वीवीआईपी खिलाड़ियों के वीवीआईपी नखरे!

काम के न काज के, दुश्मन अनाज के!

खेल राष्ट्र-निर्माण, गौरव लाने और नागरिकों में एकता की भावना को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, हाल ही में भारत में क्रिकेटरों और पहलवानों से जुड़ी घटनाओं ने कुछ एथलीटों के बीच वीवीआईपी संस्कृति के बढ़ते प्रसार के बारे में चिंता जताई है।

इस लेख में, आइए जानें कि वैश्विक मंच पर अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए खिलाड़ियों में विनम्रता, सम्मान और जिम्मेदारी के गुण क्यों होने चाहिए।

“एशियन गेम्स नहीं खेलेंगे!”

लगता है कुछ लोगों को अनुरोध की भाषा नहीं समझती। ये बात कथित पहलवानों पर भी लागू होती है। साक्षी मलिक के नेतृत्व में अब इन्होंने धमकी दी है कि यदि जल्द से जल्द इनकी मांगें पूरी नहीं हुई, तो न केवल वे एशियाई खेलों से नाम वापिस लेंगे, अपितु पुनः अपना आंदोलन शुरू कर देंगे।

एथलीटों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और न्याय की तलाश करने का अधिकार है, परंतु यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि अनावश्यक हेकड़ी और नियत प्रक्रिया की अवहेलना खेल की अखंडता को कमजोर कर सकती है। इस तरह के मुद्दों को हल करने के लिए शासी निकाय, खेल कौशल और धैर्य के लिए सम्मान मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए, जिसे सरकार तो क्या, आम जनता तक समझा समझा के हार चुकी है।

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इंडियन क्रिकेट टीम के वीवीआईपी नखरे!

1983 में भारतीय टीम का हाल कैसा था, इसका विश्लेषण कम ही लोग ठीक से कर पाएंगे। परंतु उस टीम के सदस्य यदि आज के क्रिकेटरों को ध्यान से देखें, तो निस्संदेह सोचेंगे, “इनके लिए वर्ल्ड कप जीते थे?” महत्वपूर्ण टूर्नामेंटों में गुड़ गोबर करना इन्होंने अपनी आदत बना ली है, और लाख बुराइयाँ हो मोहम्मद अज़हरुद्दीन में, परंतु इतना निर्लज्ज तो वे भी नहीं थे जितने वर्तमान भारतीय क्रिकेटर हैं।

विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल को हम फिर से हारे हैं। परंतु निर्लज्जता में मानो हमारे क्रिकेटरों ने JNU के वामपंथी छात्रों को भी पीछे छोड़ दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आलोचकों के प्रति विराट कोहली के घमंड रवैये और रोहित शर्मा की “बेस्ट ऑफ 3” प्रदर्शनी मैच की मांग ने कई लोगों को क्रोध से आगबबूला करने पर विवश होगी। रोहित शर्मा गली क्रिकेट के किसी ढीठ बालक की भांति इंग्लैंड से बाहर इस चैम्पियनशिप के आयोजन, और बेस्ट ऑफ 3 फॉर्मैट की मांग करने लगे। यह और बात थी कि इस बयान की भारी आलोचना हुई, जिसमें पैट कमिंस द्वारा एक सूक्ष्म ताना भी शामिल था, जिन्होंने टिप्पणी की थी कि “अपनी योग्यता साबित करने” के लिए केवल एक ओलंपिक फाइनल पर्याप्त होता है!

कुछ खिलाड़ियों द्वारा प्रदर्शित “holier than thou” रवैया उनकी अपनी प्रतिष्ठा और देश की छवि के लिए हानिकारक है। एथलीटों के लिए यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि उनकी सफलता लाखों प्रशंसकों के समर्थन और प्रशंसा का परिणाम है। आलोचकों का अनादर करना और अहंकार प्रदर्शित करना न केवल उनकी अपनी विरासत को धूमिल करता है बल्कि जनता द्वारा उन्हें दिए गए सम्मान और प्रशंसा को भी कम करता है। खेल की अखंडता और एथलीटों की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए राष्ट्र के प्रति कृतज्ञता और जिम्मेदारी की भावना महत्वपूर्ण है।

विनम्रता और सम्मान सबके बस की बात नहीं!

खिलाड़ियों के पास अपने प्रदर्शन और आचरण के माध्यम से लोगों को प्रेरित करने और एकजुट करने का एक अनूठा अवसर होता है। राष्ट्र और खेल समुदाय के सम्मान को बनाए रखने के लिए, यह जरूरी है कि एथलीट विनम्रता, सम्मान और सीखने और बढ़ने की इच्छा का प्रदर्शन करें। आलोचकों के साथ रचनात्मक जुड़ाव, दोषों की स्वीकृति, और आत्म-सुधार के प्रति प्रतिबद्धता एथलीटों के लिए सकारात्मक छवि बनाए रखने और उन्हें प्राप्त होने वाली प्रशंसा को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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भारत में क्रिकेटरों और पहलवानों से जुड़ी घटनाएं एक अनुस्मारक के रूप में काम करती हैं कि प्रत्येक एथलीट के व्यवहार के मूल में खेल भावना और सम्मान होना चाहिए। खिलाड़ियों को दिया जाने वाला भारी समर्थन और सम्मान इस उम्मीद के साथ आता है कि वे खुद को अनुग्रह, विनम्रता और जिम्मेदारी के साथ संचालित करेंगे, क्योंकि जिस जनता ने उन्हे सर आँखों पे बिठाया है, वही सीमा पार होने पर उन्हे धरातल पे भी पटक सकती है।

इन मूल्यों को अपनाकर एथलीट आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित कर सकते हैं, देश की खेल विरासत को मजबूत कर सकते हैं और समाज के समग्र विकास में योगदान दे सकते हैं। यह खिलाड़ियों के लिए अपने कार्यों पर विचार करने और एक ऐसी संस्कृति को अपनाने का समय है जो खेल भावना की सच्ची भावना को बनाए रखती है।

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