पूर्व में भारत था शिक्षा का वैश्विक केंद्र, और भविष्य में भी होगा

आपदा में अवसर इसी को कहते हैं!

New National Education Policy 2022 : कभी जब उच्चतम शिक्षा की बात होती है, तो मन में कहाँ जाने का विचार आता है? आप में से कई पट्ट से बोलेंगे : यूके ओर यूएसए। अमरीका, द यूएसए, क्योंकि ये देश अपनी उच्चतम शैक्षणिक व्यवस्था के लिए जाने जाते हैं। परंतु वर्तमान परिस्थितियाँ अब अमेरिका के पक्ष में कम, और भारत के पक्ष में अधिक है।

इस लेख में पढिये अमेरिका के विकृत होते शिक्षा तंत्र से, और कैसे इस त्रासदी को अवसर बनाकर भारत पुनः शिक्षा का वैश्विक केंद्र बन सकता है।

भारत की शैक्षणिक समृद्धि

“उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रैवश्च् दक्षिणम्

वर्षं तदभारतं नाम भारती यत्र संतति:।।”

भारतवर्ष की कीर्ति यूं ही नहीं चहुंओर फैली हुई है। जिसने संसार को गिनना सिखाया हो, जिसने गणित से लेकर चिकित्सा शास्त्र की रूपरेखा तय की हो, उस भारत के शैक्षणिक समृद्धि को नकारना अपने आप में हास्यास्पद है।

ग़ज़नवी आक्रान्ताओं के आने के पूर्व भारत केवल एशिया के लिए ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण संसार के लिए एक अद्वितीय शिक्षण केंद्र था, जिसने संसार में भारत की छवि “विश्वगुरु” के रूप में स्थापित की थी। आज जिस प्रकार से विद्यार्थी स्टैनफोर्ड, हावर्ड जैसे अमेरिकी शिक्षण केंद्र में भर्ती होने के लिए लालायित रहते थे, वैसे ही एक समय काशी से लेकर तक्षशिला, नालंदा इत्यादि में शैक्षणिक कोर्स हेतु भर्ती होने के लिए देश विदेश से लोग आते थे। ह्वेन सांग, फा हियान से लेकर मेगस्थिनीज़ जैसे विश्लेषक यूं ही भारत नहीं आए।

इतना ही नहीं, निरंतर आक्रमण के बाद भी भारत की शैक्षणिक व्यवस्था ऐसी थी कि भारतीयता की भावना को लोग मिटा ही नहीं पाए। परंतु अंग्रेज़ी अफसर थॉमस मैकाउले ने जिस प्रकार से हमारे शैक्षणिक तंत्र को ध्वस्त किया, उसका केवल एक ही लक्ष्य : पाश्चात्य संस्कृति एवं पाश्चात्य व्यवस्था को श्रेष्ठ सिद्ध करना।

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काहे की “पाश्चात्य सूप्रिमेसी”?

परंतु स्थिति आज ठीक विपरीत है। कभी अमेरिका और यूके के पीछे हमारे देश के विद्यार्थियों के साथ साथ लगभग सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप का किशोर वर्ग अमेरिका और यूरोप में अध्ययन करने हेतु लालायित रहते थे।

परंतु आज स्थिति इसके ठीक विपरीत है। कभी संसार को आगे की राह दिखाने का दावा करने वाला अमेरिका आज वह सब कुछ कर रहा है, जो प्रगतिवाद के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध हो, और उसे “प्रगतिवाद” का चोला ओढ़ाकर वैसे ही पेश कर रहा है, जिसके बारे में “1984” में जॉर्ज ऑरवेल ने भविष्यवाणी भी की थी।

स्थिति ऐसी है कि बड़े बड़े क्लासिक, जैसे “1984”, “टू किल ए मॉकिंगबर्ड” की मूल कथा तक बदल जी रही है, ताकि “कैंसल कल्चर” के पुरोधा आहत न हो। अपनी कुंठा में इन्होंने जेके रोलिंग तक को नहीं छोड़ा, और हालत यहाँ तक हो चुकी है कि Pedophilia जैसी जघन्य कृत्यों को भी यूएन द्वारा वैध ठहराने के लिए कवायद की जा रही है।

इसके अतिरिक्त “The Economic Times” तक ने अमेरिका के निरंतर गिरते शैक्षणिक मूल्यों पर एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के माध्यम से चिंता जताई है। उनके अनुसार, अमेरिका जिस प्रकार से एक “शैक्षणिक महाशक्ति” बना हुआ था, वो सब क्षीण हो रहा है।

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New National Education Policy 2022 : यही सही समय है

लेकिन इस आपदा में भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है, जिसे भूलके भी वह हाथ से जाने नहीं दे सकता। चूंकि अमेरिका की हालत से उसका नैतिक पतन होना तय है, इसलिए अब भारत के पास एक अवसर है कि वह पुनः “विश्वगुरु” बनने की ओर अग्रसर हो सकता है।

ये सुनने में हास्यास्पद प्रतीत हो सकता है, परंतु भारत के लिए इस समय ये कार्य असंभव भी नहीं है। निस्संदेह भारत क्षेत्रवाद और आरक्षण के प्रकोप से ग्रसित हैं, परंतु वर्तमान शिक्षा नीति इन सभी बाधाओं को लांघने के लिए तत्पर है। इसके अतिरिक्त कुछ ही माह पूर्व मोदी सरकार के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र को लेकर एक बड़ी घोषणा की गयी। जिसमें भारत सरकार विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए अपने देश के द्वार खोल रही है। जिसके बाद आपको भारत में रहकर ही येल, ऑक्सफोर्ड और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने का सुनहरा अवसर मिल सकता है। मोदी सरकार के द्वारा देश में इन सभी विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस खोलने और उनकी डिग्री देने को अनुमति देने की दिशा में बड़ा और अहम कदम उठाया है।

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लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि अब भारत अपनी शिक्षा नीति (New National Education Policy 2022 ) को आगे बढ़ाने के लिए अग्रसर है, वो भी ऐसे समय पर, जब अमेरिका की शिक्षा व्यवस्था रसातल में जा रही है। ऐसे में यदि भारत का वर्तमान प्रशासन कोई गड़बड़ी न करे, तो आने वाले भविष्य में भारत पुनः शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में “विश्वगुरु” बनने हेतु पूरी तरह तैयार है।

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