राहुल गांधी की विजिट व्हाइट हाउस को: पहली बार तो नहीं है

ये डर अच्छा है!

भारतीय राजनीति कभी भी विस्मित और अचंभित करने से नहीं चूकती। वर्तमान में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अपने अमेरिकी दौरे के दौरान व्हाइट हाउस की अप्रत्याशित यात्रा ने भारत के राजनीतिक भविष्य के परिप्रेक्ष्य में बहस की लहर छेड़ दी है। इस घटना ने विशेष रूप से विदेशी हस्तक्षेप के लिए राहुल की निरंतर दलीलों और अमेरिका में उनकी विवादास्पद टिप्पणियों को देखते हुए अच्छे अच्छों को सोचने पर विवश कर दिया है!

इस लेख में पढिये व्हाइट हाउस की अप्रत्याशित यात्रा के बरे में, और ये बेचैनी कोई नई बात क्यों नहीं है।

व्हाइट हाउस की वो यात्रा

गांधी-नेहरू वंश के वंशज और भारतीय विपक्ष के प्रमुख चेहरों में से एक, राहुल गांधी अक्सर अपने विचार व्यक्त करने में मुखर रहे हैं, भले ही उनके कारण विवाद ही क्यों न हुए हों। अमेरिका में उनके हाल के भाषण कोई अपवाद नहीं रहे हैं। वह विशेष रूप से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचक रहे हैं।

हालाँकि, इन सभी साहसिक घोषणाओं के बीच, गांधी के दौरे का एक पहलू हाल तक लगभग किसी का ध्यान नहीं गया – व्हाइट हाउस की एक कथित गुप्त यात्रा। जैसा कि इकोनॉमिक टाइम्स ने रिपोर्ट किया है, इस गुप्त बैठक को बाइडेन प्रशासन और कांग्रेस पार्टी दोनों ने गुप्त रखा था। इस रिपोर्ट ने अटकलों और चर्चाओं की बाढ़ को खोलकर भारतीय राजनीतिक हंगामे को उभार दिया है।

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ये गुप्त वार्तालाप कई लोगों के लिए चिंता का कारण है। लंबित आपराधिक आरोपों के साथ संसद के एक निलंबित सदस्य (सांसद) राहुल गांधी ने भारत सरकार या विदेश मंत्रालय (MEA) को सूचित किए बिना इस यात्रा की शुरुआत की। इस कदम को, कई लोगों का तर्क है, प्रोटोकॉल के एक गंभीर उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है जो संभावित रूप से भारत के राजनयिक हितों को कमजोर कर सकता है।

अनेक संभावनाएँ, एक निष्कर्ष?

इस घटना ने राजनीतिक विश्लेषकों और जनता के बीच जबरदस्त चर्चा छेड़ दी है। एक टिप्पणीकार ने तो  अनुमान लगाया कि गांधी की गुप्त यात्रा अगले चरण की ओर बढ़ते हुए एक संभावित शासन परिवर्तन अभियान का संकेत देती है। इस टिप्पणीकार ने आगे कहा कि जैसा कि भारत वैश्विक मंच पर अपना प्रभुत्व जमाना जारी रखता है, वो कई लोगों की आँखों में खटक रहा है।

हालांकि जो भारत अमेरिका के कूटनीतिक संबंधों से तनिक भी परिच है, उन्हे ज्ञात होगा कि ये सब कैसे कोई नई बात नहीं है। एक वो भी समय था, जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री पीएम मोदी को मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों के तहत अमेरिकी वीजा देने से इनकार कर दिया गया था। कई लोगों का मानना है कि यह पहल कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) द्वारा बड़े पैमाने पर किया गया था, जिसमें कांग्रेस पार्टी एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।

परंतु ऐसा भी नहीं है कि केंद्र प्रशासन इस विषय पर घोड़े बेचकर नहीं सो रहा है। देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विदेशी धरती पर रहते हुए अपने ही देश की आलोचना करने की राहुल गांधी की आदत की तीखी आलोचना की। सूक्ष्म व्यंग्यात्मक लहजे में, उन्होंने गांधी के बयानों के विरोधाभास पर प्रकाश डाला, और विदेशों में भारत की छवि पर इनके टिप्पणियों के संभावित प्रभाव पर सवाल उठाया।

पहली बार हुआ है?

हालाँकि, व्हाइट हाउस में राहुल गांधी की ‘गुप्त यात्रा’ के राजनीतिक निहितार्थ अनिश्चितता के बादल बने हुए हैं। जबकि कई लोगों ने अपनी चिंताओं और अटकलों को व्यक्त किया है, भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर, विशेष रूप से 2024 के चुनावों के संदर्भ में, इस घटना का सही प्रभाव अभी देखा जाना बाकी है।

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परंतु ये भी सूचित करना आवश्यक होगा कि 2000 के दशक की शुरुआत में, इन्हीं लोगों ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को केवल 2002 के दंगों में शामिल होने के आरोपों के आधार पर यूएसए की यात्रा से रोकने हेतु अपना सब कुछ झोंक दिया था। लगभग एक दशक तक, पीएम मोदी को बिना किसी महत्वपूर्ण आरोप के “खूंखार अपराधी” के रूप में ब्रांडेड किया गया था। यह और बात है कि उनके प्रधान मंत्री बनने के बाद से, भारत काफी हद तक बदल चुका है। ऐसे में देखने योग्य ये होगा कि मोदी सरकार इन प्रपंचों से कैसे निपटने में सक्षम रहते हैं!

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