राजेश मांझी : जिनके “केरल स्टोरी” पर कोई चर्चा तक नहीं कर रहा

कुछ मत बोलिए, केरल की छवि खराब हो जाएगी!

इन दिनों केरल विभिन्न कारणों से चर्चा में है। परंतु जो सबसे प्रमुख कारण है, वह है “द केरल स्टोरी”। कोई कहता है कि ये सच बहुत दिनों पूर्व ही आ जाना चाहिए था, तो कुछ महानुभाव कि ये असली “केरल स्टोरी” नहीं। बिल्कुल ठीक बात है, क्योंकि असली “केरल स्टोरी” पर कोई चर्चा तक नहीं करना चाहता।

इस लेख में जानिए बिहार के राजेश मांझी को, जिनकी “केरल स्टोरी” के बारे में प्रकाश डालना तो दूर, कोई चर्चा तक नहीं करना चाहता।

बिहार के मजदूर की केरल में हत्या

हाल ही में केरल के मलप्पुरम में चोरी के शक में बिहार के पूर्वी चम्पारण के रहने वाले 36 वर्षीय दलित मजदूर को बाँध कर पीटा गया। इस घटना में 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है – अफजल, फाजिल, शराफुद्दीन, महबूब, अब्दुसमद, नासिर, हबीब, अयूब और जैनुल। लगभग ढाई घंटे तक उक्त मजदूर के हाथ बाँध कर उसे पीटा गया, पाइप और लाठियों द्वारा। फिर उसे एक दुकान के बाहर फेंक दिया गया। इसके एक घंटे बाद पुलिस को सूचना मिली। राजेश माँझी को इसके बाद नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। हत्यारों ने सबूतों के साथ भी छेड़छाड़ किया, सर्विलांस कैमरे के फुटेज को डिलीट कर दिया गया। कॉन्डोत्ती के पास किझिसेरी इलाके में उक्त युवक पर चोरी का इल्जाम लगाया गया था।

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इस घटना की कोई चर्चा न होने का एक कारण ये भी है कि हत्यारे मुस्लिम समुदाय से आते हैं। मुस्लिमों द्वारा किए जाने वाले अपराधों को छिपाना कोई नया ट्रेंड नहीं है, काफी पहले से चला आ रहा है। हत्यारों ने झूठ बोल कर बचने की कोशिश की कि राजेश माँझी चोरी की कोशिश में पहले माले से गिर गए। केरल में इस तरह की ये पहली घटना नहीं है। वर्तमान मामले पर बिहार के सामाजिक कल्याण मंत्री मदन साहनी ने निंदा कर के इतिश्री कर ली है।

तरीका एक, फिर मापदंड दो क्यों?

तो इसका पी विजयन से क्या लेना देना?  जब भी सरकार में गैर भाजपाई पार्टी होती है, चाहे वहाँ अपराध बर्बरता की सभी सीमाएँ लांघ दे, परंतु फिर भी उनसे एक प्रश्न तक नहीं किया जाता। क्या आपने सोशल मीडिया के बुद्धिजीवियों या फिर मेनस्ट्रीम मीडिया में कहीं इस खबर पर बहस होते देखा कि केरल में बिहार के एक दलित मजदूर की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई, वो भी मुस्लिमों द्वारा?

मेनस्ट्रीम मीडिया के स्टार एंकर्स इस घटना को कवर करने के लिए केरल नहीं पहुँचे। अख़बारों में इस घटना पर संपादकीय नहीं दिखे। सोशल मीडिया में बुद्धिजीवियों ने CPM सरकार की आलोचना नहीं की। दलित हितों की बात करने वाले खामोश रहे। यूट्यूब से कमाई करने वाले नए-नवेले वरिष्ठ पत्रकारों की जमात ने अख़बारों की कटिंग शेयर नहीं की। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के शासन पर सवाल नहीं उठाए गए। मृतक के परिवार के लिए किसी मुआवजे की घोषणा नहीं की गई।

इसके ठीक विपरीत 22 जून, 2017 को एक आपसी झगड़े में ट्रेन में जुनैद नाम के युवक की हत्या कर दी गई थी। अपना अम्मी-अब्बू की 8 संतानों में छठे नंबर का जुनैद इमाम बनना चाहता था। उसकी हत्या के बाद देश भर में मॉब लिंचिंग वाला प्रोपेगंडा चलाया गया और कहा गया कि उसके मजहब के कारण हिन्दू गुंडों ने उसे मारा है। जुनैद और उसके साथी ईद की शॉपिंग कर के दिल्ली से लौट रहे थे, रास्ते में सीट के लिए एक दूसरे समूह से उनका झगड़ा हो गया था।

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जुनैद का केरल से कोई लेनादेना नहीं था। न तो वो केरल का रहने वाला था और न ही केरल में ये घटना हुई थी। लेकिन, केरल की वामपंथी सरकार ने जुनैद के परिजनों को रुपए देने का ऐलान किया था। अगस्त 2017 में केरल की सत्ताधारी पार्टी CPI(M) ने ऐलान किया था कि जुनैद के परिजनों को 10 लाख रुपए दिए जाएँगे। पार्टी की राज्य कमिटी की बैठक में ये निर्णय लिया गया। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन भी परिवार से मिले थे। तो क्या राजेश मांझी इनके लिए उपयोगी नहीं है?

हो सकता है, अन्यथा अपने आप को दलित प्रेमी बताने का एक अवसर न जाने देने वाले कम्युनिस्ट आखिर ऐसी घटना पर कैसे मौन रहते? अगर आरोपी मुस्लिम के बजाए उच्च जाति के हिन्दू होते, और घटना यूपी / एमपी की होती, तो फिर क्या होता? आगे आप स्वयं समझदार है।

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