लगता है “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” कथन को जैक डॉर्सी नया अर्थ देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। ट्विटर के पूर्व सीईओ ने भारत सरकार पर अपने उद्यम के प्रति तानाशाही होने का आरोप लगाकर तूफान खड़ा करने का प्रयास किया है। हालांकि, सच्चाई पूरी तरह से अलग है, और कुछ ऐसा जिसे पचाने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती।
इस लेख में पढिये कि जैक डोर्सी लगभग एक विदेशी जासूस क्यों थे, जिन्होंने जाहिर तौर पर कवर के लिए ‘टेक सीईओ’ के रूप में अपनी प्रोफाइल का इस्तेमाल किया।
“भारत ट्विटर को बंद करना चाहता था”
एक मीडिया पोर्टल के साथ वार्तालाप में जैक ने पुनः तानाशाही का रोना रोते हुए भारत सरकार पर डराने धमकाने का अतार्किक आरोप लगाया। इनके अनुसार, अगर इन्होंने “लोकतान्त्रिक संस्थानों पे कार्रवाई नहीं की, तो ट्विटर बंद करा दिया जाएगा”।
“भारत उन देशों में से एक है, जहां किसानों के विरोध के बारे में कई अनुरोध थे, विशेष पत्रकारों के बारे में जो सरकार की आलोचना कर रहे थे, और यह ‘हम भारत में ट्विटर को बंद कर देंगे’, ‘हम छापा मारेंगे’ जैसे तरीकों से प्रकट हुए। आपके कर्मचारियों के घर…’ ‘अगर आप सूट का पालन नहीं करते हैं तो हम आपके कार्यालय बंद कर देंगे’। और यह भारत है, एक लोकतांत्रिक देश!”
इसी को कहते हैं, रस्सी जल गई पर ऐंठ वही की वही। सच कहें तो जैक डॉर्सी दिन में टेक सीईओ, तो रात में एक विदेशी जासूस की भांति कार्यरत थे। ट्विटर फाइलों से हाल के रहस्योद्घाटन से कथित तौर पर जैक डॉर्सी और अमेरिका के गहरे राज्य के बीच संबंधों के जटिल जाल का सुझाव मिलता है, जिससे विदेशी शक्तियों के बीच नाना प्रकार के अड़चन पैदा होती है।
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कुछ कुछ “1984” जैसा?
अगर “1984” उपन्यास पढ़े हो, तो आपको ज्ञात होगा कि कैसे एक विशिष्ट व्यवस्था को बनाए रखने हेतु कुछ लोग किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। ऐसा ही कुछ जैक के सम्पूर्ण कार्यकाल में ट्विटर पर देखने को मिला। ऐसा दावा किया जाता है कि यह करीबी संरेखण, विशेष रूप से अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। उदाहरणत अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान, ट्विटर पर राष्ट्रपति जो बिडेन के बेटे हंटर बिडेन से संबंधित खबरों को दबाने का आरोप लगाया गया था, जो कथित तौर पर डोरसी के अपने राजनीतिक झुकाव पर आधारित थी।
इसके अतिरिक्त, जैक डॉर्सी को अमेरिका से बाहर के देशों में भाषण की स्वतंत्रता के मुद्दों पर अपने रुख के बारे में आलोचना का सामना करना पड़ा है। कनाडाई विरोध के दौरान, जब ट्रूडो सरकार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कठोर उपायों का इस्तेमाल किया, जिसमें बैंक खातों की जब्ती और मुक्त भाषण का दमन शामिल था, यह आरोप लगाया गया कि डॉर्सी इस पर चुप्पी साधे थे। ऐसे में इनका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बोलना बिल्कुल वैसा ही है, जैसे ओसामा का विश्व शांति के लिए आह्वान करना!
वहीं जब भारत ने ट्विटर पर अपने संप्रभु कानूनों को लागू करने का प्रयास किया, जैक डॉर्सी बिदक गए, जिसने इनकी निष्पक्षता और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में मंच की भूमिका के बारे में संदेह को और हवा दी। उत्तरदायित्व से बचने के लिए छल-कपट के आरोपों के साथ यह विवाद भारत में ट्विटर के संचालन तक फैल गया। मनीष माहेश्वरी ने सार्वजनिक रूप से खुद को ट्विटर इंडिया के प्रबंध निदेशक के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन कानूनी जिम्मेदारी स्वीकार करने की बात आने पर कथित तौर पर खुद को ट्विटर से अलग कर लिया। इसने ट्विटर से जुड़े भरोसे और विश्वसनीयता के मुद्दों को और जटिल बना दिया।
सफेद झूठों का बेताज बादशाह
शायद इसीलिए जैक की इस बकैती पर भारतीय टूट पड़े। सबसे अग्रणी रहे आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर, जिन्होंने ट्वीट किया, “यह जैक द्वारा एक स्पष्ट झूठ है, शायद ट्विटर के इतिहास के उस बहुत ही संदिग्ध अवधि को खत्म करने का प्रयास है।”
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तथ्य और सच
जैक डॉर्सी और उनकी टीम के नेतृत्व में ट्विटर भारतीय कानून का बार-बार और लगातार उल्लंघन कर रहा था। वास्तव में, वे 2020 से 2022 तक बार-बार कानून का पालन नहीं कर रहे थे और जून 2022 में ही उन्होंने अंततः अनुपालन किया। इसके बाद भी कोई जेल नहीं गया, न ही ट्विटर “बंद” हुआ। डोरसी के ट्विटर शासन को भारतीय कानून की संप्रभुता को स्वीकार करने में समस्या थी। उसने ऐसा बर्ताव किया जैसे भारत का कानून उस पर लागू नहीं होता.”
अभी तो हमने बाल यौन शोषण पर जैक के स्याह पहलू पर प्रकाश भी नहीं डाला है, जिसके पीछे एलन मस्क ने अलग मोर्चा खोला हुआ था। पर इसी बीच इस स्थिति पर भारतीय विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया बहुत ही निराशाजनक रही है। आलोचकों का तर्क है कि विवाद के बावजूद डोरसी के लिए उनका स्पष्ट समर्थन एक औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है, जो अंतरराष्ट्रीय अनुमोदन और वित्तीय लाभ के लिए राष्ट्रीय हितों से समझौता करने के लिए तैयार है।
भारतीय विपक्ष के लिए ऐसे कपटपूर्ण अतीत वाले ऐसे व्यक्ति की जय-जयकार करना और जानबूझकर भारतीय कानूनों की अवहेलना करने वाली एक विदेशी कंपनी का समर्थन करना, लोगों के एक ऐसे समूह की बात करता है जो मानसिक रूप से इतनी गहराई से उपनिवेशित है कि वे स्वेच्छा से फिर से जलियांवाला के सिपाही बन जाएंगे- सिर्फ चंद डॉलर के लिए।
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