“हत्या करो और बड़े बन जाओ” अतीक का Tried एंड Tested फार्मूला

आप क्रोनोलॉजी समझिए....

एक अपराधी अपने पेशे को क्यों अपनाता है? अधिकतम लोग कहने को परिस्थितियों के पीछे अपराध का मार्ग अपनाने को विवश होते हैं। परंतु अतीक अहमद का मैटर अलग है। सत्ता की भूख इन्हे प्रारंभ से ऐसी थी, जिसके पीछे इन्होंने मर्डर को ही अपनी सीढ़ी बना लिया।

इस लेख में जानिये अतीक अहमद के tried एण्ड tested फॉर्मूले से, जिसके आधार पर ये दो दशक तक उत्तर प्रदेश में आतंक का पर्याय बना रहा।

अपने ही ‘संरक्षक’ को उड़ा दिया….

15 अप्रैल को प्रयागराज के एक मेडिकल कॉलेज में मेडिकल परीक्षण के लिए ले जाते समय अतीक और उसके भाई अशरफ की कुछ लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना फुल मीडिया कवरेज में हुआ, और रोचक बात तो यह है कि कुछ ही दिन पूर्व इनके बेटे और उमेश पाल हत्याकांड का प्रमुख आरोपी, मोहम्मद असद अहमद, झांसी के निकट पुलिस एनकाउन्टर में मारा गया था।

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अब इस विषय पर मिश्रित प्रतिक्रिया सामने आ रही है। कुछ लोग इस प्रकरण को बता रहें कि कुछ गलत नही हुआ, तो कुछ “पूर्व विपक्षी सांसद” से लेकर “ताँगेवाला का बेटा” जैसी उपमाएँ दे रहे हैं। परंतु क्या आपको पता है कि अतीक ने अपने करियर का प्रारंभ ही एक मर्डर से किया था?

80 के दशक में पूर्वांचल अपराध के एक गढ़ के रूप में उभर रहा था, जहां सब अपना अपना उल्लू सीधा करने में जुटे हुए थे। इसी बीच प्रयागराज में एक “चाँद बाबा” नामक बाहुबली उभर रहा था, जिसने अतीक में अपने लिए एक उपयोगी सिपाही देखा। अतीक को उसने अपराध जगत से परिचित कराया, और उसे संरक्षण दिया, परंतु यही बात उसे अंत में भारी पड़ी, और 1983 के आसपास चाँद बाबा की अतीक ने हत्या कर दी।

राजू पाल की हत्या बना अशरफ का लॉन्चपैड

उस समय अतीक मात्र 17 वर्ष का था, परंतु अपराध जगत में उसकी आधिकारिक प्रविष्टि हो चुकी थी। धीरे धीरे वह आज़म खां और मुख्तार अंसारी जैसे नेताओं के संपर्क में आया, और 1990 तक पूर्वांचल पर एक ऐसा राज स्थापित हुआ, जहां वकील, गवाह और न्यायाधीश सब अपराधी थे, और इसी में एक गढ़ था इलाहाबाद, जिसके सरगना थे अतीक अहमद। प्रॉपर्टी, कोयला आवंटन, हत्या, अपहरण, आप जो बोलिए, इनका सब में हाथ था।

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इसी बीच सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने इनमें अपने राजनीतिक विस्तार के लिए एक बहुपयोगी संसाधन दिखा, और उसे इलाहाबाद का अघोषित प्रमुख बनाकर ही छोड़ा। प्रशासन गया तेल लेने, अतीक अहमद ही इलाहाबाद [अब प्रयागराज] का मठाधीश था। जो भी उसके विरुद्ध आवाज़ उठाता, उसका हश्र वैसे ही होता, जैसे राजू पाल का हुआ।

2005 के आसपास अतीक ने अपने भाई अशरफ का भी राजनीतिक जगत से परिचय कराया। परंतु इसमें सबसे बड़ा रोड़ा बने राजू पाल, जो बसपा के विधायक थे, और उन्होंने अतीक के गुट को विधानसभा चुनाव में भारी मतों से पराजित किया था। अब कोई अतीक की सल्तनत को ललकारे, तो वो उसे कैसे स्वीकार होगा। सो राजू पाल को उसने दौड़ा दौड़ा कर मारा, और उस हत्याकांड की गूंज आज भी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में सुनाई दी।

उमेश पाल की हत्या बना डेथ सर्टिफिकेट….

एक समय तो यह चर्चा चलती थी कि यूपी में चाहे कुछ भी हो जाए, परंतु अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी का नाम हमेशा बना रहेगा। ये कुछ हद तक सत्य भी था, परंतु 2017 में यह भ्रम कुछ हद तक तब टूटा, जब योगी आदित्यनाथ ने सरकार बनाई। अब अपराध के बजाए प्रशासनिक कुशलता को प्राथमिकता दी जाने लगी।

 

लेकिन अतीक उन लोगों में से नहीं थे जो इतनी सरलता से हार मानते। उमेश पाल हत्याकांड को जिस प्रकार से अंजाम दिया गया, और जिस तरह बिना किसी कवर के असद अहमद घूम रहा था, उससे स्पष्ट था कि वे अब भी यूपी में त्राहिमाम मचा सकते थे। परंतु वे भूल गए कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती, और जब जब अतिक ने उमेश पाल की हत्याकांड में प्रविष्ट होने की सोची उसी समय इसने अपनी डेथ सर्टिफिकेट पर मुहर मार ली थी.

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