टी राजा सिंह का निलंबन हटाने में 2 माह लेट हो गई भाजपा!

ये बहुत पहले होना चाहिए था

भाजपा के साथ एक अजब समस्या है। जब तक ठोकर नहीं लगती, तब तक इन्हे अक्ल नहीं आती। ऐसा ही कुछ तेलंगाना में भी देखने को मिल रहा है। जब तक कर्नाटक में चुनावी कुटाई नहीं हुई, तब तक भाजपा को स्मरण ही नहीं हुआ कि उनके पास राजा सिंह जैसे धुरंधर भी हैं।

इस लेख में पढिये भाजपा की इस विकट समस्या के बारे में, और कैसे राजा सिंह के निलंबन को हटाने में भाजपा तनिक लेट हो गई।

राजा सिंह आएंगे वापिस

हाल ही में एक अप्रत्याशित निर्णय में भाजपा की तेलंगाना इकाई ने निलंबित विधायक टी राजा सिंह के वापसी की ओर संकेत दिए हैं। समाचार चैनल ABN आंध्रा को दिए गए एक इंटरव्यू के दौरान रेड्डी से राजा सिंह के निलंबन पर सवाल पूछा गया था। इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री ने कहा, “निलंबन नियमों के तहत किया गया था। 100% निलंबन हटाएँगे। ये फैसला केंद्रीय पदाधिकारी लेंगे। इसमें हम भी बात कर रहे हैं और केंद्रीय पदाधिकारियों को सारी बात बता रहे हैं। जल्द से जल्द सस्पेंशन हटेगा।”

इस विषय पर टी राजा सिंह ने कहा कि वे किशन रेड्डी के उस बयान का स्वागत करते हैं जिसमें उनके निलंबन को समाप्त करने की बात कही गई है। निलंबित होते हुए भी वे बीजेपी की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं। निलंबन समाप्त होने के बाद खुलकर पार्टी को मजबूत करेंगे। उन्होंने जल्द बीजेपी में अपनी वापसी की उम्मीद जताई है।

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अब पछताए होत क्या?

परंतु इससे भाजपा को क्या प्राप्त हुआ? फिलहाल के लिए तो कुछ भी नहीं, क्योंकि ये निलंबन बहुत पूर्व ही हो जाना चाहिए था।

बताते चलें कि टी राजा सिंह हैदराबाद की गोशमहल विधानसभा सीट से लगातार दूसरी बार भाजपा के सिंबल पर चुनाव जीत चुके हैं। उन्हे मुनव्वर फारूकी के विरोध में कुछ आपत्तिजनक बयान देने के पीछे निलंबित किया गया था, क्योंकि वह कथित तौर पर अल्पसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुंचा था।  जिस वीडियो को लेकर उनपर FIR दर्ज हुई थी, उसको लेकर उन्होंने कहा है, “मैंने जो कहा सत्य कहा। कुछ गलत नहीं कहा।” उन्होंने बताया, “मुख्यमंत्री KCR का जो बेटा म्युनिसिपल कार्पोरेशन मंत्री है, उसने मुनव्वर फारुखी का कार्यक्रम जान-बूझकर करवाया था। इस कार्यकम का मकसद हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाना था।”

भाजपा का सबसे तगड़ा अस्त्र आक्रामक हिन्दुत्व रहा है, जिसका उन्होंने कई अवसरों पर प्रयोग भी किया है। परंतु कर्नाटक में उनके इसी प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिन्ह लगा था, क्योंकि राजा सिंह और नूपुर शर्मा का निलंबन लोगों के मन मस्तिष्क से हटा नहीं था। इसके अतिरिक्त पूर्व मुख्यमंत्री बसावराज बोम्मई की अपरिपक्वता कोढ़ में खाज का कार्य कर रही थी।

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अब भी समय है

परंतु अब भी देर नहीं हुई है। कर्नाटक और बंगाल की तुलना में तेलंगाना में भाजपा के पास यह लाभ है कि यहाँ का स्थानीय नेतृत्व अपने आप में सशक्त और सुदृढ़ है। स्वयं जी किशन रेड्डी के नेतृत्व में कैसे भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 4 सीट जीतकर सबको चौंकाया था, ये किसी से नहीं छुपा है। इसके अतिरिक्त हैदराबाद के नगरपालिका चुनावों में टीआरएस अब [बीआरएस] और AIMIM के गढ़ में घुसकर भाजपा ने जिस प्रकार तांडव मचाया, उससे इतना तो स्पष्ट है कि अगर यह चाहें, तो तेलंगाना में सरकार बनाना असंभव नहीं होगा। बस जो भूल कर्नाटक में की, वो यहाँ न दोहराएँ!

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