मणिशंकर अय्यर इज बैक इन एक्शन!

जिससे राहुल भी भयभीत हो, वो मणिशंकर अय्यर!

वो आ गया, देखो, वो आ गया! यह बात कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर पर शत प्रतिशत चरितार्थ होती है. नरेंद्र मोदी पर इनके विचारों ने भारतीय राजनीति में व्यापक परिवर्तन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कुछ लोगों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने में इनके “सुवचनों” का भी बहुत बड़ा योगदान था!

जैसे जैसे २०२४ निकट आ रहा है, लोकसभा चुनावों को लेकर चर्चा तेज हो रही है. लेकिन जिन लोगों का अब भी ये मानना है कि २०२४ की राह पीएम नरेंद्र मोदी के लिए सरल नहीं होने वाली, उसे चुनौती के रूप में लेते हुए मणिशंकर अय्यर पुनः मैदान में उत्तर पड़े हैं!

बरखा दत्त द्वारा हाल ही में लिए गए एक साक्षात्कार में, मणिशंकर अय्यर ने एक बार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने  “नीच” टिप्पणी के संबंध में अपनी ढिठाई का प्रदर्शन किया। मियां कल्याण सिंह की नकल करते हुए कह रहे थे कि उन्हें आज भी इस बयान पर कोई पछतावा नहीं! अब सब अमर सिंह जैसे थोड़े ही होते हैं!

2017 में, अय्यर ने यह टिप्पणी करी कि पीएम मोदी “जैसा नीच” प्रधान मंत्री की भूमिका के लिए अनुपयुक्त हैं। हालाँकि, उनकी “चायवाला” टिप्पणी की तरह, ये टिपण्णी उलटे भाजपा के बड़े काम आई, विशेषकर गुजरात के तत्कालीन विधानसभा चुनाव में!

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परन्तु अय्यर बाबू की बकैती इतने पे समाप्त नहीं होती! अपने संस्मरण “मेमोयर्स ऑफ ए मेवरिक: द फर्स्ट फिफ्टी इयर्स (1941-1991)” के लॉन्च के दौरान उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें पूर्व प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव के कथित “सांप्रदायिक” पक्ष के बारे में पता चला। अय्यर ने दावा किया कि 1992 में रामेश्वरम से अयोध्या तक 44 दिन की “राम रहीम यात्रा” के दौरान पीएम राव ने उन्हें भुवनेश्वर से दिल्ली बुलाया था.

इस मुलाकात के दौरान पीएम राव ने अय्यर की यात्रा पर कोई आपत्ति तो नहीं जताई लेकिन धर्मनिरपेक्षता की उनकी परिभाषा की आलोचना की. अय्यर के मुताबिक, राव ने उनसे कहा कि उन्हें यह समझने की जरूरत है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है। इससे अय्यर हतप्रभ रह गए और उन्होंने राव से उनके बयान के बारे में पूछा और तर्क दिया कि यह भाजपा की स्थिति को प्रतिबिंबित करता है। हालाँकि, राव ने कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं दी और अय्यर को अपनी यात्रा जारी रखने की अनुमति दे दी।

अय्यर का कहना है कि, उनके विचार में, पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने केवल भाजपा के सांप्रदायिक दृष्टिकोण को बढ़ाया, और एक प्रकार से वह “भाजपा की बी टीम थे”! उन्होंने बरखा दत्त के साथ अपने साक्षात्कार में यह स्पष्ट कर दिया कि वह खुद को नरसिम्हा राव कांग्रेस के बजाय नेहरू कांग्रेस के आदर्शों के साथ जोड़ते हैं।

शायद इसीलिए अय्यर भारत की तुलना में पाकिस्तान में अधिक स्वीकार्य है, इस तथ्य के बावजूद कि उनके और उनकी पार्टी द्वारा परोक्ष रूप से प्रचारित सांप्रदायिकता के कारण उनके पूर्वजों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। यूँ ही इन्हे भाजपा का “बेस्ट एसेट” नहीं कहा जाता. जब जब इनका मुख खुलता है, भाजपा के वोट शेयर में मिनिमम ५ प्रतिशत की वृद्धि गारंटी समझिये!

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