कैसे अजय देवगन ने दीपक डोबरियाल को दिया उनके जीवन का सबसे यादगार रोल

गलत नहीं लड़े अजय देवगन!

“मुझे पता चला कि इस रोल के पीछे उनकी अपने क्रू से काफी विवाद हुआ। परंतु मेरे रोल के लिए वे अपनी इच्छा पे अड़े रहे। इस बात के लिए मेरे पास शायद ही कोई शब्द होंगे”।

ये बात दीपक डोबरियाल ने हाल ही में एक साक्षात्कार में साझा की, और यह रोल कोई और नहीं, “भोला” में प्रमुख विलेन यानि अश्वत्थामा का था, जिसके लिए अजय देवगन सबसे भिड़ने को तैयार थे।

इस लेख में पढिये दीपक डोबरियाल के अद्वितीय व्यक्तित्व को, और कैसे उनकी प्रतिभा को नकार नहीं सकता।

भोला में अपनी प्रतिभा से सबको चौंकाया

कुछ ही हफ्तों पूर्व प्रदर्शित “भोला” ने दर्शकों को अपनी ओर लुभाने में सफलता तो अवश्य प्राप्त की। जो फिल्म किसी दूसरे की रीमेक हो, और उसके विरुद्ध एक अलग ही प्रकार का अंधविरोध हो, तो ऐसे में केवल प्रतिभा के बल पर लोगों को थियेटर में आने के लिए आकृष्ट करना कोई मज़ाक नहीं।

तमिल क्लासिक “कैथी” पर आधारित इस फिल्म को अजय देवगन ने निर्देशित किया, और इसमें तब्बू से लेकर गजराज राव, किरण कुमार, विनीत कुमार जैसे कई प्रभावशाली अभिनेता थे। परंतु जिसने अजय देवगन के अतिरिक्त सबसे अधिक तालियाँ बटोरी, वह थे दीपक डोबरियाल। “कैथी” से तुलना तो स्वाभाविक थी, और जिस प्रकार से अर्जुन दास ने अंबु का वो रोल किया, उससे स्पष्ट था कि लोग दीपक डोबरियाल की भी तुलना करेंगे।

परंतु जैसे “दृश्यम” में विजय सलगांवकर और आईजी तरुण अहलावत की तनातनी ने दर्शकों को आकृष्ट किया, वैसे ही भोला और आशु के बीच का इक्वेशन भी लोगों को चौंका दिया। लोग दबे जुबान में ही सही, परंतु दीपक डोबरियाल के चरित्र की प्रशंसा कर रहे थे, जिसमें कहीं न कहीं अजय देवगन का विश्वास भी स्पष्ट था।

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1971 से “तनु वेड्स मनु” तक

परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है। दीपक डोबरियाल कोई ऐसे वैसे अभिनेता नहीं है। वे केके मेनन और विजय राज़ की श्रेणी वाले अभिनेता, जो अपने अभिनय के दम पर मरियल फिल्म में भी जान डाल दें।

प्रारंभ में दीपक डोबरियाल गंभीर भूमिकाओं में अधिक दिखते थे। लेकिन 2006 में “ओंकारा” में बतौर रज्जु तिवारी इन्होंने अलग ही छाप छोड़ दी, जिसके लिए इन्हे फिल्मफेयर स्पेशल पुरस्कार मिला। एक ही वर्ष बाद इन्होंने “1971” में बतौर फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुर्टू एक युद्धबंदी की भूमिका को ऐसा आत्मसात किया कि सब इनके रोल की आज भी तारीफ करते हैं। इसके बाद 2010 तक वे छोटी मोटी भूमिकाओं के माध्यम से अपना कार्य चलाते रहे।

परंतु सब कुछ बदला 2011 में, जब आनंद एल राय की फिल्म आई “तनु वेड्स मनु”। प्रमुख भूमिकाओं में वैसे तो आर माधवन और कंगना रनौत थे, और दोनों ने अच्छा काम भी किया, परंतु सबसे अधिक लाइमलाइट बटोरी दीपक डोबरियाल ने, जो बने थे डॉक्टर मनु शर्मा के कट्टर मित्र, पप्पी तिवारी। इस रोल ने मानो फिल्म का भाग्य तय कर दिया, और ये फिल्म न केवल स्लीपर हिट, अपितु 2015 में इसके सीक्वेल में भी दीपक ने अपना जादू पुनः चलाया। कुछ प्रशंसकों का मानना है कि पप्पी तिवारी पे एक अलग से फिल्म बननी चाहिए, जो दीपक की प्रतिभा को देखते हुए एकदम उचित भी प्रतीत होती है।

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इन्हे नकारा नहीं जा सकता

दीपक को अपनी प्रतिभा सिद्ध करने के कम ही अवसर मिले, पर जितने भी मिले, उनमें से 10 में से लगभग 8 अवसरों पर इन्होंने दमदार परफ़ॉर्मेंस दी। जो “प्रेम रतन धन पायो” जैसी फिल्म को भी झेलने योग्य बना सके, तो उस व्यक्ति में कुछ तो बात होंगी।

अभी “भेड़िया” में भी भी इन्होंने अपनी प्रतिभा का अद्वितीय परिचय दिया था। शीघ्र ही “सेक्टर 36” नामक फिल्म में वे एक धाकड़ पुलिस अफसर के रूप में दिखेंगे, जो संभवत: 2006 के निठारी हत्याकांड पर आधारित होगी। सच कहें तो दीपक वो हीरा, जो बॉलीवुड भूले से भी नहीं खो सकती।

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