कर्नाटक चुनाव के अतिरिक्त अगर कोई विषय चर्चा का केंद्र बनी हुई है, तो वह है “द केरल स्टोरी”। इस फिल्म ने अच्छे अच्छों की नींद उड़ा दी है। जो काम लाख फेमिनिस्ट अपने उच्च कोटी की बकैती से न कर पाए, वो इस फिल्म ने बिना कोई ढिंढोरा पीटे कर दिखाया, और ये भी सिद्ध किया कि नारी उन्मूलन के लिए लड़ने वाले कथित एक्टिविस्ट वास्तव में कट्टरपंथियों की ही बी टीम है।
इस लेख में पढिये कैसे “द केरल स्टोरी” ने फेमिनिज़्म और उसके ध्वजवाहकों की पोल पट्टी खोल के रख दी है।
पूरे एजेंडा पे फिरा पानी
इन दिनों “द केरल स्टोरी” ने गर्दा उड़ाकर रखा है। दो हफ्तों से भी कम में इस फिल्म ने सिद्ध किया है कि अगर फिल्म दमदार हो, तो 150 करोड़, 200 करोड़ कुछ नहीं मायने रखता। परंतु एक और बात है, जिसपर कम ही लोगों का ध्यान जा रहा है।
इस फिल्म को कथित नारीवादियों ने एजेंडावादी, “प्रोपगैंडा” से परिपूर्ण बताया था। इसके बाद भी इस फिल्म ने अच्छे अच्छे नारीवादी फिल्मों के लाइफटाइम कलेक्शन को पछाड़ दिया है। क्या आलिया भट्ट, क्या कंगना रनौट, यहाँ कि विद्या बालन के बड़े से बड़े प्रोजेक्ट को भी इस फिल्म ने मीलों पीछे छोड़ दिया है।
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उदाहरण के लिए “द केरल स्टोरी” का वर्तमान कलेक्शन कुछ 147 करोड़ के आसपास है। ये गंगूबाई काठियावाड़ी के सम्पूर्ण घरेलू कलेक्शन से कहीं अधिक है, जो 130 करोड़ से कुछ अधिक थी, जबकि उसका बजट 160 करोड़ के आसपास था। केवल इतना ही नहीं, ये फिल्म “राज़ी”, “मणिकर्णिका”, यहाँ तक कि “वीरे दी वेडिंग” जैसी फिल्मों को भी पछाड़ चुकी है, जिन्हे किसी न किसी रूप में प्रशंसा मिल चुकी है, और जिनमें से कुछ के लिए तो कथित नारीवादियों ने जमकर प्रेम लुटाया है।
कट्टरपंथियों को दे रहे बढ़ावा
परंतु भला फेमिनिस्ट इस फिल्म से क्यों चिढ़ेंगे? ये तो महिलाओं के उत्पीड़न पे आधारित है, ये दिखाता है कि धर्मांधता में कुछ लड़कियों का कितना वीभत्स शोषण होता है, ये मानवता की रक्षा की गुहार लगाता है, नहीं?
असल में हमारे फेमिनिस्टों के कुछ तय पैरामीटर होते हैं, जिनके अनुसार ही वे किसी फिल्म को अच्छा या बुरा बोलेंगे। अगर फिल्म में पुरुष को अपशब्द बोले जाएँ, भारतीय संस्कृति पर प्रश्न उठाए जाएँ, और सबसे महत्वपूर्ण, इस्लाम अथवा अन्य पंथों का महिमामंडन किया जाए, तो वो फिल्म फिल्म नहीं, क्रांति का पर्याय है। विश्वास नहीं होता तो “भीड़” जैसी फिल्म में भूमि पेड़नेकर के रोल के लिए इनका गुणगान देख लीजिए।
You are the best @dhruv_rathee 👌
If you all have still not watched this well-researched analysis by #DhruvRathee then you are already doing injustice to yourself. Already reached 5.6M people
Link- https://t.co/YkuRzUKf9f pic.twitter.com/YiDWI2HbX8— Sakshi Joshi (@sakshijoshii) May 11, 2023
Kashmir Files and Kerala Story are not films but state sponsored propaganda.
Indoctrination of society, one film at a time.
Love-Jihad is nothing but an Islamophobic conspiracy theory.Repeat after me –
Love-Jihad is a lie
Love-Jihad is propaganda— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) May 8, 2023
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परंतु ये तो मात्र प्रारंभ है। जितने भी फेमिनिज़्म के ध्वजवाहक हैं, उनके जरा रिएक्शन देखिए। एक ओर साक्षी जोशी, जो ये कहती हैं कि 3 ही लड़कियों का धर्मांतरण हुआ है, क्या हुआ। वहीं दूसरी ओर आरफा खानुम शेरवानी और राणा अयूब ने न केवल इस फिल्म को विषैला सिद्ध करने का प्रयास किया, अपितु इसे पसंद करने वाले दर्शकों को गंवार और बेवकूफ सिद्ध करने का भी प्रयास किया। पता नहीं क्यों चाहे कम्युनिज़्म हो या फेमिनिज़्म, सब घूम फिरकर Islamism का ही बचाव करने आ जाते हैं! पता लगाओ दया!
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