Jubilee web series review: इंप्रेस करती है विक्रमादित्य मोटवाने की “जुबली”

वो भी एक दौर था.....

jubilee web series review

Jubilee web series review: भारतीय सिनेमा एक अबूझ पहेली के समान है। यहाँ कुछ भी नॉर्मल नहीं होता, और कई बार यहाँ का सत्य कल्पना के भी परे होता है। बहुत लोगों ने इस उद्योग की वास्तविकता दिखाने का दावा किया, परंतु उनके दावे अधिकतम फुस्स सिद्ध हुए। तो क्या विक्रमादित्य मोटवाने की बहुचर्चित वेब सीरीज़ “जुबली” इस मामले में अलग है या नहीं?

इस लेख में पढिये “जुबली” वेब सीरीज़ (Jubilee web series review) के बारे में, और कैसे यह कई सिनेमा प्रेमियों को लुभा सकती है।

Jubilee web series review: कथा क्या है?

यूं तो ‘सेक्रेड गेम्स’ के साथ विक्रमादित्य मोटवाने ने OTT में कदम रख दिया था, परंतु “जुबली” इनका प्रथम सोलो प्रोजेक्ट है, जो एमेजॉन प्राइम पर प्रदर्शित हुई है। अभी इस वेब सीरीज़ का प्रथम भाग आया है, और आगे के 5 एपिसोड द्वितीय भाग कुछ समय बाद प्रदर्शित होगा।

कथा प्रारंभ होती है स्वतंत्रता से पूर्व की, जब भारतीय सिनेमा ने बॉम्बे को एक वैकल्पिक फिल्म उद्योग केंद्र के रूप में देखना प्रारंभ किया था। तब रॉय टाकीज़ नामक फिल्म कंपनी का एकछत्र राज था, परंतु सब कुछ वैसा नहीं है, जैसा दिखाया जा रहा है। इसी बीच में एक कनिष्ठ फिल्म कर्मचारी बिनोद दास को एक अप्रत्याशित ऑफर मिलता है, जो उसका जीवन बदलके रख देगा। परंतु वह ऑफर क्या है, और बिनोद को क्या मूल्य चुकाना पड़ेगा, और इन सबका भारत के उभरते हुए फिल्म उद्योग से क्या नाता है, “जुबली” उसी के इर्दगिर्द रची हुई है।

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दम तो है कथा में….

इस वेब सीरीज़ (Jubilee web series review) के मूल विषय से ही जितनी रुचि उत्पन्न होती है, दर्शक इस वेब सीरीज़ के प्रथम भाग को देखकर ये जानने के लिए और लालायित होंगे कि आखिर हमारे फिल्म उद्योग में ऐसी क्या बात है, जिसे चाहकर भी अनदेखा नहीं किया जाता था।

फिल्म उद्योग को 1940 के दशक में सेट किया गया, और यहाँ पर स्मार्ट फिल्ममेकिंग के अंश दिखाई पड़ते हैं। अब भूतकाल को चित्रित करने के लिए या तो आप जमकर VFX का प्रयोग कर सकते हैं, या फिर आप अपनी फिल्ममेकिंग शैली को इतना स्मार्ट बनाएँ कि लगे ही न कि कुछ भी कृत्रिम है, सब कुछ नेचुरल है।

“जुबली” में इस फिल्मांकन शैली की उपस्थिति अधिक दिखाई देती है। इसमें सभी वो तत्व उपस्थित हैं, जो एक वेब सीरीज़ को रोचक बना सकते हैं। ये उन लोगों के लिए नहीं है, जिन्हे बात बात पर कुछ तड़क भड़क अथवा गाली गलौज चाहिए। अगर आप अपना समय इन्वेस्ट कर एक बेहतरीन वेब सीरीज़ देखने को तैयार है, तो “जुबली” आपके लिए है।

आज के समय में एजेंडावाद से दूर रहना थोड़ा असंभव है। परंतु जो बू “सेक्रेड गेम्स” में मीलों दूर से सूंघने को मिलती थी, वो सौभाग्यवश “जुबली” में नहीं है। इसमें एक ऐसे विषय पर भी प्रकाश डाला गया है, जो हमारे फिल्म उद्योग को शीतयुद्ध से भी कनेक्ट करती है। परंतु वो क्या है, इसके लिए आपको इस वेब सीरीज़ को देखना होगा, और अमित त्रिवेदी के कर्णप्रिय संगीत को कैसे भूल सकते हैं?

रही बात अभिनय की, तो इस वेब सीरीज़ में दर्शकों का आकर्षण बनाए रखने में कुछ अभिनेताओं की प्रमुख भूमिका रही है : अपारशक्ति खुराना और सिद्धांत गुप्ता की। बिनोद दास से मदन कुमार की जर्नी को अपारशक्ति ने चित्रित नहीं किया है, अपितु जिया है, और आगे चल यदि इनके अग्रज आयुष्मान और इनके अभिनय में तुलनात्मक अध्ययन हो, तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। राम कपूर और वामिका गब्बी ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है।

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यहाँ बेहतर हो सकती थी

यह वेब सीरीज़ कई मायनों में अनोखी और सच्ची है, और यह मास्टरपीस भी बन सकती थी। परंतु कुछ कमियाँ छुपाये नहीं छुप पाती। अन्य प्रोजेक्ट्स की भांति विभाजन का मज़ाक नहीं उड़ाया गया है, परंतु उसकी सीमित चर्चा कुछ लोगों को थोड़ी अप्रिय लग सकती है।

इसके अतिरिक्त अदिति राव हैदरी के रोल्स अब धीरे धीरे उबाऊ होते जा रहे हैं। निस्संदेह वह बुरी अभिनेत्री नहीं है, परंतु अगर आप किसी को एक ही टाइप के रोल निरंतर देते रहेंगे, और उन्हे आगे बढ़ने के लिए उचित अवसर भी नहीं देंगे, तो लोग ऊबने लगेंगे। कई वर्षों बाद हिन्दी सिनेमा में प्रमुख भूमिका निभा रहे प्रोसेनजित चटर्जी ने प्रयास तो ठीक किया है, परंतु उनके चरित्र में निरन्तरता नहीं है।

परंतु इन सब बातों को अलग रखें, तो जुबली पीरियड ड्रामा के रूप में भारतीय सिनेमा के प्रारम्भिक दौर को चित्रित करता एक यथार्थवादी टेक है, जिसमें विक्रमादित्य मोटवाने की अद्भुत छाप देखने को मिली है। काफी समय बाद हमें वही विक्रमादित्य का फिल्मांकन देखने को मिला है, जिसने “उड़ान” और “लुटेरा” जैसी फिल्मों से हमें प्रभावित किया था।

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