कभी Radio Ceylon का नाम सुना है? जिसकी “बिनाका गीतमाला” के चर्चे पूरे राष्ट्र में होते थे, और जिसने बलराज दत्त को सुनील दत्त बनाया, उस Radio Ceylon का हमारे फिल्म इतिहास में अद्वितीय योगदान है। परंतु जब देश में ऑल इंडिया रेडियो था, तो फिर Radio Ceylon की आवश्यकता क्यों पड़ी?
इस लेख में पढिये कथा उस समय की जब हिंदी सिनेमा को कुचलने हेतु नेहरू सरकार ने कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ा और कैसे आज वर्षों बाद इस सत्य पर प्रकाश डालने का साहस किया गया।
जुबली ने किया अनोखा रहस्योद्घाटन
जैसा कि हमने पूर्व इसमें एक ऐसे विषय पर भी प्रकाश डाला गया है, जो हमारे फिल्म उद्योग को शीतयुद्ध से भी कनेक्ट करती है। परंतु वो क्या है, जिसके पीछे ये वेब सीरीज़ इतनी अनोखी बन गई?
अगर आप 90 के दशक के पूर्व के फिल्मों को देखें, तो कहीं न कहीं एक बात समान पाएंगे : लगभग सभी बड़ी फिल्में, (विशेषकर बॉलीवुड की) कभी न कभी सोवियत संघ में अवश्य प्रदर्शित हुई होंगी, और हमारे फिल्मों का अंतर्राष्ट्रीय मार्केट मूलत: यूरोप, विशेषकर सोवियत संघ तक ही सीमित था।
परंतु ये कोई संयोग नहीं, एक सोचा समझा प्रयोग था। कुछ विश्लेषकों का मानना था कि अमेरिका और सोवियत संघ फिल्म उद्योग को अपना अस्त्र मानती थी और भारत उनकी प्रयोगशाला मानी जाती थी। इसी विषय पर “जुबली” ने प्रकाश डाला है।
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नेहरुवादी ही हिंदी विरोधी
परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है। क्या आपको पता है कि नेहरू की रद्दी विदेश नीति का शिकार हमारी फिल्म इंडस्ट्री को भी बनना पड़ा?
वो कैसे? असल में 1952 में ऑल इंडिया रेडियो ने फिल्मी म्यूजिक पर संपूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। पता है इसके पीछे क्या कारण दिया गया? फिल्मी म्यूजिक, विशेषकर बॉलीवुड म्यूजिक हमारे आने वाली पीढ़ियों को “बर्बाद कर देगी”, ये पश्चात्य संस्कृति का प्रतीक है। ये बातें तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीवी केस्कर ने द हिंदू के साथ उस समय साझा की।
यही निर्णय पड़ा भारी
जी हाँ, जिस जवाहरलाल नेहरू के बारे में ये दावे किये जाते हैं कि वे हिंदी के लिए लड़ पड़े थे, वे हीन भावना से इतना ग्रसित थे कि अपने आकाओं को खुश करने के लिए वे हिंदी संगीत उद्योग को नष्ट करने को तैयार थे।
अब यही सोचिये, ये काम नरेंद्र मोदी या अटल बिहारी वाजपेयी ने किया होता, तो? नेहरू है तो सब चलता है? परंतु यही निर्णय AIR को बहुत भारी पड़ी। शीघ्र ही अधिकांश फिल्म निर्माताओं ने सरकार को ठेंगा दिखाते हुए आकाशवाणी को दिए गए म्यूजिक राइट्स को रद्द कर दिया।
इसी बीच श्रीलंका का चर्चित रेडियो सीलोन, जिसने कुछ ही वर्ष पूर्व अपना हिंदी संगीत केंद्र शुरू किया था, अपने लिए भारतीय श्रोताओं के साथ एक बड़ा अवसर देखने लगा। यहीं से बिनाका गीतमाला ने इस दौरान प्रसिद्धि प्राप्त की, क्योंकि अमीन सयानी ने उस समय के सबसे लोकप्रिय गीतों को कुछ सामान्य ज्ञान के साथ प्रस्तुत किया, और अभी तो हमने सुनील दत्त के प्रदुर्भाव पर चर्चा भी नहीं की है।
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स्वयं सयानी ने 2012 में कारवां को बताया, “रेडियो सीलोन सही जगह और सही समय पर था। वे (रेडियो सीलोन के कर्मचारी) जानते थे कि ऑल इंडिया रेडियो ने फिल्म संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसलिए, हिंदी सेवा शुरू करने का निर्णय सोच-समझकर लिया गया होगा।”
यहाँ तक कि जनता ने भी नेहरू सरकार के इस निर्णय का स्वागत नहीं किया और रेडियो सीलोन की लोकप्रियता के साथ, आकाशवाणी ने आखिरकार 1957 में विविध भारती लॉन्च करने का फैसला किया, जो हिंदी फिल्मी गाने बजाएगी। वास्तव में, उन्होंने घोषणा की कि रेडियो स्टेशन जो पांच घंटे संगीत बजाएगा, उसमें से लगभग चार घंटे हिंदी फिल्म संगीत को समर्पित होंगे।
अब समझे, काहे बिनाका गीतमाला इतना लोकप्रिय हुआ?
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