एक देवेन्द्र फड़नवीस और विपक्षी एकता गई तेल लेने!

असल गेम ऑफ थ्रोन्स तो महाराष्ट्र में चल रहा है

वो कहते हैं, “money and time spent on brain never goes in drain”। लगता है देवेन्द्र फड़नवीस के लिए यही उनके जीवन का मूलमंत्र है।

इस लेख में, आइए आपको ले जाते हैं महाराष्ट्र के अद्भुत राजनीतिक रोलर कोस्टर यात्रा पे, और आपको दिखलाते हैं कैसे एक ही झटके में एक और वंशवादी पार्टी के विध्वंस की नींव रख दी गई।

विपक्षी एकता, वो क्या है?

महाराष्ट्र की राजनीति में पुनः भूचाल आया, जब पूर्व उपमुख्यमंत्री और राकांपा के दिग्गज अजीत पवार ने एनडीए खेमे में फिर से शामिल होकर और भाजपा को समर्थन देने का वादा करके एक आश्चर्यजनक कदम उठाया। छगन भुजबल सहित कई प्रभावशाली विधायकों के समर्थन के साथ इस अप्रत्याशित पुनर्गठन ने फड़नवीस की स्थिति को और मजबूत किया और राज्य में राजनीतिक गतिशीलता को नया आकार दिया। फिलहाल के लिए अजीत ने बतौर उपमुख्यमंत्री पुनः शपथ ली है, और वे अपने नेतृत्व वाले एनसीपी गुट को वास्तविक गुट बताकर उसी आधार पर आगामी वर्ष के लोकसभा चुनाव लड़ने को उद्यत है।

कहीं न कहीं ये मानना होगा कि कम से कम महाराष्ट्र में देवेंद्र फड़नवीस महाराष्ट्र में विपक्षी एकता को खत्म करने में कामयाब रहे। अपनी दूरदर्शिता के लिए जाने जाने वाले, फड़नवीस ने शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच गठबंधन को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस अप्रत्याशित स्ट्रोक ने विपक्ष के भीतर विभाजन का फायदा उठाने और राजनीतिक लाभ हासिल करने की फड़नवीस की क्षमता का प्रदर्शन किया।

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असल गेम ऑफ थ्रोन्स तो महाराष्ट्र में चल रहा है

पता नहीं लोग HBO की ओर इतना क्यों लालायित हैं, असल गेम ऑफ थ्रोन्स तो महाराष्ट्र में चालू आहे! जिस राज्य में चार वर्षों में चार बार शपथ ग्रहण समारोह हुए हों, वो एक काल्पनिक कथा से कम रोमांचक कैसे हो सकता है। यह निरंतर प्रवाह राजनीतिक परिदृश्य की अस्थिरता और सत्ता और नियंत्रण की स्थायी खोज को उजागर करता है। वैसे भी, किसी सज्जन पुरुष ने कहा था, राजनीति में न शत्रुता स्थाई रहती है, न मित्रता।

एक समय दुर्जेय रहा महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन अपने पूर्व स्वरूप की छाया मात्र बनकर रह गया है। राज्य के एक हिस्से तक सीमित अपने प्रभाव के साथ, एमवीए की शक्ति अब 1.5 जिलों, कलानगर और अक्सर बड़बोले संजय राउत की मौखिक बहादुरी तक सीमित है। अकेले दम पर चुनौती देने और एमवीए के दबदबे को क्षीण करने की फड़नवीस की क्षमता उनके राजनीतिक कौशल का प्रमाण है। एक बार अजित पवार के साथ गठबंधन करके अपनी सरकार बचाने की कोशिश के लिए जिनका उपहास उड़ाया गया, उन्ही देवेंद्र फड़नवीस ने साबित कर दिया है कि यदि निर्णायक युद्ध जीतना है, तो एक दांव या संघर्ष में पराजय कोई विचलित करने वाली बात नहीं! अब अगर फड़नवीस के कदम से राजदीप सरदेसाई जैसे लोग विचलित हो, तो कुछ तो अच्छा किया होगा।

शरद पवार को मात देना कोई बच्चों का खेल नहीं

यहाँ केवल अजीत पवार एनडीए में नहीं आए हैं, यहाँ “बारामती के काका” शरद पवार भी बगलें झाँकते रह गए, और यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। कई राजनीतिक विशेषज्ञों ने शरद की “कूटनीति” को कुछ ज्यादा ही सर पर चढ़ा रखा था। परंतु इस बार फड़णवीस ने कुशलतापूर्वक पवार की रणनीतियों का मुकाबला किया, ठीक उसी तरह जैसे सचिन तेंदुलकर ने शुरुआती विफलताओं के बाद शेन वॉर्न की “जादुई गेंदबाजी” की मार मारकर हवा निकाल दी।

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अजित पवार का राष्ट्रवादी खेमे में जाना शुरू में भले ही असफल लगा हो, लेकिन बाद में एनसीपी के टूटने में यह एक महत्वपूर्ण कारक साबित हुआ। अजित पवार पर सुप्रिया सुले को प्राथमिकता देने के शरद पवार ने इस दिशा में पहले ही अपने कदम बढ़ा दिए। रही सही कसर नीतिस बाबू के देलोगा यानि देशभक्त लोकतान्त्रिक गठबंधन [PDA] को समर्थन देकर पूरा हुआ।

इतिहास की सबसे बड़ी उत्कृष्टता यही है कि वह अपने आप को दोहराता है। एक समय अपने ही वसंतदादा पाटिल को ठेंगा दिखा शरद पवार ने सत्ता प्राप्त की थी। अब कई वर्षों बाद उन्ही के अस्त्र का उन्ही पर प्रयोग करते हुए अजीत ने एनडीए का हाथ थाम लिया। अपने अपने करम है, समय समय की बात है!

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