मनोज मुंतशिर [जो दिखाया जाता है] vs मनोज मुंतशिर [जो वास्तव में है]

“एक महान फिल्म में यह संवाद सुना था, “पता है विश्वासघात में सबसे दुखदायी क्या है? वो आपके शत्रु से नहीं आता?” कुछ ऐसा ही फिल्म “आदिपुरुष” में, जिसने हमारी संस्कृति पर लांछन लगाने में कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ा।

कारण : एक ऐसा व्यक्ति, जिसने छाती पीट पीटकर हिन्दुत्व और सनातन के प्रति अपनी निष्ठा को सिद्ध करने में दिन रात एक किये, और जब बात सिद्ध करने की आई, तो यही बंधु उस भावना को धूल में मिला दिए। ये कथा है उस मनोज मुंतशिर शुक्ला की, जिसके लिए विश्वासघात तो साइड बिजनेस रहा है, आज से नहीं, अपितु अनेक वर्षों से।

कड़वा सत्य

ऐसा ही एक विवाद जिसने गहन सार्वजनिक जांच और आक्रोश का कारण बना है, वह है मुंतशिर की “आदिपुरुष” में भागीदारी, जो श्रद्धेय रामायण का बड़े पैमाने पर फिल्म रूपांतरण है। फिल्म ने अपनी रिलीज से पहले पर्याप्त उत्सुकता पैदा की, जिसका मुख्य कारण इसकी स्रोत सामग्री और इसके निर्माण में शामिल लोगों की वंशावली थी। हालाँकि, मुंतशिर, जिन्हें संवाद लेखन का काम सौंपा गया था, ऐसा गुड़ गोबर किये, कि वे अब शीघ्र ही न घर के रहेंगे, और न ही घाट के!

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“आदिपुरुष” में इन विवादास्पद संवादों को हिंदू भावनाओं के प्रति आक्रामक और अविवेकपूर्ण माना गया, जिससे मुंतशिर के खिलाफ आलोचना की लहर भड़क उठी। दर्शकों और आलोचकों ने समान रूप से अपनी निराशा और क्रोध को व्यक्त किया, यह मानते हुए कि मुंतशिर ने अपनी पटकथा के माध्यम से जानबूझकर और जानबूझकर ऐसे संवाद लिखे थे जिन्हें एक प्राचीन संस्कृति के प्रति अपमानजनक माना जा सकता है। इस हंगामे के जवाब में, मुंतशिर ने माफी मांगने के बजाय अपने काम का बचाव किया, जिससे जनता का आक्रोश बढ़ गया।

परंतु प्रश्न तो अब भी व्याप्त है : मनोज मुंतशिर हिपोक्रेट कैसे हुए? इसका कारण मुंतशिर की सनातन धर्म के प्रति पहले से घोषित भक्ति में निहित है, एक दर्शन जो हिंदू धर्म का अभिन्न अंग है। वह अक्सर इन सदियों पुरानी परंपराओं के प्रति अपना सम्मान और प्रतिबद्धता व्यक्त करने में कोई कमी नहीं दिखाई। परंतु यही श्रद्धा और निष्ठा “आदिपुरुष” में दूर दूर तक देखने को नहीं मिली। ये तो वही बात हुई, मुंह में राम, बगल में छुरी।

बाहर से धार्मिक, अंदर से धर्मद्रोही 

परंतु अगर आपको ये लग रहा है कि ये अक्षम्य है, तो आप फिर मियां मुंतशिर से अच्छी तरह परिचित नहीं है। इस क्लिप को तनिक ध्यान से देखिए , कितना ओजस्वी, कितना साहसी प्रतीत हो रहा है, नहीं? अकबर के बारे में जिस यूट्यूब वीडियो के कारण ये सुर्खियों में आए, उन्हें अकबर को अत्यधिक महिमामंडित करने के आरोपों का सामना करना पड़ा है। यह आलोचना इस तथ्य को देखते हुए विशेष रूप से दिलचस्प है कि मुंतशिर ने पहले स्वयं अकबर और महाराणा प्रताप को एक ही तराजू पे तोला था। हाँ, उसी अकबर को, जिसमें इतना भी साहस न था कि महाराणा के समक्ष युद्धभूमि पर उतर सके।

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परंतु ये तो मात्र प्रारंभ है। अब इसे देखिए , जो हिन्दी भाषा के सौन्दर्य और उसके गुणों को रेखांकित करते नहीं थकता था, उसके मुख से ऐसे व्यंग्यबाण? इतना अवसरवादी तो शायद अक्षय कुमार भी नहीं होगा? परंतु ए ही तो मनोज शुक्ला, क्षमा करें, मियां मुंतशिर का परिचय है।

जश्न ए रेख्ता द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में, मुंतशिर ने अपने और अपने पिता, जो एक पुरोहित हैं, के बीच मौजूद वैचारिक खाई का खुलासा किया। उन्होंने कबूल किया, “मेरे पिता एक पुरोहित हैं, जब भी वह शिव स्तोत्र का जाप करते थे, मैं उनका विरोध करने के लिए इस्लामी छंद गाता था।” इस स्वीकारोक्ति ने मुंतशिर के अपने परिवार की धार्मिक प्रथाओं से विचलन को उजागर किया, और उनके व्यक्तित्व में मौजूद विरोधाभासों पर और जोर दिया।

हिपोक्रेसी के नए प्रतीक

अरे भई, ये तो कुछ भी नहीं है! अक्सर हिंदी के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करने और खुद को भाषा के पुरोधा के रूप में पेश करने के बावजूद, मुंतशिर हिंदी के अस्तित्व का मजाक उड़ाते रहे हैं और हिंदी फिल्म उद्योग के भीतर उर्दू के व्यापक प्रचार की वकालत भी कर चुके हैं। इस रुख को उनकी सार्वजनिक छवि के विरोधाभासी के रूप में देखा गया है और यह हिंदी के प्रति उनकी प्रामाणिकता और प्रतिबद्धता पर सवाल उठाता है, जिस भाषा ने उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इसके अलावा, ये विरोधाभास मुंतशिर के पेशेवर जीवन तक भी फैले हुए हैं। संस्कृतनिष्ठ हिंदी के सार के साथ उनके स्पष्ट अलगाव के बावजूद, उन्हें रामायण के पहले बड़े पैमाने के फिल्म रूपांतरण, “आदिपुरुष” के लिए संवाद लेखक की महत्वपूर्ण भूमिका के लिए चुना गया था। आलोचकों और दर्शकों ने तर्क दिया है कि फिल्म में आत्मा और गहराई का अभाव है जो महाकाव्य की विशेषता है, यह दर्शाता है कि मुंतशिर के प्रभाव ने इसकी गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डाला हो सकता है।

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मुंतशिर के बारे में खुलासे से उनकी छवि का पुनर्मूल्यांकन हुआ है, और जैसे-जैसे जनता इन विरोधाभासों से जूझ रही है, कथित मनोज मुंतशिर और वास्तविक मनोज मुंतशिर के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। इन्हे देख न जाने क्यों एक गीत के बोल स्मरण हो आते हैं, “भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे, दर्शन छोटे!”

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