3 राज्य, 3 मुख्यमंत्री और एक संदेश: समलैंगिक विवाह नहीं होंगे!

सामाजिक व्यवस्था भी कोई वस्तु होती है

समलैंगिक विवाह

अगर राजनीति से एक विशेष सीख लेनी हो, तो वह यह है : Expect the Unexpected! इस बार एक अलग ही प्रकार की एकता देखने को मिली, जब 3 अलग अलग राज्यों के 3 प्रशासक का एक कॉमन संदेश है : समलैंगिक विवाह स्वीकार नहीं!

केंद्र सरकार की समिति को मिले जवाब

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के अनुरोध के पश्चात समलैंगिक विवाह के विषय पर केंद्र सरकार ने एक विशिष्ट समिति गठित की, जिसके अंतर्गत उन्होंने विभिन्न राज्यों से उनकी राय मांगी। बुधवार को इस विषय पर केंद्र सरकार ने सूचित किया कि  समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) के मुद्दे पर 7 राज्यों से जवाब मिला है।

इस विषय पर एक अलग ही प्रकार की एकता देखने को मिली है। राजस्थान, असम और आंध्र प्रदेश में तीन अलग अलग पार्टियों का शासन है, परंतु तीनों ने एक सुर में समलैंगिक विवाह के विरुद्ध मोर्चा प्रशस्त किया है।

राजस्थान प्रशासन का स्पष्ट कहना है कि समलैंगिक शादी जनभावनाओं के विरुद्ध है। राज्य सरकार का मानना है कि समलैंगिक शादी को मान्यता दी तो सामाजिक व्यवस्था बिगड़ सकती है। लेकिन यदि दो ट्रांसजेंडर स्वेच्छा से साथ रहना चाहते हैं तो वह गलत नहीं है। इसी बात का अनुमोदन करते हुए असम और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने भी स्पष्ट तौर पर समलैंगिक विवाह का विरोध किया।

इनके अतिरिक्त राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे शीर्ष अदालत में अपनी प्रस्तुति में तर्क दिया कि लिंग की अवधारणा ‘Fluid’ हो सकती है, लेकिन मां और मातृत्व नहीं। एनसीपीसीआर ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में NCPCR ने कहा कि च्चे का कल्याण सर्वोपरि है। कोर्ट में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कहा कि कई जजमेंट में कहा गया है कि बच्चे को गोद लेना मौलिक अधिकार नहीं है।

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यूपी, मणिपुर, महाराष्ट्र इत्यादि का उत्तर मिलना बाकी

वहीं महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, और सिक्किम ने कहा कि उन्हें इस मामले पर विचार करने के लिए और समय की जरूरत है। उत्तर प्रदेश का रुख स्पष्ट था : बिना समस्त समुदायों के विचार जाने इस विषय का आँकलन करना किसी भी स्थिति में उचित नहीं होगा। इसी बात का महाराष्ट्र एवं मणिपुर के प्रशासन ने अपने अपने बयानों में उल्लेख भी किया है।

बता दें कि विगत कुछ हफ्तों से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर काफी विवाद गरमाया हुआ है। एक समय को प्रतीत हो रहा था कि स्वयं CJI चंद्रचूड़ इस निर्णय को लागू करवाके ही मानेंगे, परंतु फिर उनका मूड बदल गया, और उन्होंने केंद्र सरकार पर यह जिम्मेदारी डाल दी।

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परिणाम क्या होगा

अब सर्वप्रथम प्रश्न यही है : आगे क्या होगा? यहाँ सुप्रीम कोर्ट चाहकर भी कार्यपालिका यानि केंद्र सरकार एवं अन्य सरकारों की अवमानना करते हुए अपना निर्णय नहीं थोप सकता। वहीं दूसरी ओर अभी 7 राज्यों में से 3 ने पहले ही समलैंगिक विवाह के विरुद्ध मार्ग प्रशस्त किया है।

ऐसे में अगर लगभग सभी राज्य एकमुश्त होकर समलैंगिक विवाह के विरुद्ध मोर्चा निकालते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट को जनादेश को स्वीकार करना ही होगा, अन्यथा फिर वर्तमान CJI सहित अन्य न्यायाधीशों के लिए आगे की राह काफी कठिन हो सकती है।

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