देखो यार, अगर आपके फिल्म की सबसे उत्कृष्ट बात जया बच्चन की खूँसठ पर्सनैलिटी है, तो भैया आपका कुछ नहीं हो सकता। अपने कुर्सी की पेटी बांध लीजिए, मौसम के साथ साथ हाजमा, व्यवहारिकता और अपना मानसिक संतुलन जो बिगड़ने वाला है! नहीं समझे? करण बाबू ने अपने पिटारे से एक और भंगार निकाला है, जिसका नाम है “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी!”
भाईसाब, अगर 2 स्टेटस का रीमेक ही बनाना था, तो चेतन भगत से संपर्क कर लेते, इससे भी पकाऊ और बेकार स्क्रिप्ट आपको लिख कर नॉवेल के रूप में देते! पर नहीं, उठा लिया प्लॉट और आ गई “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी!” अगर “कहानी घर घर की” की सड़ांध भरे पतीले में “2 स्टेटस” का 2 रूपीज़ वाला चावल डालें, “गली गली बॉय” का थकेला पकेला, गुलू गुलू चिकेन हो, और साथ में फरहाद नोलन सामजी के प्लूटोनियम जोक्स का तड़का हो, और स्वादानुसार शबाना आज़मी और धरम पाजी हो, बनके तैयार “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी!” कसम से, आज “जब हैरी मेट सेजल” के लिए इज्जत बढ़ गई है।
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ट्रेलर में पूरी कहानी बताने का मजा वैसा ही है, जैसे आज के युग में “कौन है, जिसने मुझे मुड़के नहीं देखा” जैसे संवाद! परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि करण जौहर अपने ही ला ला लैंड में मौज काट रहे हैं। स्टोरी, वो क्या होती है? मौलिकता का अभाव आश्चर्यजनक है. ऐसा लगता है मानो उनके पास बॉलीवुड की घिसी-पिटी फिल्मों की एक चेकलिस्ट है और वह हर बॉक्स पर सही का निशान लगाना सुनिश्चित करते हैं। मेलोड्रामा से लेकर अतिरंजित भावनाओं तक, सब मिलेगा यहाँ!
अगर आपके फिल्म की सबसे उत्कृष्ट बात देखो यार, अगर आपके फिल्म की सबसे उत्कृष्ट बात जया बच्चन की खूँसठ पर्सनैलिटी है, तो भैया आपका कुछ नहीं हो सकता। आपकी फिल्म रिलीज़ होने से पूर्व ही खत्म, टाटा, बायबाय, गुडबाय!
ये मूवी रणवीर सिंह के लिए लाइफलाइन समान थी, क्योंकि निरंतर 2 वर्षों से फ्लॉप पे फ्लॉप देने के बाद अब यही एकमात्र सहारा है। परंतु अगर घूम फिरकर इन्हे रॉकी रंधावा जैसा छपरी जगत का सम्राट ही बनना है, तो रहन दो भाई, एक्टिंग आपके बस की न है! कुछ फिल्मों के लिए बॉयकॉट अभियान का ब्लूप्रिन्ट निकाला जाता है, एक सुनियोजित अभियान चलाया जाता है, इस फिल्म के ट्रेलर मात्र से ही कई लोगों का उद्देश्य स्पष्ट है: हॉल में देखकर अपने मेहनत का धन नहीं बर्बाद करना!
स्मरण है जब धर्मा प्रोडक्शंस में कुछ बारीकियाँ यानि nuance हुआ करती थीं? अंतिम बार ऐसी कोई वस्तु सिद्धार्थ मल्होत्रा की “शेरशाह” थी, और परंतु वह क्षणभंगुर निकला। अब तो टाइटैनिक से भी तेजी से कुछ डूब रहा है, तो वो है धर्मा प्रोडाक्शन्स!
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अब समय आ गया है कि वह निर्देशन से संन्यास ले लें। एक दशक से अधिक समय हो गया है जब उन्होंने एक याद रखने लायक फिल्म बनाई, भले ही उसमें देखने योग्य केवल सेट और बैकग्राउन्ड थे। परंतु जब आप विवाद में हों तो गुणवत्ता की जरूरत किसे है? इसके बाद भी जनाब रोते हैं कि बॉलीवुड को कोई भाव क्यों नहीं देता? परोसोगे नेनुआ की सब्जी, और चाहोगे दाल मखनी जैसा स्वाद?
दर्शक के तौर पर हम कुछ बेहतर चाहते हैं। हम ऐसी फिल्मों के लिए तरसते हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करें और स्थायी प्रभाव छोड़ें। लेकिन इसके बजाय, हमें अत्यधिक ग्लैमर और पूर्वानुमानित कहानी सुनाई जाती है। यह बदलाव का समय है, ऐसे उद्योग में ताजी हवा के झोंके का समय है जो निकृष्टता के पाश में फंसा हुआ प्रतीत होता है, और जिसके मठाधीश हैं करण जौहर, जो पच्चीस वर्ष पूर्व भी ऐसे ही थे, और अब भी कोई विशेष बदलाव नहीं आया है! “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी” अविस्मरणीय रहेगी, परंतु केवल गलत कारणों से! आनंद लें!
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