हमारे इतिहास और हमारे फिल्मों ने काफी हद तक हमारी मति हर ली है। हमें कई ऐसे “सत्य”, जो वास्तव में उच्चतम कल्पना के प्रत्यकस प्रमाण है, परंतु सत्य नहीं है। शॉर्ट में कहें तो फिक्शन को इतिहास बताकर पढ़ाना कोई हमारे इतिहासकारों से सीखे। अकबर महान थे, सलीम न्यायप्रिय थे, पर सच क्या है? इस लेख में पढिये सलीम उर्फ जहांगीर की वास्तविकता को, जो कुछ भी थे, परंतु न्याय की प्रतिमूर्ति तो बिल्कुल भी नहीं थे।
व्यभिचारी नंबर 1 थे ये
अगर आपको लगता है कि अकबर ने व्यभिचार प्रदर्शित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, तो फिर आप उनके सुपुत्र से नहीं मिले। जो भी मुगले आज़म को इतिहास मानते हैं, उनपे क्रोध कम और दया अधिक आती है।
ऐसा इसलिए क्योंकि चाहे वह शाह सलीम हो या बादशाह जहांगीर, व्यभिचार और वासना इनके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण भाग था। अनारकली अगर वास्तव में थी भी, तो वह केवल इनका प्रथम प्रयोग थी। तद्पश्चात इन्होंने कई हिन्दू राजकुमारियों को अपने हरम का हिस्सा बनाया। जो काम राव चंद्रसेन राठौड़ के रहते नहीं हो पाया, वो राव उदय सिंह के रहते हो गया, और मारवाड़ के साथ संधि के रूप में सलीम ने मारवाड़ की राजकुमारी से विवाह किया, जिनका नाम इन्होंने जगत गोसाईं रखा। इन्ही से इनको शिहाबुद्दीन मुहम्मद खुर्रम की प्राप्ति हुई, जिन्हे इतिहास आज शाहजहाँ के नाम से जानता है।
परंतु ये जगत गोसाईं के भी न हुए। इनकी पटरानी इनकी 20वीं सौगात थी, जिनका नाम था महरुनिस्सा। ये एक सामंत की विधवा थी, परंतु सलीम की वासना के आगे इनकी क्या हस्ती। परंतु महरुनिस्सा के व्यक्तित्व से सलीम कुछ ज्यादा ही प्रसन्न हुए, और शीघ्र ही वह इनकी पटरानी बन गई। यही थी नूर जहां, जिन्होंने एक समय मुगल साम्राज्य पर आधिपत्य जमाने का प्रयास भी किया।
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हर धर्म पर अत्याचार किया
एक समय बादशाह जहांगीर ने एक ही साथ 2 लाख हिंदुओं को बंदी बना लिया था, और कई स्त्रियों को मुगल हरम से लेकर दुनिया के लगभग हर कोने में बेचा। परंतु इनकी धर्मांधता केवल इतने तक सीमित नहीं थी।
जब जहांगीर बादशाह बने थे, तभी इंग्लैंड से सर थॉमस रो बतौर राजदूत पधारे थे। इन्होंने जहांगीर का काफी विस्तृत इतिहास लिखा, परंतु कई ऐसी बातें छुपाई, जो इनकी वास्तविक घृणा को उजागर करता था।
जब अत्याचार की बात आती है, तो जहांगीर ने किसी को नहीं छोड़ा। अहमदाबाद में जितने भी जैन तीर्थस्थल थे, उनका न केवल इसने विध्वंस किया, अपितु कई जैन अनुयाइयों का नरसंहार भी किया। जब ये पुष्कर पधारे थे, तो इन्हे वराह देव की मूर्ति इतनी खटकी, कि उसने वराह देव के मंदिर का विध्वंस करने का आदेश भी दिया।
इन्होंने राजपूताना में भीषण रक्तपात मचाया। ये मेवाड़ को जब सीधे सीधे नहीं हरा पाए, तो इन्होंने सुलह का प्रस्ताव रखा, जिसमें मेवाड़ को उनका प्रिय चित्तौड़ भी वापिस दिया जाने वाला था। परंतु इस सुलह की कुटिलता को राणा अमर सिंह प्रथम पहचान नहीं पाए, और चित्तौड़ पाने की अधीरता में वे मेवाड़ को मुगलों के अधीन कर बैठे।
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इन्होंने डाली रक्तपात की नींव
अभी तो हमने सिखों पर इनके अत्याचार पर प्रकाश भी नहीं डाला है, वरना जो लोग आज कुछ चरमपंथियों के बहकावे में आकर भारत और भारतीय संस्कृति को अप्रिय मान रहे हैं, उन्हे ज्ञात होन चाहिए कि कैसे इस दुष्ट आक्रांता ने गुरु अर्जन देव की निर्ममता से हत्या करवाई।
इसके अलावा जिस रीति के आधार पर जहांगीर सत्ता में आए थे, उसी रीति को उन्होंने मुगल सिंहासन तक पहुँचने का मार्ग ही बना दिया। इनके पुत्रों में भी सत्ता के लिए भीषण लड़ाई हुई, जिसमें शाह खुसरो को नूरजहां ने खूब बढ़ावा दिया। परंतु खुर्रम ने इस रक्तपात में अपने पिता की भांति कुछ शातिर दांव चलते हुए न केवल अपने भाइयों की मृत्यु सुनिश्चित करवाई, अपितु अपने पिता को भी इस स्तर तक ला खड़ा किया, कि वे जीवन भर उसका विरोध नहीं कर पाए। यही खुर्रम बाद में शाहजहाँ के नाम से चर्चित हुए। वहीं जहांगीर के अफीम और मदिरा का सेवन करना ही उनके लिए घातक सिद्ध हुआ और कश्मीर से लाहौर आते वक्त वे रास्ते में ही मृत्युलोक सिधार गए।
Sources:
Hindus Beyond the HinduKush : Indians in the Central Asian Slave Trade; Scott C Levi, pp.283
Tuzuk-I-Jahangiri, translated into English by Alexander Rogers vol1, pp.254
The History of India vol6, Elliot and Dawson pp. 528
Ibid. pp. 451
Court of the Great Mogul, Sir Thomas Roe pp.111
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