नीरज चोपड़ा: 23 जुलाई 2016 को, भारत के पानीपत के खंडरा गांव से नाता रखने वाले, एक 19 वर्षीय युवक ने वैश्विक मंच पर धूम मचाई और एक अमिट छाप छोड़ी। असाधारण एथलीटों के लिए तरसते भारतीय खेल परिदृश्य के बीच इस विनम्र युवक ने अपने देश और वैश्विक क्षेत्र दोनों को आश्चर्यचकित कर दिया। 86.48 मीटर की आश्चर्यजनक दूरी के साथ, रिकॉर्ड और उम्मीदों को समान रूप से चकनाचूर करते हुए, इन्होने भाला फेंका। इस विजयी थ्रो ने न केवल उनका नाम उनके देश के इतिहास में अंकित कर दिया, बल्कि एक नया राष्ट्रीय और जूनियर रिकॉर्ड भी स्थापित किया।
७ वर्ष बाद, आज सूबेदार नीरज चोपड़ा को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं! वे भारतीय स्पोर्ट्स के नए प्रतीक चिन्ह बन चुके हैं. निरंतरता इनकी दिनचर्या है, और हाल ही में इन्होने अपनी प्रतिबद्धता सिद्ध करते हुए IAAF विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप्स में स्वर्ण पदक प्राप्त किया, जो भारत के लिए एक अभूतपूर्व, अविस्मरणीय उपलब्धि है.
अब ऐसे में मेजर ध्यानचंद जैसी विभूति से इनकी तुलना स्वाभाविक है, जिन्होंने हॉकी में अपनी उत्कृष्टता से खेल मानचित्र पर भारत का नाम अंकित किया. तो क्या सूबेदार नीरज चोपड़ा सच में एथलेटिक्स के क्षेत्र में ही सही, परन्तु मेजर ध्यानचंद के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं? आइये, आज इसी पर चर्चा करते हैं!
क्या समानताएं हैं सूबेदार नीरज चोपड़ा और मेजर ध्यानचंद में?
सच कहें तो नीरज चोपड़ा के लिए इतिहास रचना और पदक जीतना अब एक आदत सी बन चुकी है. उनका ध्यान केवल अपने लक्ष्य पर केंद्रित है, न एक पग इधर, न एक पग उधर. भाला फ़ेंक में उनकी यही तत्परता एवं एकाग्रता भारत का नाम वैश्विक खेल जगत में ऊँचा रखने को उद्यत है!
अब आप भी सोच रहे होंगे, नीरज ने ऐसा भी क्या कर दिया कि उनकी तुलना सीधे मेजर ध्यानचंद से होने लगी? इन दोनों की खेल यात्रा में कई ऐसी समानताएं है, जिनसे परिचित होकर आप भी भौंचक्के हो जाओगे!
केवल १६ वर्ष की आयु में मेजर ध्यानचंद ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी के माध्यम से अपने हॉकी स्किल्स को तराशा! इसी भांति १६ वर्ष की आयु में नीरज चोपड़ा ने अंतर्राष्ट्रीय एथलेटिक्स में अपना कदम रखा. दोनों ने अपनी प्रतिभा के लिए भारतीय थलसेना को अपने मार्ग के रूप में चुना, और दोनों ही निरंतर रूप से सफलता प्राप्त करने की दिशा में आगे बढे!
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अब मेजर ध्यानचंद को ही देख लीजिये. “हॉकी के जादूगर” ने जो कलाबाज़ी फील्ड पर दिखाई, उसका आज भी कोई तोड़ नहीं. अपने डेब्यू ओलम्पिक में ही १४ गोल ठोंकना कोई मज़ाक की बात नहीं! परन्तु ऐसे ही थे मेजर ध्यानचंद, जिन्होने ऐसी विरासत बनाई कि १९७० तक भारतीय हॉकी ने वैश्विक खेल जगत में अपनी धाक जमाये राखी. १९६४ तक भारतीय हॉकी का उत्तर कइयों के पास नहीं था, जिसका श्रेय प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मेजर ध्यानचंद के कौशल को ही जाता है!
ठीक इसी प्रकार २०१८ में नीरज चोपड़ा ने कंसिस्टेंसी को ही अपने सफलता की सीढ़ी बनाया. उनकी प्रारम्भिक यात्रा इतनी भी सरल नहीं थी, २०१७ में उन्हें काफी असफलताओं का भी सामना करना पड़ा. परन्तु नीरज चोपड़ा ने कभी भी अथक परिश्रम, डेडिकेशन एवं तीव्र फोकस पे ध्यान नहीं छोड़ा. इनका भाला फ़ेंक अपने आप में एक कला है! हाँ, हॉकी से भले इनका कोई नाता न हो, लेकिन जिजीविषा और तत्परता में ये मेजर ध्यानचंद से कहीं भी कम नहीं!
क्या पेरिस २०२४ में असंभव को संभव कर सकते हैं सूबेदार नीरज चोपड़ा?
परन्तु सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न अब भी विद्यमान है: क्या नीरज चोपड़ा २०२४ के पेरिस ओलम्पिक में असंभव को संभव कर पाएंगे? क्या वे ९० मीटर या इससे ऊपर फ़ेंक पाएंगे? इसका स्पष्ट उत्तर है : हाँ भाई हाँ!
आंकड़ों पर एक दृष्टि से स्थिति बिलकुल क्रिस्टल क्लियर हो जाएगी! 8 सितंबर, 2022 को, नीरज चोपड़ा ने इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया, और प्रतिष्ठित डायमंड लीग में जीत हासिल करने वाले पहले भारतीय बने। नीरज ने 88.44 मीटर का थ्रो फेंकते हुए ये कीर्तिमान रचा!
उनके उत्थान की कथा केवल विजय पर ही नहीं रुकती; यह निरंतर विकास की एक अद्भुत यात्रा है। नीरज ने लगातार अपने कौशल को निखारा है, लगातार अपने व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ और यहां तक कि राष्ट्रीय रिकॉर्ड में भी सुधार किया है। स्टॉकहोम लीग उनके लिए साबित करने का मैदान बन गया, जिसमें इन्होने 89.94 मीटर का कीर्तिमान रचा, जिसने पिछले राष्ट्रीय मानकों को ध्वस्त कर दिया। अगर पिछले २० वर्षों का ओलम्पिक रिकॉर्ड देखे, तो इनका यह प्रदर्शन ओलम्पिक पोडियम पर स्थान दिलाने के लिए पर्याप्त है, और सबसे विकट स्थिति में भी इन्हे मिनिमम रजत पदक की गारंटी है!
अपने समकालीनों – एंडरसन पीटर्स, जैकब वडलेज और अरशद नदीम से तुलना में, नीरज चोपड़ा एक अद्वितीय निरंतरता का प्रदर्शन करते हैं। कुछ लोगों के विपरीत, जो 90 से अधिक मीटर का उल्लेखनीय थ्रो हासिल कर केवल 80 या 75 मीटर तक फिसल सकते हैं, नीरज का मानक लगातार ऊंचा बना हुआ है। यहां तक कि 88-मीटर के निशान के आसपास मंडराने वाला थ्रो भी 80 मीटर से ऊपर के प्रदर्शन की गारंटी देता है – जो उनकी अटूट उत्कृष्टता का प्रमाण है।
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ऐसे ही अगर इनकी तुलना जैवलिन जगत के लीजेंड Jan Zelezny, Uwe Hohn और Andreas Thorkildsen से की जाये, तो भी ये किसी भी स्थिति में कम नहीं है. नीरज तो अभी २६ वर्ष के भी नहीं है, और उक्त एथलीट्स को अपने पीक तक आते आते ३० वर्ष हो गए. स्वयं Jan Zelezny ने जब 1996 में विश्व कीर्तिमान रचा, तो वे ३० वर्ष के थे. ऐसे में 2028 तक नीरज के पास 98.48 मीटर के विश्व रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए भी एक सुनहरा अवसर है, और उनकी निरंतरता ही उनका सबसे वरदान है!
यह कहना गलत नहीं होगा कि कैप्टन विक्रम बत्रा द्वारा लोकप्रिय बनाया गया नारा – “ये दिल मांगे मोर” – सूबेदार नीरज चोपड़ा पर एकदम सटीक बैठता है! ऐतिहासिक ओलंपिक जीत के साथ, उन्होंने ट्रैक और फील्ड पर भारत की पदकों की प्यास बुझाई। तब से, उनकी यात्रा निरंतर उत्थान की रही है। सूबेदार नीरज चोपड़ा के संकल्प में दृढ़ता इस बात का प्रमाण है – वह केवल रिकॉर्ड का पीछा नहीं कर रहे हैं; वह एक ऐसी विरासत का पीछा कर रहा है जिसकी कोई सीमा नहीं है, एक नियति जो उसे वहां जाने के लिए प्रेरित करती है जहां पहले कोई भारतीय भाला फेंकने वाला नहीं गया है।
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