“ऐसी वाणी बोलिये कि जमकर झगड़ा होये, पर उनसे न पंगा लीजिये, जो आपसे तगड़ा होये!”
ये छोटी सी बात जिस दिन बॉलीवुड को समझ आ जाए, उनका छोड़िये, पूरे देश का कल्याण हो जायेगा! बॉलीवुड विवादों के विशाल महासागर में, एक ऐसी फिल्म आती है जो टेस्ट, शालीनता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता की सभी सीमाओं को लांघने का दुस्साहस करती है।
होलोकास्ट का उपहास उड़ाती “Bawaal”!
यूँ तो भावनाओं और सांस्कृतिक विरासत का मज़ाक उड़ाना बॉलीवुड की पुराणी आदत रही है, तो “बवाल” में नया क्या है? इन्होने वो पाप किया है, जिसे करने से पूर्व बड़े से बड़ा वामपंथी भी कम से कम एक बार तो अवश्य सोचेगा : यहूदियों का उपहास उड़ाना, ये ज्यादा हो गया.
I did not and will not watch the film Bawaal but from what I’ve read, there was a poor choice of terminology and symbolism.
Trivialization of the Holocaust should disturb all.
I urge those who don’t know enough about the horrors of the #Holocaust to educate themselves about it.— Naor Gilon (@NaorGilon) July 28, 2023
हां जी, बिलकुल ठीक सुने आप! नरसंहार – स्क्रिप्ट बनाने वाले महान आत्माओं ने सोचा कि “कलात्मक अभिव्यक्ति” के नाम पर, ऑशविट्ज़ कंसंट्रेशन शिविर को कथानक बिंदु के रूप में उपयोग करना एक शानदार विचार होगा। मानव इतिहास के सबसे भयावह अध्यायों में से एक को जनता के मनोरंजन के लिए महज एक पंचलाइन तक सीमित कर देना कितना उल्लेखनीय कारनामा है, नहीं! इसपर “हमारे रिलेनशिप में एक ऑशविट्ज़ अवश्य होता है” जैसे कालजयी संवादों का तड़का!
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जब आप एक रिलेनशिप को संभालने के लिए प्रयोग कर सकते हैं, तो मानवीय संवेदना, ऐतिहासिक एक्युरेसी से किसे फर्क पड़ता है? धन्य है बॉलीवुड और धन्य है इसकी लेजेंडरी सोच. हमें निशा के चरित्र की प्रतिभा की सराहना करनी चाहिए, जिसने हर किसी की तुलना हिटलर से की और लापरवाही से ऑशविट्ज़ का उल्लेख किया जैसे कि यह अकल्पनीय पीड़ा और मौत की जगह के बजाय एक विचित्र पर्यटन स्थल था। इन्हे अविलम्ब ऑस्कर के लिए नामांकित करें प्लीज!
The Israeli embassy is disturbed by the trivialization of the significance of the Holocaust in the recent movie 'Bawaal'.
There was a poor choice in the utilization of some terminology in the movie, and though we assume no malice was intended, we urge everyone who may not be…
— Israel in India (@IsraelinIndia) July 28, 2023
साइमन विसेन्थल सेंटर और अन्य मानवाधिकार संगठन इस अद्वितीय सिनेमाई उपलब्धि से द्रवित हुए बिना नहीं रह सके। स्थिति यह हो गई कि फिल्म को हटाने के लिए अमेज़ॅन प्राइम वीडियो को एक खुला पत्र लिखना पड़ा, जो फिल्म निर्माताओं द्वारा प्रदर्शित “संवेदनशीलता” और “जागरूकता” के स्तर के बारे में बहुत कुछ बताता है।
इसी का नाम है बॉलीवुड!
परन्तु ये तो कुछ भी नहीं है. भारत में इज़राइल के राजदूत नाओर गिलोन ने ट्विटर पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए उन लोगों को खुद को शिक्षित करने के लिए आगाह करने की हिम्मत कैसे की जो नरसंहार से अनभिज्ञ हैं! ऐसे कैसे भैया? “बवाल” हो या कोई अन्य फिल्म, बॉलीवुड को केवल बॉलीवुड ही शिक्षित कर सकता है! आपने क्यों तकलीफ की?
अरे बॉलीवुड, आप अपने दुस्साहस से हमें आश्चर्यचकित करने में कभी असफल नहीं होते! आपके पास “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के पवित्र मंत्र के पीछे छिपकर, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व की घटनाओं के साथ खिलवाड़ करने की एक अनोखी आदत है।
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क्या आपकी कलात्मक क्षमता की कोई सीमा नहीं है? कौन कहता है “द केरल स्टोरी” का समर्थन में होती है? श्रोताओं को ये भी सूचित कर दें कि यही नितेश तिवारी अब कालजयी रामायण को पुनः सिल्वर स्क्रीन पर चित्रित करेंगे. हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं कि वह सदाचार और धार्मिकता की इस कालजयी कहानी में अपना जादुई स्पर्श कैसे बुनेंगे।
“बवाल” इतिहास में कलात्मक असंवेदनशीलता के प्रतीक के रूप में दर्ज किया जाएगा, जहां मानवता के सबसे काले अध्याय भी मनोरंजन के लिए चारा बन जाते हैं। “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के लिए बॉलीवुड की प्रतिबद्धता की कोई सीमा नहीं है, और हम केवल सांस रोककर उनकी अगली फिल्म का इंतजार कर सकते हैं। अब क्या – “विभाजन” पर कॉमेडी? अरे नहीं, “कलंक” तो आ चुकी है!
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