बॉलीवुड, हिंदी फिल्म उद्योग, लंबे समय से अपनी जीवंत कहानी कहने और मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। हालाँकि, हाल के वर्षों में, एक चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आई है जो बताती है कि बॉलीवुड एक रीमेक फैक्ट्री बन गया है, जो ताज़ा, मूल सामग्री में निवेश करने के बजाय सफल फिल्मों के नए संस्करणों का मंथन कर रही है। इस लेख में, हम कुछ आगामी फिल्मों पर चर्चा करेंगे जो इस परेशान करने वाली प्रवृत्ति का उदाहरण हैं और पता लगाएंगे कि यह उद्योग के लिए अच्छा क्यों नहीं है:
1) Soorarai Pottru:
जिस फिल्म के माध्यम से सूर्या शिवकुमार ने अनेकों भारतीय सिनेमाप्रेमियों को चकित किया, अब उसी को महोदय हिंदी में रूपांतरित करेंगे. इनकी ‘दूरदर्शिता’ ऐसी है कि इन्हे समस्त संसार में घूम फिरके अक्षय कुमार ही इस भूमिका के लिए मिले. और हमें लगता था कि खाली डेविड धवन में ही अपने क्लासिक्स को बर्बाद करने की क्षमता है.
2) Anniyan:
निर्देशक शंकर की 2005 की हिट “अन्नियन” ने अपनी विशिष्ट कथा और मनोरम अभिनय से प्रभावित किया। बॉलीवुड स्टार रणवीर सिंह को हिंदी रीमेक के लिए चुना गया था, लेकिन खबरें इस परियोजना के रद्द होने का संकेत दे रही हैं, जिससे प्रशंसक सस्पेंस में हैं। अनिश्चित भविष्य के साथ, उत्सुक दर्शक इस बहुप्रतीक्षित रीमेक के भाग्य पर आधिकारिक अपडेट का इंतजार कर रहे हैं।
3) The Great Indian Kitchen:
कल्पना कीजिये कि अनुभव सिन्हा की थप्पड़ का रीमेक बन रहा है. न किसी ने पूछा, न कोई इसकी मांग कर रहा था, फिर भी कुछ प्रबुद्ध प्राणियों को लगा, हमारे देश को जागरूक करना आवश्यक है. लेके आ गए एक ऐसी फिल्म का रीमेक, जो अति नारीवादियों के लिए अमृत से कम न होगी. साथ में मेन लीड में सान्या मल्होत्रा तो है ही!
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4) Master:
“कैथी” और “मनागरम” की भांति लोकेश कनागराज की एक और फिल्म रीमेक के लिए तैयार है. कहने को सलमान खान मुख्य भूमिका को आत्मसात करेंगे, परन्तु इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
5) Ayyapanum Koshiyum:
जॉन एब्राहम ने अपनी दृष्टि एक्शन रीमेक की और मोड़ दी है. “Ayyappanum Koshiyum” के राइट्स इन्होने बहुत पूर्व ही खरीद लिए थे. मूल फिल्म में बीजू मेनन और पृथ्वीराज सुकुमारन ने अपना सब कुछ लगा दिया था. संस्करण में जॉन एब्राहम के साथ अर्जुन कपूर भी अपनी ‘एक्टिंग’ को तराशने का प्रयास करेंगे. वैसे तराशने से याद आया, इनकी पिछली फिल्म ‘एक विलेन रिटर्न्स” का क्या हाल हुआ था?
6) Bawarchi:
देखो भई, कुछ फिल्में ऐसी हैं, जो जैसे हैं, वैसे ही रहने दें. हृषिकेश दा की “बावर्ची” ऐसे ही रत्नों में सम्मिलित है, जिन्हे रीमेक छोड़िये, किसी भी फॉर्मेट में पुनः नहीं बनाना चाहिए. परन्तु धन के भूखे कुछ लोग हर चलचित्र का रीमेक बनाने को आतुर है, और इसी सूची में अब दुर्भाग्यवश “बावर्ची” का नाम भी जुड़ चुका है.
7) Koshish:
परन्तु हृषिकेश मुखर्जी अकेले नहीं होंगे. गुलज़ार की जिस “कोशिश” ने भारतीय सिनेमा की उत्कृष्टता को परिभाषित किया, अब उसका भी रीमेक बनने जा रहा है. अनुश्री मेहता, अबीर सेनगुप्ता एवं समीर राज सिप्पी के नेतृत्व में “बावर्ची”, “कोशिश”, “मिली” इत्यादि जैसे पुराणी फिल्मों का रीमेक होने जा रहा है.
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इन आगामी फिल्मों का रीमेक के रूप में उभरना इस परेशान करने वाली धारणा को पुष्ट करता है कि बॉलीवुड तेजी से रीमेक फैक्ट्री बनता जा रहा है, जो रचनात्मक मौलिकता पर लाभ को प्राथमिकता दे रहा है। जबकि रीमेक सफल हो सकते हैं, इस फॉर्मूले पर अत्यधिक निर्भरता उद्योग की नवीनता और दर्शकों की कल्पना को पकड़ने वाली ताज़ा सामग्री तैयार करने की क्षमता के बारे में चिंताजनक संकेत भेजती है। बॉलीवुड को ऐसे माहौल को बढ़ावा देने की जरूरत है जो रचनात्मकता को बढ़ावा दे, नई कहानी कहने को प्रोत्साहित करे और सफल फिल्मों के पिछले गौरव पर निर्भर रहने के बजाय नई प्रतिभाओं में निवेश करे। केवल तभी उद्योग रीमेक चक्र से मुक्त हो सकता है और वास्तव में अपने आप में फल-फूल सकता है।
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