Rohith Vemula Suicide Case: एक घटना घटी। कुछ लोगों को इसमें अवसर दिखा। उन्होंने एजेंडा फैलाया, और इसे हाथों हाथों देस के स्वघोषित समाजसेवियों ने “राष्ट्र के भविष्य” के लिए महत्वपूर्ण बताया। “लोकतंत्र खतरे में है” गैंग ने अंगड़ाइयाँ भरी ही थी कि अचानक पता चला कि अभियुक्त का नाम अरमान इकबाल खत्री है।
इस लेख में पढिये कि कैसे एक बच्चे के आत्महत्या के मामले (Rohith Vemula Suicide Case) को पुनः राजनीतिक रंग दिया गया, और कैसे अभियुक्त का नाम सामने आते ही सब एजेंडावादी बगलें झाँकने लगे।
मामला क्या था?
सर्वप्रथम आते हैं मेन मुद्दे पर : जिस लड़के की आत्महत्या हुई।
नाम था दर्शन सोलंकी।
दरअसल मामला यह था दर्शन सोलंकी नामक लड़का, निरंतर भेदभाव और मारपीट की धमकियों से तंग आकर फरवरी 2023 में ने आत्महत्या कर लेता है। ये घटना कहीं और नहीं, आईआईटी के मुंबई कैंपस में घटी। परंतु जैसे ही सामने आया कि लड़का पिछड़े वर्ग का है, एजेंडावादी तुरंत प्रकट हो गए।
सभी ने आईआईटी बॉम्बे पर “ब्राह्मणवादी” होने और “हिन्दू राष्ट्रवाद” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। सभी ने “सवर्ण जाति” को बिना जांच पड़ताल के दोषी ठहराया। हद तो तब हो गई जब अधिवक्ता एवं सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने बिना कुछ सोचे समझे इन शैक्षणिक संस्थानों पर बातों ही बातों में “जातिगत भेदभाव” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
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Rohith Vemula Suicide Case: असल अभियुक्त तो….
परंतु सारा खेल तब बिगड़ गया, जब आईआईटी बॉम्बे ने जांच के बाद प्रमुख आरोपी के नाम का खुलासा किया।
जांच के बाद पता चला कि न्यूजलॉन्ड्री, जिसने ये रिपोर्ट बनाई कि दर्शन सोलंकी के साथ जाति के आधार पर भेदभाव हुआ, वह केवल आंशिक रूप से सही थी, क्योंकि असली आरोपी का नाम अरमान इकबाल खत्री था। जो न्यूजलॉन्ड्री ने बताया ही नहीं.
प्रकरण क्या था?
किसी बात पर दर्शन और अरमान के बिच तनातनी हुई, जिसके बाद अरमान ने दर्शन पर धार्मिक वैमनस्य फैलाने का झूठा आरोप लगाया, और साथ ही साथ उसे जान से मारने की धमकी भी दी।
दर्शन का जो सुसाइड नोट बरामद हुआ, उसमें अरमान इकबाल खत्री का स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया था, और कैसे उसने दर्शन का जीना मुश्किल कर दिया था। फिलहाल अरमान इकबाल खत्री न्यायिक हिरासत में है, और पूछताछ जारी है।
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एजेंडा ऊंचा रहे हमारा….
अब सर्वप्रथम प्रश्न ये उठता है : क्या न्यूजलॉन्ड्री ने जिस आधार पर ये खोखली रिपोर्ट बनाई थी, उसे वापस लेगी? क्या वह इस एजेंडावाद के लिए क्षमा मांगेगी? ऐसा शायद ही होगा, क्योंकि वामपंथी और गलती स्वीकारना, ये दोनों एक लाइन में फिट ही नहीं बैठते, यथार्थ में परिवर्तित करना तो बहुत दूर की बात रही।
इसके साथ ही वामपंथियों का दूसरा “रोहित वेमुला” बनाने का प्रयास अधूरा रह गया। परंतु “रोहित वेमुला” था कौन? 2016 के प्रारंभ में हैदराबाद विश्वविद्यालय के इस छात्र की आत्महत्या परन्तु वह इसलिए सुर्खियों में नहीं थी क्योंकि उसके साथ अन्याय हुआ, अपितु इसलिए क्योंकि वह पिछड़े वर्ग का था, और बिहार में “असहिष्णुता” का राग अलापकर चुनाव जीतने वाले महागठबंधन ने इस विषय का राई का पहाड़ बना दिया, आखिर वोट भी कोई वस्तु होती है।
बात केवल यहीं तक सीमित नहीं रही, इस विवाद में रोहित की माँ ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया, और मोदी सरकार पर तरह तरह के आरोप लगाए, और ये सिद्ध करने का प्रयास किया कि मोदी सरकार “दलित विरोधी” तत्वों को बढ़ावा दे रही है। परंतु अंत में यही सिद्ध हुआ कि रोहित वेमुला अवसाद से ग्रसित थे, और उसी कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली।
बताते चलें की बाद में यह भी खुलासा हुआ कि रोहित वेमुला अपने अंतिम पत्र में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया, परंतु वामपंथी तो वामपंथी, तिल का ताड़ बनाने में जुट गए। यही बात वह दर्शन सोलंकी केस में भी दोहराने चले थे, परंतु अभियुक्त का नाम सामने आते ही सब ऐसे गायब हुए, जैसे गधे के सर से सींग।
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