प्रकाश राज : जहां का खाए, वहीं का उपहास उड़ाये

निर्लज्जता जिसके रग रग में है और जिसे देख अपशब्द भी मुंह मोड़ ले, वो प्रकाश राज....

कल्पना कीजिए कि जिस प्रोफेशन में आप हो, उसके एक भाग से आप जन जन में लोकप्रिय हो, परंतु उस प्रोफेशन का आभार प्रकट करने के बजाए आप उसी स्थान, उन्ही लोगों को अपशब्द कहो, जिनके कारण आप जन जन में लोकप्रिय हुए हो। आप भी सोचोगे, “पागल है क्या?” परंतु प्रकाश राज के लिए यही उनकी रोजी रोटी है।

इस लेख में जानिये प्रकाश राज को , जिनके प्रतिभा और ईगो में आकाश पाताल का अंतर है।

हिन्दी उद्योग से प्रसिद्ध होकर भी हिन्दी विरोधी

हिन्दी के प्रति तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में किस प्रकार से विरोध होता आया है, वो किसी से नहीं छुपा है और ये कोई नई बात नही. भाषाओं के आधार पर देश बांटने का और क्षेत्रीयता का परणेता कहलाने का स्टंट लंबे अरसे से चलता आ रहा है। इसमें अभिनेता भी अपना अपना हित साधने हेतु राजनीतिज्ञों की भांति रोटी सेंकते हैं।

अब आप सोचेंगे कि प्रकाश राज ने ऐसा क्या किया है? ये भाईसाब जहां का खाते हैं, वहीं को जद्द बद्द सुनाते हैं। जन्म से कन्नड़ और तमिल उद्योग से डेब्यू करने वाले प्रकाश राय [जिन्हे के बालाचन्दर ने “प्रकाश राज” बनाया] अपने क्षेत्रीय सिनेमा के लिए जाने जाते थे।

परंतु पहले “वॉन्टेड”, और फिर “सिंघम” में इनकी भूमिकाओं ने इन्हे अद्वितीय प्रसिद्धि दिलवाई। आज भी लोग गनी भाई और जयकान्त शिकरे को भूले नहीं है और ये तभी शायद हो पाया क्योंकि हिंदी पट्टी के लोगों ने भाषायी मूल भूलकर प्रकाश राज को वैसे ही स्वीकारा और सराहा जैसे की उस फिल्म के अन्य कलाकारों को, परतूं प्रकाश राज तो प्रकाश राज ठहरे अपनी कुंठा से परिपूर्ण ये मनुष्य कितना गिरा है इसका हिंदी विरोध ही प्रत्यक्ष प्रमाण है।

तो ऐसा क्या किया प्रकाश राज ने. अरे छोडिए भाई उसकी सूची बहुत लंबी है और हमारा और आपका समय बहुत सीमित।

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तो नया मामला क्या है जिससे प्रकाश राज सुर्खियों का कारण बना हुआ है। कुछ ही दिन पूर्व प्रकाश राज का एक पोस्ट वायरल हुआ, जहां ये एक टी शर्ट पहने थे। तो इसमें क्या गलत है? असल में उस टी शर्ट पर कन्नड़ भाषा में लिखा है, “ननगे हिन्दी बरल्ला! होगप्पा! [नहीं आती मुझे हिन्दी। अब निकल यहाँ से!]

तो मैं भी एक हिंदी भाषी होने के नाते प्रकाश राज को कहना चाहता हूं, कि भईया हमे आप और आपकी गिरी हुई मानसिकता पसंद नही है। इसलिए कृपा कर हिंदी स्क्रीन्स दिखना बंद करें।

परंतू प्रश्न तो अभी व्याप्त है

देखिए इसमें कोई दोहराय नही है कि हम देश के जिस प्रांत में पैदा हुए हैं या निवास करते हैं हमें वहां कि बोली भाषा और संस्कृति के प्रति एक सद्भाव रखते हुए उसे सीखना और समझना आवश्यक है। परंतू इसका ये तात्पर्य तो बिल्कुल नही कि अगर कोई मनुष्य अगर भाषा से अनिभिज्ञ है तो उसे बारमबार आड़े हाथ लेने लगे।

और विकृत मानसिकता वाला प्रकाशराज यही करता फिरता है और इसी को अपना धंधा पानी भी मानने लगा है।

हिन्दी तो हिन्दी, तेलुगु को भी नहीं छोड़ा

प्रकाश राज के हिंदू और हिंदी विरोध तो देखकर कहना कदापि गलत नही होगा कि अगर टुकड़े टुकड़े गैंग एक विश्वविद्यालय होता, तो प्रकाश राज उसके निर्विरोध डीन होते। इनकी हरकतों को देखकर कमल हासन और स्वरा भास्कर जैसे लोग भी बोल पड़ते, “मालिक, इतने दिन कहाँ थे?” इनकी हरकतों को देख एक बार को सिद्धार्थ सूर्यनारायण [हाँ, वही रंग दे बसंती वाले] भी सयाना लगे।

इसकी हरकतों को देखकर एक बार को ढोल का यह डायलॉग स्मरण हो आता है,

“चेहरा ऐसा भीषण कि ज़िंदगी तो क्या, नींद में भी कभी नहीं देखा। मगरमच्छ जैसी आँखें, गोंद से चिपचिपे बाल, नाक था कि पिचका हुआ टमाटर, याद नहीं। लेकिन होंठ उधेड़कर जब दांत बाहर निकालता है, तो बेवकूफ से बेवकूफ गधा भी सयाना लगे” ।

परंतु ये विरोध केवल हिन्दी तक सीमित नहीं है। प्रकाश राज वो व्यक्ति है जो हर जगह से लतिया और दुरदुराया जाता है, परंतु ढिठाई ऐसी है कि अपनी नौटंकियों से बाज़ न आएंगे। “कुछ भी करने का, मेरा ईगो नहीं हर्ट करने का” तो मानो इनके जीवन का मूल सिद्धांत है, और इसी अड़ियल रवैये के कारण तेलुगु फिल्म उद्योग ने इन्हे एक नहीं, पूरे छह बार इंडस्ट्री में काम करने से प्रतिबंधित किया। परंतु प्रकाश राज ऐसे हैं कि पुनः लार टपकाए दौड़े चले आते हैं। इनकी हिपोक्रेसी का कोई जवाब नहीं।

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“थाली में छेद करना” कोई इनसे सीखे

मोदी विरोध के नाम पर प्रकाश राज का जो मूड स्विंग होता है, उसे देखकर तो आधुनिक फेमिनिस्ट भी शर्मा जाएँ। ये व्यक्ति कभी विविधता में एकता की दुहाई देंगे, और फिर “जय भीम” में उसी विचार को तार तार करते हुए एक व्यक्ति के साथ केवल इसलिए बदतमीजी करेंगे, क्योंकि उसने हिन्दी में बात की। ये ऑस्कर में RRR की सफलता से प्रसन्न नहीं होते, अपितु इसलिए फुदकते हैं क्योंकि ऑस्कर ने “द कश्मीर फाइल्स” को नकार दिया, जिसे केवल नामांकन के लिए प्रमुख सूची में भेजा गया था।

कुछ वर्ष पूर्व जब संसद में अभिनेता रवि किशन फिल्म उद्योग, विशेषकर बॉलीवुड की बिगड़ती हालत पर प्रकाश डाल रहे थे, और इस बात के लिए चेता रहे थे कि बॉलीवुड की हेकड़ी उनके लिए अच्छी न होंगी, तो जया बच्चन ने उल्टा उन्ही को कोसते हुए कहा, “ये लोग जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं”। लेकिन प्रकाश राज की हरकतों को देखते हुए ऐसा लगता है कि जया बच्चन शायद गलत भी नहीं कह रही थी, बस निशाना उनका चूक गया था।

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