क्यों छोड़ेंगे नीतीश कुमार I.N.D.I.A. गठबंधन

'एकता' में ही फूट है!

चले हैं पीएम मोदी को चुनौती देने, और एकता ऐसी कि फूँक मारो तो भरभराके गिरे. बड़े जोड़ तोड़ के बाद राजनीति के इस अनोखे विवाह हेतु  बारात तैयार हुई. लेकिन जो सपने पाले थे दूल्हा बनने को, वे फूफाजी बनने पर भुनभुना रहे हैं.

इस लेख में जानिये I.N.D.I.A. गठबंधन के बारे में, जिसका तन मन धन सिर्फ एक उद्देश्य को समर्पित है, परन्तु इसकी कल्पना करने वाले ही नाराज़ फूफा बनके बैठे हैं!

क्रेडिट के लिए महाभारत!

चोर उचक्कों ने सभा का प्रबंध कर लिया, परन्तु अब प्रसन ई उठा कि मोर्चा कौन संभालेगा. जिनका भारतीयता से दूर दूर का कोई नाता नहीं, वे भी अब I.N.D.I.A., I.N.D.I.A. का जाप कर रहे हैं. परन्तु ये अपने उद्देश्य के लिए कितने तत्पर हैं, ये इसी प्रसारण से स्पष्ट होता है.

सर्किट भाई गलत नहीं कहे थे, “भाई ये तो शुरू होते ही खत्म हो गया!” गठबंधन की रुपरेखा भी नहीं तय हुई, और क्रेडिट के लिए पहले ही तलवारें खिंच गई है. अपने युगपुरुष अरविन्द केजरीवाल ने स्वभावानुसार इसका श्रेय लूटने में कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ा। अब कांग्रेस ऐसे में कैसे चुप रहती, वे भी जुट गए युवराज को इसका श्रेय देने. अरे चंडीगढ़ वाले नहीं, वायनाड वाले!

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ये तो कुछ भी नहीं है. जब कांग्रेस ने “बड़े दिलवाला” बन पीएम पद के लिए अनिच्छा जताई, तो TMC ने तुरंत ममता बनर्जी को दावेदार बनाने के लिए आगे किया. इस्पे कम्युनिस्ट पार्टी भड़क गई और कहा की गठबंधन जैसा भी हो, बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी TMC से लड़ेगा.

सबसे ज़्यादा नुक्सान किसका?

परन्तु ऐसे शुभ अवसर पर सुशासन बाबू कहीं दिखाई क्यों नहीं दे रहे? सोचिये आप पूरा माह अपने जॉब पे घिसे, और जब वेतन मिले, तो ट्रांसफर ही फेल हो जाए! कुछ ऐसा ही हाल नीतीश बाबू का हुआ है. चले थे महागठबंधन का दूल्हा बनने, अब तो बैंड बाजा में सम्मिलित करने योग्य भी नहीं छोड़ा.

असल में विपक्षी नेताओं ने कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में मंगलवार (18 जुलाई, 2023) को बैठक कर अपने नए गठबंधन का नाम ‘INDIA’ रखा। विपक्षी नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़ी-बड़ी बातें की और ‘लोकतंत्र की हत्या’ का आरोप लगाते हुए अगली विपक्षी बैठक मुंबई में होने की बात कही। इसी बीच खबर आई कि नीतीश कुमार नाराज़ हो गए हैं। इन अटकलों को हवा तब मिली जब नीतीश कुमार बिना प्रेस कॉन्फ्रेंस अटेंड किए ही पटना के लिए निकल गए। चौबे जी चले छब्बे जी बनने, दूबे जी बनके लौटे!

अपनी बेबाक बुद्धि के लिए जाने जाने वाले प्रतिष्ठित राजनीतिक विश्लेषक प्रशांत किशोर भी पीछे नहीं हटे और उन्होंने नीतीश कुमार को इस राजनीतिक नाटक का सबसे बड़ा हारा हुआ व्यक्ति घोषित कर दिया। उनके शब्दों में, एकजुट विपक्ष के लिए अपनी निरंतर पैरवी के साथ, नीतीश ने गठबंधन की सफलता पर अपनी सारी उम्मीदें लगा रखी थीं, और उन्हें एन. चंद्रबाबू नायडू के समान या उससे भी बदतर स्थिति का सामना करना पड़ेगा।

हवा से लड़ते मूर्खों की मण्डली?

आपको ये तो याद ही होगा कि नीतीश कुमार पिछले 11 महीनों से विपक्षी गठबंधन बनाने के लिए पहल कर रहे थे और इसके लिए उन्होंने दिल्ली से लेकर लखनऊ, भुवनेश्वर और चेन्नई तक का दौरा किया था। उन्होंने 11 महीने तक दौरा कर-कर के माहौल बनाया, लेकिन अंत में उन्हें ही किनारे कर दिया गया। स्वयं लालू यादव एन्ड कम्पनी भी इस प्रदर्शन से दूर रही, जबकि कांग्रेस के साथ ये कंधे से कंधा मिलाने को तैयार थे!

पता नहीं क्यों एक कारण हमें “सुशासन बाबू” का बेंगलुरु में स्वागत भी लगता है. बताया जाता है कि भारत के 4 अलग-अलग हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते हुए 4 संयोजक बनाए जाने की चर्चा चली, लेकिन छोटे विपक्षी दलों ने इस पर भी ऐतराज जताया। अंत में घोषणा कर दी गई कि 11 सदस्यों की एक समिति बनेगी जो ‘कॉमन मिनिमम प्रोग्राम’ का ड्राफ्ट तैयार करेगी और साथ ही संयोजक के नाम का ऐलान भी मुंबई की बैठक में किया जाएगा। साफ़ है, ‘संयोजक’ बनने के लिए ही नीतीश कुमार ‘नाराज फूफा’ बन कर मुँह फुलाए हुए हैं।

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इतना ही नहीं नीतीश कुमार की नाराजगी का तीसरा कारण – बेंगलुरु में ‘The Unstable Prime Ministerial Candidate’ बताते हुए उनके नामों के साथ पोस्टर लगाए गए। साथ ही इन पोस्टरों में बिहार में ध्वस्त हुए पुलों के बारे में भी बताया गया। बता दें कि बिहार में हाल ही में सुल्तानगंज और सहरसा समेत कई इलाकों में पुल ध्वस्त हुए हैं। ऐसा स्वागत कौन करता है भाई?

कुल मिलाकर सम्पूर्ण कथा का सार ए है कि I.N.D.I.A. की स्थापना तो ‘इंडिया’ को ‘मोदी के अत्याचारों’ से मुक्त करने हेतु है. परन्तु क्या वे खुद तत्पर हैं, या फिर ये २०१९ से भी बड़ा छलावा होगी? जो भी, अभी के लिए राजनीतिक यात्रा काफी रोचक होने वाली है, परन्तु स्मरण रहे, आएगा तो मोदी ही!

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