थकेले पकेले खानों को बेचने की तत्परता देखिए

क्या लगा, पहली बार हुआ!

Khans are back scam

‘खान है तो भारतीय सिनेमा है!’

‘झूमे जो पठान पे नाचे पूरी दुनिया!’

‘खान अभी ज़िंदा है!’

Khans are back scam: पहले भी बताया था, बॉलीवुड एक अजब अजायबघर है। ‘ओल्ड वाइन इन अ न्यू बॉटल’ को यह लोग इतना सीरियसली ले चुके हैं कि आवश्यकता पड़ने पर हलाहल को भी सिंगल मॉल्ट दिखाकर बेचने की क्षमता है इनमें। परंतु ये खेल नया नहीं है, जनता को अब इनका खेल समझ में आने लगा है।

इस लेख में पढिये कैसे “खानों को चमकाने” के इस चीखट खेल (Khans are back scam) से, और कैसे अपने प्रिय सितारों को बचाने के लिए कुछ लोग व्यवहारिकता का भी पोस्टमॉर्टम करने को तैयार है।

बॉलीवुड नहीं, खान तिकड़ी को बचाना है!

आजकल बॉलीवुड का अस्तित्व बनाए रखने के लिए पुरज़ोर प्रयास चल रहे हैं। कोई जनता से अपील कर रहा है कि उन्हे हेय की दृष्टि से ना देखें, तो किसी को लगता है कि “काम बोलता है”। कुछ लोग तो बॉलीवुड की धाक जमाए रखने के लिए आंकड़ों के साथ भी खेलने को तैयार है, जैसे “पठान” और “किसी का भाई, किसी की जान” में स्पष्ट दिख रहा है।

कभी सोचा है कि जो काम लाख PR के बाद “ब्रह्मास्त्र” नहीं कर पाया, वो दो अधकचरे फिल्मों ने कैसे कर दिया, जिन्हे देख “ब्रह्मास्त्र” भी एक बार को मास्टरपीस लगे? कारण स्पष्ट है : बॉलीवुड में खानों का वर्चस्व बनाए रखना है। अब इरफान खान तो रहे नहीं, वरना वास्तव में तीनों खानों में अगर एक को भी मिडिल ईस्ट के बाहर कोई जानता हो, तो मैं अपना नाम बदलने को तैयार हूँ। जिनकी फिल्में ढंग से मुंबई के बाहर रिलीज़ करने योग्य नहीं, उन्हे जाने किस मुंह से “ग्लोबल स्टार” बताया जाता है?

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ये खेल प्रारंभ हुआ “दंगल” से!

परंतु आपको क्या लगता है, यह खेल अभी अभी डिस्कवर हुआ है? इसकी नींव तो 2017 में रखी गई थी, जब एस एस राजामौली ने “बाहुबली” नाम का भूचाल भारत की जनता के समक्ष प्रदर्शित किया था।

कहीं न कहीं अब भारतीय सिनेमा को दो भागों में बांटा जा सकता है : बाहुबली से पहले, और बाहुबली के बाद! वो कैसे? जब 2017 में “बाहुबली” का द्वितीय संस्करण आया था, तो पूरा देश पागल हो गया था। दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद तो छोड़िए, पूना, सूरत, गया, गोंडा, गुन्टूर जैसे अनेकों टियर 2 अथवा टियर 3 नगरों में भी इस फिल्म की अलग धाक जमी थी।

यूं ही “बाहुबली” भारत की सबसे सफलतम फिल्म का रिकॉर्ड नहीं स्थापित की थी। केवल 1400 करोड़ का कलेक्शन तो भारत के कोने कोने से प्राप्त हुआ था। कभी ऐसी प्रसिद्धि “हम आपके हैं कौन”, “गदर” जैसी फिल्मों को मिलती थी, परंतु अब “बाहुबली” ने सिद्ध कर दिया कि केवल बॉलीवुड ही भारतीय सिनेमा नहीं है।

परंतु कुछ ही माह बाद, एक भारतीय फिल्म एक अन्य राष्ट्र में प्रदर्शित हुई, और मात्र कुछ हफ्तों [महीने भी नहीं] में ये फिल्म भारत की सबसे सफलतम फिल्म बन गई, जिसका सम्पूर्ण भारतीय कलेक्शन 400 करोड़ भी नहीं था। इस फिल्म का नाम था “दंगल”, जिसमें आमिर खान बहुचर्चित पहलवान महावीर सिंह फोगाट बने थे।

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Khans are back scam: काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती

तो क्या “दंगल” वाकई में इतनी अच्छी थी कि उसने 2100 करोड़ की ताबड़तोड़ कमाई की? अगर ऐसा ही होता, तो ये फिल्म वैश्विक तौर पर मात्र 700 करोड़ से कुछ ऊपर तो नहीं कमाती। केवल एक देश से इतना राजस्व मिलना सबको नहीं पछता, वो भी तब जब वहाँ के प्रशासन का पारदर्शिता से दूर दूर तक नाता नहीं!

किसी महापुरुष ने कहा था, “आप कुछ लोगों को हर समय उल्लू बना सकते हो, आप सबको कुछ समय तक उल्लू बना सकते हो, परंतु आप हर किसी को हर समय उल्लू नहीं बना सकते”। बॉलीवुड को भी समझ जाना चाहिए कि कॉन्टेन्ट ही असली किंग है। स्टार पावर कुछ दिन तक दर्शक खींच सकता है, परंतु आपकी फिल्म को सफल बनाने के लिए सालिड कथा भी होनी चाहिए। जब जनता कॉन्टेन्ट के नाम पर अब कुछ भी नहीं स्वीकारेगी, तो फर्जी आंकड़ों के सहारे “खानों” का वर्चस्व बनाए रखना तो डूबते को तैरने के लिए सुई देने के समान हुआ।

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