जब एक पुस्तक ने एक त्रासदी का अजब पूर्वानुमान लगाया

“सब कुछ लिखा हुआ है”

भई, जो भी दर्शक मुझे समझते हैं, वो जानते हैं कि मैं स्वभाव से फिल्मी हूँ। “ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा” में ये संवाद सुने थे, “सब कुछ लिखा हुआ है”। पहले इसका मतलब बिल्कुल पल्ले नहीं पड़ा, परंतु कुछ समय बाद जब एक घटना के बारे में पढ़ा, और वर्षों पूर्व एक उपन्यास में उसका पूर्वानुमान पढ़ा,

इस लेख में पढिये कि कैसे एक पुस्तक ने टाइटैनिक की त्रासदी को वर्षों पूर्व प्रीडिक्ट किया, और कैसे वही हुआ, जो उक्त पुस्तक में लिखा गया।

स्ट्रगल के बाद सफलता

एक लेखक था। नाम था मॉर्गन रॉबर्टसन। बहुत समृद्ध व्यक्ति नहीं था, परंतु कभी जहाज़ों पे काम कर, तो कभी हीरा उद्योग में हाथ आजमाकर उसने लेखन की ओर अपना ध्यान मोड़ा। प्रारंभ में वह बहुत सफल नहीं था। परंतु उसने एक ऐसी पुस्तक लिखी, जिसने उसके डूबते हुए करियर को बचाया, और आगे चल उनके जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव डालने वाला था।

1898 में उनका लघु उपन्यास प्रकाशित हुआ। “Futility, or the Wreck of Titan” नामक इस कथा का नायक एक पूर्व नौसैनिक था, जिसे परिस्थितियों ने एक डेक हैंड, यानि जहाज़ी नौकर बनाकर छोड़ दिया था। वह कैसे एक त्रासदी में बचता है, और कैसे एक बच्ची के साथ उसके संबंध उसके जीवन को आगे बढ़ाते हैं, ये इस उपन्यास का सार है।

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14 वर्ष बाद जो हुआ, वो किसी ने न सोचा….

कहने को एक सरल, पर रोचक नॉवेल है, नहीं? अगर इस उपन्यास के कुछ अंशों पर ध्यान दे, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस पुस्तक में नाविक एक विशाल जहाज़ पर सवार है, जिसे सब अभेद्य एवं अविनाशी मानते थे, यानि वह जहाज़, जो डूब ही नहीं सकता। इतना ही नहीं, इस नॉवेल में जो जहाज़ है, वह अपने समय का विश्व का सबसे बड़ा जहाज था। परंतु अपनी प्रथम यात्रा में ही यह जहाज़ एक हिमखंड से टकराता है, और डूब जाता है। परंतु कथा यहीं खत्म नहीं होती है। इस पुस्तक में लोग जहाज़ के डूबने से उतना नहीं मरते, जितना संसाधनों के अभाव एवं समुद्र के तापमान से।

अब आपको लग रहा होगा, भाई ये कथा कहीं सुनेली लगती है, नहीं? बिल्कुल ठीक सोचे, 14 वर्ष बाद जो हुआ, वो इसी कथा का लाइव प्रसारण था। एक बहुचर्चित जहाज़ निर्माता कंपनी अपने सबसे भव्य जहाज़ को उतारती है, जिसके खूब चर्चे होते हैं।

कहा जाता है कि ये जहाज unsinkable है, यानि कभी डूब ही नहीं सकती। 10 अप्रैल 1912 को यूके के साउथैम्प्टन के पोर्ट से यह जहाज़ अपनी प्रथम यात्रा को न्यू यॉर्क निकला। इसमें 2200 से भी अधिक यात्री सवार थे, और यह जहाज़ कई रिकॉर्ड तोड़ चुकी थी, जिनमें सर्वप्रथम था जहाज़ का साइज़।

अब और सुनिए। यह जहाज़ उसी मार्ग से गुज़रा, जिस मार्ग से मॉर्गन रॉबर्टसन का काल्पनिक जहाज़ गुज़रा था। 14 अप्रैल 1912 की रात यह हिमखंड से वैसे ही टकराता है, जैसे वह काल्पनिक जहाज़ टकराया। ये भी उसी स्थान पर डूबता है, जहां मॉर्गन रॉबर्टसन का जहाज़ डूबा। इतना ही नहीं, लोग जहाज़ के डूबने से उतना नहीं मारे गए, जितना जहाज़ पर लाइफबोट के अभाव और तत्कालीन समुद्र के तापमान से।

इस जहाज़ का नाम था आरएमएस टाइटैनिक, जिसपे आज फिल्म्स से लेकर मीम्स तक बन चुके हैं। 10 अप्रैल को अपने गंतव्य के लिए निकला यह जहाज़ उत्तरी एटलांटिक में बीच मार्ग में ही डूब गया।

हिमखंड से बचने में वह ऐसा टकराई कि उसके पाँच कम्पार्टमेंट पानी से भर गए, और निर्माण क्षमता के अनुसार वह केवल चार कम्पार्टमेंट के पानी से भरे होने पर तैर सकता था। 11:40 पे टकराया जहाज़ 2:20 बजे डूब गया, और लाइफबोट के अभाव के कारण 2200 से अधिक यात्रियों में से मात्र 713 कुछ यात्री बच पाए। 1500 से अधिक यात्री इस त्रासदी में मारे गए, और इनमें से लगभग 1200 यात्रियों के अवशेष आजतक नहीं मिल पाए।

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ऐसा भी होता है….

अब आप भी सोच रहे होंगे : ऐसा संयोग कहीं होता है क्या? वो कहते है, सत्य कल्पना से भी अजब और समझ से परे होता है। परंतु कभी कभी ऐसा भी होता है कि सत्य और कल्पना के बीच जो सीमा है, वही मिट जाती है। मॉर्गन रॉबर्टसन की उस पुस्तक से भी पूर्व ऐसे ही विषय पर लंदन के Pall Mall Gazette में एक लघु कथा छपी, जिसे पत्रकार और उक्त पत्रिका के संपादक, विलियम थॉमस स्टेड ने स्वीकृति दी थी।

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला था कि जहाज़ पर यात्रियों के अनुपात में लाइफबोट बहुत कम है, और इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो आगे चल ये एक विशाल त्रासदी का कारण बनेंगी।

ये लघु कथा 1886 में प्रकाशित हुई, मॉर्गन रॉबर्टसन के उपन्यास से भी 12 वर्ष पूर्व। परंतु दोनों ने कहीं न कहीं टाइटैनिक के साथ जो होने वाला था, उसे जाने अनजाने समझ लिया था। रोचक बात यह भी है कि विलियम थॉमस स्टेड 1912 में टाइटैनिक पर सवार थे, और त्रासदी में उनकी मृत्यु भी हुई। ये सब संयोग ही नहीं हो सकता!

 

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