तुषार मेहता के तीखे बाणों ने समलैंगिक पैरोकारों को गजब छलनी किया

ये डेलीवेरी तो LGBT समर्थकों ने सोची भी न होगी

तुषार मेहता

जब कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 के अधिकतम अधिनियमों को निष्क्रिय किया गया, तो भारत की संसद में विपक्षियों ने काफी उत्पात मचाया था। उस समय एक सांसद ने अपने वक्तव्य से न केवल वहाँ के स्थानीय निवासियों, विशेषकर लद्दाख की प्रशंसा को रेखांकित किया, अपितु विपक्षियों को आचरण और व्यावहारिकता का पाठ भी पढ़ाया। पता नहीं क्यों समलैंगिक विवाह पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के वक्तव्य को सुन उसी सांसद जामयांग नामग्याल का स्मरण हो आया।

इस लेख में पढिये की कैसे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के विचारों ने समलैंगिक पैरोकारों को गजब पटखनी दी।

अगर मुझे अपनी बहन से प्रेम हो तो

हाल ही में समलैंगिक विवाह के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। इसमें दोनों धुरी, पक्ष या विपक्ष के बीच nuance के लिए शायद ही कोई स्थान था, और स्वयं मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ भी कई अवसरों पर समलैंगिक गिरोह के समर्थन में दिखाई दे रहे थे। परंतु CJI चंद्रचूड़ के तर्क को अपना अस्त्र बनाकर प्रो LGBT मंडली की धुलाई करने का साहस बहुत ही कम लोगों में होता है।

परंतु सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वास्तव में इसी तकनीक का प्रयोग किया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए CJI चंद्रचूड़ कई बार व्यवहारिकता की बलि चढ़ाने को भी उद्यत दिखाई दिए।

परंतु एक विषय पर तुषार मेहता ने उनकी ही बोलती बंद कर दी। उनके वक्तव्य के अनुसार, “आप जैसे विचार कर रहे हैं, उस अनुसार कल को मैं अपनी बहन से विवाह कर सकता हूँ। क्या आपके विचार में ये विवाह वैध है, अगर संस्थाएँ इसका विरोध करें, तब भी? क्या इसके लिए भी प्रावधान होंगे?”

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“मूड स्विंग के भी जेन्डर होते हैं?”

इस पर अधिकतम समय आक्रामक रहने वाले चंद्रचूड़ अंकल की बत्ती गुल हो गई, और वे अगर मगर में उलझ गए, परंतु तुषार मेहता अपने मार्ग पर अडिग रहे। उन्होंने एक कदम आगे बढ़ते हुए “Gender Fluidity” के मूल सिद्धांतों पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।

तुषार मेहता के अनुसार, “जो सिद्धांत कुछ लोगों ने परिभाषित किये हैं, उसके अनुसार Gender Fluidity एक जटिल विषय है। कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं, जिनका मूड स्विंग के अनुसार, या फिर समय के किसी भी पहर के अनुसार लिंग परिवर्तन होता है। क्या ऐसे लोगों के वैवाहिक संबंध भी मान्य होंगे?”

यहाँ पर CJI चंद्रचूड़ समेत सभी न्यायाधीश निरुत्तर हो गए। इन लोगों ने तो पहले से ही निर्धारित कर लिया कि इनका निर्णय क्या होगा, परंतु इस बार तुषार मेहता ने तो ऐसा दांव चला कि न इनसे निगलते बने न उगलते।

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अब क्या करेंगे चंद्रचूड़ बाबू?

अब सबसे बड़ा प्रश्न ये उठता है : आगे क्या होगा? कहने को CJI चंद्रचूड़ अभी भी अपने निर्णय पर अडिग रहते हैं, परंतु इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

प्रथम : इससे ये सिद्ध हो जाएगा कि CJI चंद्रचूड़ न्यायपालिका का अपनी तानाशाही लागू कराने के लिए दुरुपयोग करने से भी नहीं हिचकिचाएंगे। इसी बात से कई अधिवक्ता क्रोधित हैं। यहाँ तक बार काउन्सिल ऑफ इंडिया ने भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करते हुए समलैंगिक विवाह को अनमने तरह से लागू करने का विरोध किया।

दूसरा : अगर CJI चंद्रचूड़ ने अपने मन की करी, तो ये केंद्र सरकार के लिए ही मार्ग प्रशस्त करेगा, जो कॉलेजियम व्यवस्था को भंग करने हेतु एक उचित अवसर देख रहे हैं, और CJI चंद्रचूड़ तो अपनी हठधर्मिता में ये अवसर उन्हे थाली में सजाकर प्रदान कर रहे हैं।

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