२०२४ का परिणाम आ चुका है!

यही तो चाहते थे मोदी जी!

बेचारे मोदीजी भी न सोचे होंगे कि उनके शब्दों का अक्षरशः पालन करने हेतु विपक्ष इतनी तत्पर होगी. I.N.D.I.A. नाम भले ही रख लिए, पर दिल तो अभी भी UPA है जी! चंद्रबाबू नायडू भी कहीं कोने में बैठे खींसें निपोर रहे होंगे!

इस लेख में जानिये भारतीय राजनीति की रोमांचक दुनिया  जहां जितनी जल्दी गठबंधन नहीं बनते, उससे जल्दी टूटते हैं, और हर सेकेण्ड कुछ न कुछ बवाल होता है.  अविश्वास प्रस्ताव को लेकर  I.N.D.I.A. की हालिया घोषणा पे क्रोध कम, हंसी अधिक आती है.

शोध और होमवर्क की घनघोर कमी

भैया जो भी I.N.D.I.A का रणनीति बना रहा है, उसने राजनीति का बेसिक कोर्स तो पक्का नहीं किया है. देखिये, नो कॉन्फिडेंस मोशन अथवा अविश्वास प्रस्ताव इमोशन पे नहीं चलता. इसके लिए आवश्यक तथ्य चाहिए, साक्ष्य चाहिए. जिसके भी विरुद्ध आप ये प्रस्ताव ला रहे हैं, जैसे सत्ताधारी पार्टी, तो एक ठोस आधार होना चाहिए. पर ला क्यों रहे हैं? इसका कोई आइडिया नहीं!

अब आते हैं आंकड़ों पर. अविश्वास प्रस्ताव को लाने के लिए कम से कम सदन के ५० सदस्यों का समर्थन चाहिए. चलो, ये भी मिल गया. पर पहले तो लोकसभा में इसे पारित कराना पड़ेगा, और वो भी २७३ से अधिक सदस्यों के समर्थन के साथ. अकेले भाजपा के पास २९० से अधिक सदस्य उपस्थित है,

देखो जी, नरेन्द्रभाई मोदी को अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से हटाना माने हवा से तलवारबाज़ी करने समान है. इनको क्या लगता है, मोदी जी किसी वचन से बंधे हैं, जो वे इनपे प्रतिकार नहीं कर सकते. अभी जिस तरह इन्होने भाजपा के संसदीय बैठक में I.N.D.I.A समूह के कांसेप्ट की धज्जियाँ उड़ा दी है, हमें तो सोचके ही चिंता हो रही है कि संसद में विपक्ष का क्या हाल होगा?

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परन्तु, इसके भी अपने लाभ है. सर्वप्रथम, इसी से पता चलता है कि हमारे विपक्ष के पास न कोई एजेंडा, न कोई प्लान, और न ही परिपक्वता उपलब्ध है! दूसरा, कट्टर समर्थकों को भूल जाइये; यहां तक कि जो लोग कभी-कभार उनकी किन्ही कारणों से आलोचना करते थे, वे भी अब उनके बचाव में आ जाएंगे, जिससे ऐसा ध्रुवीकरण होगा कि विपक्षी दल अपने सीटों की ज़मानत बचाने के लिए दौड़ने भागने लगेंगे.

सारे पत्ते नहीं खोलने का!

अच्छा, प्रथम और द्वितीय कारण तो हो गया, कुछ और भी बचा है? कहने को तो I.N.D.I.A की अपरिपक्वता पे उपन्यास लिख सकते हैं, परन्तु कुछ करक तो इनके सदस्य जानबूझकर अनदेखा करते हैं. उदहारण के लिए अपने अति उत्साह में ये राजनीति के सबसे मूलभूत सिद्धांतों में से एक तो भूल ही गए : कभी भी अपने सभी पत्ते सार्वजनिक न करें. पीएम मोदी  द्वारा राजनीतिक आपदाओं से बचने की उनकी क्षमता सर्वविदित है।

2004 के विपरीत, जब भाजपा को आश्चर्यजनक हार का सामना करना पड़ा, मोदी ने सावधानीपूर्वक गठबंधन बनाया और संभावित सहयोगियों को अनुमान लगाते रखा। गैर-एन.डी.ए. के साथ, गैर-आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन वाली पार्टियों के पास संतुलन साधने की पर्याप्त ताकत है, लेकिन ऐसा लगता है कि सत्ताधारी पार्टी के पास इस रूप में तुरुप का इक्का है। गैर एन.डी.आई.ए., गैर एन.डी.आई.ए. 50 से अधिक सीटों वाला ब्लॉक कोई मज़ाक नहीं है!

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और आपने सबसे हास्यास्पद बात पर ध्यान दिया है? I.N.D.I.A को अभी भी लगता है कि “विपक्षी एकता” ज़ोरों शोरों से इस प्रस्ताव में देखने को मिलेगी. चलिए, एक बार को मान लेते हैं कि कांग्रेस और JDU के अधूरे सपने को पूरा करने हेतु आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस सब कुछ लगा देंगे, वैसे मानना तो नहीं चाहिए, पर मान लेते हैं. परन्तु इस बात की क्या गारंटी है कि एमके स्टालिन, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव जैसे धुरंधर इन्हे अपना निस्संकोच समर्थन देंगे? सबको अपना घर बार देखना है बंधुवर!

जैसा कि कहा जाता है, “राजनीति में अनिश्चितता और कभी-कभार होने वाली कॉमेडी के अलावा कुछ भी निश्चित नहीं है!” I.N.D.I.A. मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर गठबंधन के प्रयास ने भले ही कुछ मनोरंजन प्रदान किया हो, लेकिन इसमें कोई सार्थक बदलाव लाने का माद्दा नहीं है। यह एक मूल्यवान अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि राजनीति को भावनाओं, रणनीति और व्यावहारिकता के नाजुक संतुलन की आवश्यकता होती है। और हाँ, स्मरण रहे कि अभी मोदीजी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं!

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