कर्नाटक में आतंकवाद और कट्टरपंथ की हालिया लहर ने राज्य को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। सिद्धारमैया के नेतृत्व में सरकार उग्रवाद के प्रसार पर प्रभावी अंकुश लगाने में एक बार फिर फिसड्डी रही है। इस लेख में जानिये कि कैसे कांग्रेस की कृपा में असामाजिक और आतंकी तत्वों ने वापसी दर्ज की है।
उतर आए अपनी औकात पे
देश के कई क्षेत्रों की तरह कर्नाटक भी उग्रवाद के खतरे से जूझ रहा है। परंतु वर्तमान घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि शीघ्र ही ये राज्य भी केरल और बंगाल की जमात में शामिल होने को उत्सुक है। उडुपी जिले में अपने हिंदू सहपाठियों के अश्लील वीडियो रिकॉर्ड करने और साझा करने में शामिल होने के आरोप में तीन मुस्लिम छात्राओं के निलंबन ने न केवल स्थानीय समुदाय को चौंका दिया है, बल्कि पूरे देश में खतरे की घंटी बजा दी है। जिस बात पर “द केरल स्टोरी” का वामपंथी मज़ाक उड़ा रहे थे, वो वास्तव में कर्नाटक में घट रही है।
परंतु, ये तो प्रारंभ है। हाल ही में किसी भांति केंद्रीय अपराध शाखा (सीसीबी) और केंद्रीय खुफिया विभाग द्वारा बेंगलुरु में एक आतंकी साजिश को सफलतापूर्वक विफल किया है। जिस ऑपरेशन के परिणामस्वरूप पांच आतंकवादी संदिग्धों की गिरफ्तारी हुई, उसने कर्नाटक समेत भारत के कई भागों में संभावित तबाही को रोका। हालाँकि, यह कट्टरपंथ के मूल कारणों को संबोधित करने और अधिक प्रभावी निवारक उपायों को लागू करने की तात्कालिकता पर भी जोर देता है।
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गिरफ्तार संदिग्धों, सईद सुहेल, उमर, जुनैद, मुदासिर और जाहिद के पास घातक हथियारों का जखीरा पाया गया, जिसमें चार वॉकी-टॉकी, सात देशी पिस्तौल, 42 जिंदा गोलियां, गोला-बारूद, दो खंजर, दो सैटेलाइट फोन और चार ग्रेनेड शामिल हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि यह पता चला कि सभी पांच संदिग्ध 2017 के नूर अहमद हत्या मामले में आरोपी थे और बेंगलुरु सेंट्रल जेल में बंद थे। जेल में रहते हुए इन्हे कट्टरपंथी बना दिया गया था, जो चरमपंथी विचारधाराओं को जड़ें जमाने से रोकने की राज्य की जेल प्रणाली की क्षमता पर गंभीर सवाल उठाता है।
ये काम केवल कांग्रेस ही कर सकती है!
ये तो कुछ भी नहीं है। कुछ हफ्तों पूर्व कर्नाटक में एक जैन मुनि के अपहरण और जघन्य हत्या ने समस्त भारत में जैन समुदाय को स्तब्ध कर दिया है। अपराध की वीभत्स प्रकृति और इसके पीछे स्पष्ट धार्मिक उद्देश्य चरमपंथ से निपटने की तात्कालिकता को रेखांकित करता है। ऐसे जघन्य कृत्यों का सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है और अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए अधिकारियों से त्वरित और निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता है।
Lakhs of Jains have come on the road in Mumbai, Gujrat, Rajasthan,MP, karnataka, protesting peacefully for the brutal murder of Jain muni in karnataka. We demand capital punishment for the culprits.
Shame on us if we cannot give justice to our sadhu
@CMofKarnataka #JainMuni pic.twitter.com/1CxLEuFndu— Jainism_jewells (@arpitjain__) July 20, 2023
https://twitter.com/Vikashsaraf1/status/1681902517914050560
परंतु इस समय सत्ताधारी कांग्रेस क्या कर रही थी? कुछ नहीं, अपने “मोहब्बत की दुकान” खोलने में व्यस्त थे! गृह मंत्री जी परमेश्वर ने गिरफ्तार आतंकवादियों को “आतंकवादी” करार देने से मीडिया को हतोत्साहित करते हुए आग में घी डालने का काम किया। पर उनसे क्या ही आशा करें, जिनके लिए बजरंग दल और PFI एक समान है।
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इसके अलावा, उग्रवाद के प्रसार से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के बीच अंतर-एजेंसी सहयोग और सूचना साझा करना महत्वपूर्ण है। नागरिक समाज, धार्मिक नेताओं और शैक्षणिक संस्थानों को भी विभिन्न समुदायों के बीच सहिष्णुता, सद्भाव और समझ को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। कर्नाटक का विविधतापूर्ण समाज तभी विकसित हो सकता है जब यह सह-अस्तित्व और पारस्परिक सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित हो। परंतु जिस हिसाब से सिद्दारमैया सरकार तुष्टीकरण में लगी हुई है, ये शायद केरल और बंगाल के बदनाम क्लब को जॉइन करने के लिए आवश्यकता से अधिक उत्सुक है।
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