The Sengol: केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में नई संसद के उद्घाटन से पूर्व भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण भाग सेंगोल का सम्मिलित किया जाना पीएम मोदी और उनकी भविष्य की योजनाओं के बारे में चर्चा और अटकलें तेज करवा चुका है। निस्संदेह पीएम मोदी घोर राष्ट्रवादी हैं, वर्तमान निर्णय हमें यह सोचने पर मजबूर करता है: उनके पास और क्या क्या देश को वापस देने के लिए है?
इस लेख में पढिये नई संसद को बहुप्रतिक्षित सेंगोल से सुशोभित करने के निर्णय का विश्लेषण, और यह भी कि इसमें देश के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश क्यों है। तो विलंब किस बात की?
The Sengol वापस आ रहा है
नई संसद में औपचारिक राजदंड सेंगोल को शामिल करने से एक स्पष्ट संदेश जाता है। नेतृत्व, अधिकार और शक्ति का प्रतीक, Sengol अथवा राजदंड पीएम मोदी की मजबूत और निर्णायक नेतृत्व शैली पर प्रकाश डालता है। यह शासन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और राष्ट्र के भविष्य को आकार देने के उनके इरादे को दर्शाता है।
यह स्वाभाविक है कि हर राजनेता अंततः अपनापद छोड़ देगा, परंतु पीएम मोदी का सेंगोल को शामिल करना अपनी इच्छानुसार रिटायर होने, और उनके बाहर निकलने के समय और तरीके पर नियंत्रण बनाए रखने का संकेत देता है। यह एक सम्मानित राजनेता के रूप में याद किए जाने की इच्छा का संकेत देता है, जो प्राचीन सम्राट के समान अपनी शर्तों पर सत्ता छोड़ देता है।
Sengol की सांस्कृतिक विरासत
नए संसद भवन के उद्घाटन की खबर के साथ चर्चा में आए ‘सेंगोल’ को कुछ समय पहले कोई जानता तक नहीं था। मगर पीएम मोदी के प्रयासों से अब इसकी महत्वता और इसका इतिहास सब मुख्यधारा मीडिया में है। साल 1947 में स्वतंत्रता के समय आखिरी वायसराय माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर ‘सेंगोल’ पंडित नेहरू को सौंपा था। इसके बाद इसे इलाहाबाद संग्राहलय में ‘नेहरू को तोहफे में मिली स्वर्ण छड़ी’ बताकर रख दिया गया।
प्नधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसकी सूचना कुछ साल पहले एक वीडियो से लगी। 5 फीट लंबे सेंगोल पर वीडियो ‘वुम्मिडी बंगारू ज्वेलर्स (VBJ)’ ने बनाई थी। इसके मैनेजिंग डायरेक्टर आमरेंद्रन वुम्मिडी ने कहा कि उन्हें सेंगोर के बारे में खुद भी नहीं पता था। वो तो 2018 में एक मैग्जीन में इसका जिक्र देखा और जब खोजा तो 2019 में उन्हें ये इलाहाबाद के एक म्यूजियम में रखा हुआ पाया।
इस दौरान यह भी पता चला कि 1947 में सत्ता के हस्तांतरण को दर्शाने के लिए सी राजगोपालाचारी के अनुरोध पर तमिलनाडु (तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी) में तिरुववदुथुरई अधिनाम द्वारा राजसी 5 फीट लंबा सेंगोल का निर्माण किया गया था। इसे बनाने के लिए वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को मिली थी।
आमरेंद्रन कहते हैं कि उन्हें नहीं पता था कि Sengol कैसा दिखता है और उसे कैसे बनाया गया। वुम्मिडी परिवार की मानें तो वो खुद उस सेंगोल को भुला चुके थे। ये भी नहीं पता था सेंगोल लंबे समय से कहा था। सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है। इसकी प्रथा तमिलनाडु में शासन करने वाले चोल, पांडियार, पल्लव राजवंशों के समय से है। उन्होंने सेंगोर को नेहरू की स्वर्ण छड़ी बताने पर कहा कि हाँ मैंने म्यूजियम में रखे सेंगोर की कुछ तस्वीरें देखीं, गलती हुई है।
बता दें कि सेंगोल 1947 में नेहरू को मिलने के बाद से गायब हो गया था। मीडिया में यह भी बताया जा रहा है कि सेंगोर की जानकारी पीएम मोदी को प्रसिद्ध डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने एक चिट्ठी के जरिए भी दी गई थी। उन्होंने अपनी चिट्ठी में एक तमिल मैग्जीन ‘तुगलक’ में प्रकाशित एक लेख का हवाला देते हुए ‘सेंगोल’ के बारे में पीएम को बताया। साथ ही माँग उठाई की पीएम इस बारे में जानकारी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सभी देशवासियों के साथ साझा करें। हालाँकि बाद में पता चला कि ये सेंगोल प्रयागराज के आनंद भवन में है। अब आगे क्या ही कहें।
भारत की सांस्कृतिक विरासत का पुनरुत्थान
ये भी कहना गलत नहीं होगा कि नई संसद में सेंगोल को शामिल करने से द्राविड दलों, विशेष रूप से तमिलनाडु और उससे आगे के लोगों से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आने की संभावना है। इन पार्टियों ने ऐतिहासिक रूप से द्रविड़ संस्कृति और पहचान के संरक्षण पर जोर दिया है, जिसकी कीमत भारतवर्ष की स्वदेशी सनातन संस्कृति को चुकानी पड़ी। सेंगोल की वापसी को भारत के विविध सांस्कृतिक ताने-बाने को पहचानने और सम्मान करने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा सकता है।
जैसे, सेंगोल की वापसी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ एक पुन: जुड़ाव और औपनिवेशिक शासन के दौरान स्वदेशी प्रतीकों के उन्मूलन से प्रस्थान का प्रतीक है। यह कदम पीएम मोदी की देश की स्थानीय जड़ों को संरक्षित करने और पुनर्जीवित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, साथ ही संभावित रूप से राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करता है और द्रविड़ समर्थक दलों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त करता है। जैसे ही नई संसद आकार लेती है, सेंगोल की उपस्थिति भारत की विविध संस्कृति और इसकी परंपराओं को संरक्षित करने और मनाने के महत्व की याद दिलाती है।
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