चंद्रयान 3 प्रक्षेपित क्या हुआ लिबरलस की ही सुलग उठी !

बेसिक्स तो ठीक कर लो!

बचपन में सुने थे, “सूत न कपास, जुलाहे मा लट्ठम लट्ठ!” आज चंद्रयान 3 के प्रक्षेपण से पूर्व इसका जीता जागता उदाहरण देख भी लिए।

अपने अपने कुर्सी की पेटी बांध लें, क्योंकि चंद्रयान चंद्रमा की ओर अग्रसर है, और अभी से ही अग्नि ज्वाला भड़क उठी है। रॉकेट से नहीं, वामपंथियों के तन बदन से, जिसकी क्षतिपूर्ति बरनॉल भी न कर पाएगा!

खान मार्केट गिरोह हक्की बक्की!

13 जुलाई 2023 को इसरो के वैज्ञानिकों ने तिरुपति मंदिर के वेंकटचलापती मंदिर और चेंगलम्मा मंदिर का दौरा किया। उद्देश्य? पूजा अनुष्ठान करने और चंद्रयान-3 के चंद्र मिशन की सफलता के लिए देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए। ऐसा लगता है कि वैज्ञानिक अपनी वैज्ञानिक क्षमता के साथ-साथ थोड़ा दैवीय हस्तक्षेप भी चाहते थे।

परंतु मंदिर के दौरे की खबर ट्विटर पर आई, “स्वयंभू खगोलशास्त्री” खान मार्केट और दिल्ली प्रेस क्लब की गहराई से उभर आए! इन कीबोर्ड योद्धाओं में से एक, राजू पारुलेकर, “वैज्ञानिक स्वभाव!” के बारे में ट्वीट करने से खुद को नहीं रोक सके।

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इसके बाद, कारवां पत्रिका के हरतोष सिंह बल ने अपना ज्ञान साझा करते हुए कहा कि यदि आपको विज्ञान के काम करने के लिए प्रार्थना करनी है, तो आप वैज्ञानिक नहीं हैं, आप सिर्फ ऐसे व्यक्ति हैं जो प्रार्थना करते हैं कि विज्ञान काम करे। हे ईश्वर! आध्यात्मिकता और वैज्ञानिक जांच के बीच संतुलन और सामंजस्य की धारणा का पता लगाना चाहिए।

स्टीवंस स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर गौरव सबनीस ने इसे एक कदम आगे बढ़ाते हुए एक लंबे, पकाऊ ट्विटर थ्रेड का सृजन किया जिसमें उन्होंने अपने बचपन के अनुभवों को साझा किया और इसरो वैज्ञानिकों के विश्वास पर सवाल उठाया। अब इस ज्ञानचंद को कौन समझाए कि न्यूटन के ईश्वर में विश्वास से लेकर आइंस्टीन के ब्रह्मांड के प्रति विस्मय तक, विज्ञान और आध्यात्मिकता सदियों से एक साथ नृत्य कर रहे हैं। अगर श्रीनिवास रामानुजन इन महान आत्माओं के विचार सुन रहे होते, तो न जाने उनका क्या हाल होता?

अध्यात्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक!

इसी बीच आईआरएस अधिकारी डॉ. किरण कुमार कार्लापू बचाव में आए, और मिशन लॉन्च से पहले मंदिर के दौरे की इस अनोखी परंपरा पर प्रकाश डाला। उन्होंने सभी को याद दिलाया कि यह अभ्यास दशकों से इसरो की दिनचर्या का हिस्सा रहा है। ऐसा लगता है कि हमारे वैज्ञानिक हमेशा से विज्ञान और अध्यात्म का सफलतापूर्वक मिश्रण करते रहे हैं।

भारतीय संस्कृति का आधार सनातन धर्म जितना वैज्ञानिक है, उतना शायद ही कोई और धर्म होगा। हमारे कैलेंडर और गणितीय प्रणालियाँ कोपरनिकस और गैलीलियो जैसे लोगों द्वारा अपने ब्रह्मांडीय अन्वेषण शुरू करने से बहुत पहले ही खगोल विज्ञान की जटिलताओं से अच्छी तरह परिचित थे। जब गैलिलियो को दो और दो का अंतर भी मालूम न होगा, हमारे खगोलशास्त्री ब्रह्मांड के भांति भांति के कण और गृहों पर शोधपत्र तक छाप चुके थे!

चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण से पहले मंदिरों की यात्रा हमें याद दिलाती है कि विज्ञान आध्यात्मिकता के साथ सह-अस्तित्व में रह सकता है, और प्राचीन परंपराएं अभी भी आधुनिक दुनिया में अपना स्थान पा सकती हैं। हाँ, कुछ स्वयंभू बुद्धिजीवी इन मंदिर यात्राओं को अवैज्ञानिक बताते हैं और इसरो वैज्ञानिकों के वैज्ञानिक स्वभाव पर सवाल उठाते हैं, परंतु वे भारत में आध्यात्मिक प्रथाओं के साथ वैज्ञानिक ज्ञान के मिश्रण के समृद्ध इतिहास को नजरअंदाज करते हैं। इसरो वैज्ञानिक अपनी वैज्ञानिक विशेषज्ञता नहीं छोड़ रहे हैं; वे बस अपने मिशन के लिए अतिरिक्त आशीर्वाद और सद्भावना चाह रहे हैं।यही मंदिर जाने वाले, पूजा पाठ करने वाले वैज्ञानिकों ने एक ही दांव में मंगलयान को सीधा मंगल ग्रह भेज दिया, वो भी एक हॉलीवुड स्पेस फिल्म से कम बजट पर! अब बोलो, बोलो न!

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बेसिक्स तो ठीक कर लो!

प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों, कैलेंडरों और गणितीय प्रणालियों ने लंबे समय से सनातन धर्म में खगोल विज्ञान और ब्रह्मांड विज्ञान की गहन समझ को प्रदर्शित किया है। पश्चिमी वैज्ञानिकों द्वारा अपनी खोज करने से सदियों पहले ग्रहण, ग्रहों की चाल और आकाशीय गणना जैसी अवधारणाओं को सावधानीपूर्वक देखा और प्रलेखित किया गया था। फिल्म “रॉकेट्री” में नंबी नारायणन की भूमिका निभाने वाले आर माधवन को इन ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, जो प्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धियों की व्यापक समझ की आवश्यकता का संकेत देते हैं।

ब्रह्मांड विशाल और रहस्यमय है, और ज्ञान की हमारी खोज अनुभवजन्य अनुसंधान और आध्यात्मिक आत्मनिरीक्षण दोनों से लाभान्वित हो सकती है। लेकिन वास्तव में, हम उन लोगों से क्या उम्मीद कर सकते हैं जो मानते हैं कि राहुल गांधी एक युवा आइकन हैं, जाकिर नाइक एक समाज सुधारक थे, और जिनका आईक्यू शून्य से भी कम है?

जैसे ही चंद्रयान-3 अपनी खगोलीय यात्रा पर निकल रहा है, इस बात को समझें कि विज्ञान और अध्यात्म को एक दूसरे के विरोधी होने की आवश्यकता नहीं है; वे एक साथ मिलकर हमें ज्ञान और समझ की नई सीमाओं की ओर मार्गदर्शन कर सकते हैं। तो बुद्धिजीवियों को साइड रखिए और चंद्रयान 3 के सफल यात्रा की कामना करें!

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