोटो आतंकियों की सामने आई, जिसमें कसाब भी सम्मिलित था, उन सब में आतंकियों ने हिन्दू प्रतीक चिन्ह, जैसे कलावा पहना हुआ था। इन्होंने अपनी नकली आइडी भी बनवा रखी थी, जिससे मरने पे ये सिद्ध हो सके कि ये हिन्दू थे। अगर वीर हुतात्मा, एएसआई तुकाराम ओंबले ने एके 47 की बौछार के बावजूद कसाब को पकड़ा नहीं होता, और कसाब को जीवित हिरासत में नहीं लिया होता, तो सनातनियों पर एक ऐसा कलंक लग जाता, जिसे वर्षों तक धोने में कोई भी समर्थ नहीं हो पाता। तुकाराम ओंबले ने एक सम्पूर्ण संस्कृति को कलंकित होने से बचाया था।

ये प्रयोग अनदेखा नहीं जा सकता….

ऐसे में अतीक अहमद के मारे जाने के बाद अपराधियों ने “जय श्री राम” के नारे क्यों लगाए, इसपे अवश्य जांच बिठाई जानी चाहिए। राहत की बात यह है कि योगी प्रशासन ने अविलंब एक न्यायिक आयोग स्थापित की है, जिसे 2 माह में इस प्रकरण पर अपना निष्कर्ष निकालना है।

परंतु एक बात स्पष्ट है : यह प्रयोग अनदेखा नहीं जाना चाहिए, क्योंकि यदि एजेंडावादी अपने अभियान में सफल रहे, तो एक बार फिर बात हिन्दुत्व बनाम अन्य पे आएगी। जिस प्रकार से अपराधियों ने नारे लगाए, वह भी हड़बड़ी अधिक प्रतीत हो रही थी, परंतु इतनी सूक्ष्मता अगर एजेंडावादियों को समझ में आए, तो उनकी दुकान न बंद हो जाए? इसके अतिरिक्त ये बात भी स्पष्ट होती है कि अतीक अहमद ने ISI से अपने संबंध स्वीकारे थे, और ऐसे में ये बात अनदेखी नहीं जा सकती। इस बात पर योगी प्रशासन को अभी से अलर्ट मोड में आ जाना चाहिए।

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