प्रचंड बहुमत से तो नहीं, परंतु कर्नाटक में विजय भाजपा की ही होगी

धन्यवाद कांग्रेस का!

कर्नाटक भाजपा

पता है कर्नाटक कांग्रेस और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरू में क्या समान बात है? दोनों अपने प्रभावी प्लेयर के जाने जाते हैं, दोनों में अपना सर्वोत्तम करने की क्षमता भी है, परंतु जब बात विजय की आती है, तो दोनों मुंह की खाते हैं। इस समय भाजपा के पक्ष में बहुत बातें नहीं है, परंतु यही चलता रहा, तो कुछ ही समय में कांग्रेस की कृपा से कर्नाटक में भाजपा पुनः सरकार बनाएगी।

कर्नाटक: भाजपा की हालत टाइट है.

अब ये कैसे पॉसिबल है? भाजपा की तो इस समय हालत कर्नाटक में बिल्कुल भी ठीक नहीं है। असल में भाजपा में इस समय कर्नाटक में सशक्त नेतृत्व की भारी कमी है।
परंतु ये कैसे संभव है? बी एस येदयुरप्पा है तो! बात तो सही कही, परंतु येदयुरप्पा ने स्पष्ट किया है कि वे अब राजनीतिक सन्यास लेने वाले हैं, और ये चुनाव उनका अंतिम चुनाव होगा। परंतु ऐसे कद्दावर नेता के लिए कोई तो रिप्लेसमेंट हो सकता है न?

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यही तो मेन समस्या है, कि लीडर ही नहीं है। येदयुरप्पा के अतिरिक्त अगर कोई था जो गर्दा उड़ा सकता था, तो वे थे एच एन अनंत कुमार। परंतु वे 2018 में ही परलोक सिधार लिए। प्रह्लाद जोशी में परिपक्वता तो है, परंतु उन्हे केंद्र सरकार शायद ही जाने दे।

इसके अतिरिक्त कोई माने या नहीं, परंतु तेजस्वी सूर्या की लोकप्रियता केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित है। ज़मीनी स्तर पे वे बिल्कुल भी नहीं जुड़े हैं। इसके अतिरिक्त बसावराज बोम्मई के बारे में जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा।

ऐसे तो बन चुकी कांग्रेस की सरकार!

ऐसे परिस्थितियों में तो कांग्रेस की पौ बारह होनी चाहिए, नहीं?

ऐसा बिल्कुल नहीं है। कुछ ही समय पूर्व अमूल और नंदिनी के बीच कथित झगड़े को लेकर कांग्रेस नेताओं द्वारा रस्साकशी प्रारंभ हो गई। बता दें कि देश के सबसे बड़े डेयरी सहकारी संगठन, गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के प्रवेश को लेकर कर्नाटक में दूध और डेयरी बाजार उबाल पर है, क्योंकि अमूल ने कर्नाटक में अपना भाग्य आजमाने का निर्णय किया है।

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तो नाराज कौन है? यह स्थानीय डेयरी ब्रांड नंदिनी के बारे में कम है, और कर्नाटक कांग्रेस के बारे में अधिक है, जिन्होंने अमूल के प्रवेश पर ऐसा हल्ला मचाया है, जिसे देखकर क्रोध कम, हंसी अधिक आएगी। अमूल देश का सबसे बड़ा ब्रांड है, जिसके पास सबसे बड़ा बाजार हिस्सा है, रिकॉर्ड संग्रह, प्रसंस्करण और बिक्री शक्ति है। लेकिन कर्नाटक के दुग्ध बाजार पर नंदिनी का पूरा दबदबा है।

जैसे ही अमूल ने बेंगलुरु के बाजार में प्रवेश किया, बहिष्कार का आह्वान किया गया। अमूल का बहिष्कार और अमूल वापस जाओ जैसे हैशटैग प्रसारित किए गए। बहिष्कार के आह्वान के अलावा, कर्नाटक प्रशासन नंदिनी ब्रांड “राज्य के गौरव” को कथित रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए विपक्षी नेताओं के निशाने पर आ गया है। घूम फिरकर क्षेत्रवाद के नाम पर कांग्रेस ने राई का पहाड़ बनाना प्रारंभ कर दिया है।

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विजेता कौन?

पर ये तो मात्र प्रारंभ है। चाहे PFI के राजनीतिक गुट को सहयोग देने हेतु आह्वान करना हो, या फिर धार्मिक आधार पर दिए आरक्षण को बहाल करने का वादा, कांग्रेस वो सब कर रही है, जो उसे नहीं करना चाहिए! बिहार के आधार पर कुछ अति उत्साही राजनीतिज्ञ तो जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं।
परंतु क्या इससे चुनावी रूप में कांग्रेस को लाभ मिलेगा? बिल्कुल भी नहीं। भाजपा को एक सशक्त लीडर की आवश्यकता है, परंतु कांग्रेस में तो दिक्कत यह है कि क्या कोई इनका नेतृत्व करने योग्य भी है? गुटबाजी अलग चल रही है, और कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित करने के लिए भांति भानित के निर्णय लिए जा रहे हैं। जिन्होंने मांग की कि राहुल गांधी और कांग्रेस हाईकमान स्थानीय मुद्दों को अधिक उठाएँ, उन्हे तो कोई पानी भी नहीं पूछ रहा। इसीलिए भले ही भाजपा के लिए मुसीबत है, परंतु कांग्रेस अपनी हरकतों से इतना सुनिश्चित कर रही है कि यदि भाजपा प्रचंड बहुमत से नहीं, तो कम से कम सरकार बनाने योग्य 120 सीटों से तो अधिक ही ले आए।

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