सूर्य मिशन: चंद्रयान-3 की अपार सफलता के पश्चात् इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने 26 अगस्त 2023 को बताया कि शीघ्र ही सूर्य के अध्ययन हेतु आदित्य एल-1 नामक मिशन भेजा जाएगा। सोमनाथ ने कहा कि सूर्य से संबंधित भारत के पहले स्पेस मिशन आदित्य एल-1 श्रीहरिकोटा पहुँच गया है और यह सितंबर के पहले सप्ताह में लॉन्च होने के लिए तैयार है। तारीखों की घोषणा जल्दी ही की जाएगी।
अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है। आदित्य एल-1 को लैग्रेंज बिंदु 1 के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने से उपग्रह को बिना किसी रुकावट के सूर्य लगातार दिखेगा।
एस सोमनाथ के अनुसार, “प्रक्षेपण के बाद इसे पृथ्वी से लैग्रेंज प्वाइंट 1 (एल1) तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे। हमें तब तक इंतजार करना होगा।” आदित्य एल-1 मिशन लैग्रेंज प्वॉइंट-1 के आसपास का अध्ययन करेगा। यह विभिन्न तरंग बैंडों में प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों, कोरोना का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड ले जाएगा।
अब प्रश्न ये उठता है, भारत के प्रस्तावित सूर्य मिशन में किस बात का अध्ययन होगा? सभी ग्रह, पृथ्वी और हमारे सौर मंडल के बाहर के ग्रह अपने नजदीकी तारे से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। सूर्य का मौसम पूरे सिस्टम के मौसम को प्रभावित करता है। इसमें किसी तरह का बदलाव उपग्रहों की चाल में परिवर्तन, इलेक्ट्रॉनिक्स को नुकसान और पृथ्वी पर बिजली की समस्या पैदा कर सकते हैं। अंतरिक्ष के मौसम को समझने के लिए सूर्य की घटनाओं के बारे में जानना महत्वपूर्ण है।
सूर्य का अध्ययन करने से हमें अपनी आकाशगंगा और उससे परे के तारों के बारे में जानकारी मिलती है। सूर्य की अत्यधिक गर्मी और चुंबकीय व्यवहार उन घटनाओं को समझने का एक अनूठा तरीका प्रदान करते हैं जिन्हें हम किसी प्रयोगशाला में दोबारा नहीं बना सकते। इस तरह के शोध के लिए यह एक विशेष प्राकृतिक प्रयोगशाला की तरह है।
ऐसे में आदित्य एल-1 के अंतर्गत सूर्य की बाहरी परत, उसका उत्सर्जन, उससे उत्पन्न वायु एवं उसके विस्फोटों और ऊर्जा का अध्ययन किया जाएगा। पृथ्वी के केंद्र से 15 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित सूर्य के फोटो यह लेता रहेगा और उसे पृथ्वी पर भेजता रहेगा। यह अध्ययन पाँच वर्ष तक जारी रहेगा।
आदित्य एल-1 पर लगे दो प्रमुख उपकरण – एसयूआईटी और वीईएलसी – पूरी तरह से घरेलू हैं – जिन्हें भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया है। इसके अलावा, वीईएलसी सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करने के लिए ‘स्पेक्ट्रोपोलारिमेट्रिक माप’ करेगा, जो अंतरिक्ष में किसी भी देश द्वारा पहली बार उपयोग किया जाएगा।
ऐसे में आदित्य एल १ न केवल एक अतुलनीय मिशन है, अपितु स्पेस जगत में भारत के बढ़ते कद का भी प्रतिबिम्ब है. इस मिशन से भारत शीघ्र ही अंतरिक्ष जगत में अपनी अमिट पहचान बनाने के लिए पूरी तरह तैयार है!
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