TVS success story: जब आप भारत में मोटरबाइक के बारे में सोचते हैं, तो आपके दिमाग में कौन से ब्रांड आते हैं? टीवीएस, हीरो, रॉयल एनफील्ड और होंडा, यही न? सबकी अपनी अपनी कथाएं हैं, परन्तु TVS के उत्पत्ति की कथा सबसे रोचक और अनोखी है । वो क्यों? क्योंकि टीवीएस हमेशा से मोटरसाइकिल गेम में नहीं था। वास्तव में, उन्होंने अपनी यात्रा ट्रकों और बसों में अपनी सेवाओं से प्रारम्भ की!
चौंक गए क्या? 80 के दशक के अंत तक टीवीएस हेवी-ड्यूटी व्हील्स एवं अन्य ऑटोमोटिव पार्ट्स पर प्रमुख तौर पे केंद्रित था। लेकिन जैसे ही दोपहिया वाहनों की दुनिया में उन्होंने कदम रखने का निर्णय किया, तो उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। तो स्वागत है आप सभी का, और जुड़िये हमारे साथ जुड़ें TVS के अद्भुत उत्पत्ति की रोमांचक यात्रा पे, और जानते हैं कि कैसे ट्रकों और बसों में विशेषज्ञता से प्रारम्भ करते हुए इन्होने मोटरसाइकिल मार्केट में अपनी अलग पहचान बनाई!
TVS success story: छोटी सी शुरुआत
TVS की कथा (TVS success story) प्रारम्भ होती है इसके संस्थापक, टीवी सुंदरम अयंगर के दूरदर्शी दृष्टिकोण, जिनके नाम पर TVS रखा गया! 1911 में बहुत पहले, उन्होंने ट्रांसपोर्ट सेवा में अपना भाग्य आजमाने का निर्णय लिया, जब भारतीयों के पास ऑटोमोबाइल होना एक स्वप्न समान था। उनका विचार बड़ा सरल परन्तु अत्यंत प्रभावी था। वह अपने कम्पनी के माध्यम से एक ऐसा ‘परिवार’ बनाना चाहते थे, जहाँ गुणवत्ता और उच्चतम सुविधाओं की कोई कमी न हो.
इसी उद्देश्य से उन्होंने ‘TV Sundram Iyengar and Sons Group of Companies’ की नींव रखी, जो बाद में चलकर TVS Group में परिवर्तित हुआ। उन्होंने विदेशी ऑटोमोबाइल में डीलरशिप से लेकर ट्रक बनाने और बस सेवाओं का प्रबंधन करने सहित सभी प्रकार की सेवाएं प्रदान की। देश को स्वतंत्रता मिलते मिलते टीवीएस अपने आप में एक सशक्त और समृद्ध परिवहन उद्यम था! परन्तु संतुष्ट होना टीवी सुंदरम के शब्दकोष में नहीं था। वे चाहते थे कि एक ऐसी सवारी बने जो पीठ और बैंक को नुकसान पहुंचाए बिना दो लोगों को तिरूपति तक ले जा सके, और इस तरह उन्हें मोपेड बनाने का विचार आया।
देर से प्रविष्ट किये, पर सोच समझकर किये!
जब टीवीएस ने ऑटोमोटिव जगत में प्रवेश किया, तो काफी देर हो चुकी थी। उस समय बजाज का दुपहिया वाहन मार्केट में वर्चस्व क्षीण होने लगा, और हीरो ग्रुप ने साइकिल से अपग्रेड करते हुए मोटरसाइकिल उत्पादन में प्रवेश किया था। इसके अतिरिक्त सुज़ुकी और होंडा तो भारतीय अर्थव्यवस्था के ‘उदारीकरण’ के लिए बाट जोह रहे थे। इसके अतिरिक्त मोटरसाइकिल जगत में TVS एंट्री का एक और भी कारण था। इसी समय TVS ने आधिकारिक तौर पर मोपेड उत्पादन में प्रवेश किया था। इन छोटी मशीनों का उद्देश्य भारतीय बाज़ार, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक विस्तार करना था। यह एक चतुराई भरा कदम था, लेकिन इसकी महिमा अल्पकालिक थी।
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तीव्र प्रतिस्पर्धा एवं कठिन समय ने टीवीएस को बुरी तरह प्रभावित किया। वास्तव में, हालात इतने कठिन हो गए कि उन्हें 1990 में अपना एक कारखाना तक बंद करना पड़ा। लेकिन कभी-कभी, कठिन समय एक चेतावनी की तरह होता है, जहाँ पुनर्विचार करने और पुनर्निर्माण करने का अवसर मिलता है। यही किया तत्कालीन प्रबंधक वेणु श्रीनिवासन ने! TVS ने गुणवत्तापूर्ण सामान बनाने पर अथक परिश्रम किया, अनुसंधान और विकास में अपना दिल लगाया और अपने उत्पादन खेल को बेहतर बनाया। उन्होंने लागत में कटौती, कार्यबल में कटौती और इन्वेंट्री को नियंत्रण में रखकर भी अपनी कमर कस ली। इसके अतिरिक्त सुज़ुकी के साथ एक विशिष्ट अनुबंध कर TVS ने अपने R & D को भी सर्वोत्तम बनाने में कोई प्रयास अधूरा नहीं किया!
फिर क्या था, सफलता झक मारकर आनी थी! 1992-93 में, टीवीएस ने पांच नए उत्पाद पेश किए, जिनमें समुराई, शोगुन, मैक्स 100 और मैक्स 100आर शामिल थे। 1994 में, उन्होंने टीवीएस स्कूटी पेश किया, जो आज भी काफी लोकप्रिय है। इसकी लोकप्रियता तो ऐसी है कि आज भी आधुनिक स्कूटर को, चाहे वह किसी भी ब्रांड की हो, स्कूटी ही बुलाया जाता है! केवल पांच वर्षों में, TVS भारत के दोपहिया वाहन उद्योग में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गया।
1994 तक, 100cc सेगमेंट में उनकी बाजार हिस्सेदारी 12 से 20 प्रतिशत तक बढ़ गई थी। और 1995 में, टीवीएस-सुजुकी का कारोबार 620 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जिससे वे भारत की दूसरी सबसे बड़ी दोपहिया कंपनी बन गईं। हालाँकि 2001 में सुजुकी एवं TVS की राह अलग हो गई, परन्तु TVS प्रगति के मार्ग पर अडिग रहा।
क्यों है TVS “मेक इन इंडिया” का सच्चा प्रतीक!
आज TVS केवल एक ब्रांड नहीं है, ये ऑटोमोबाइल जगत में उत्कृष्टता का प्रतीक है। उन्होंने भारत के सबसे बड़े ऑटोमोटिव कम्पोनेंट निर्माता के रूप में प्रतिष्ठा बनाई है। वास्तव में, उनके पास एक प्रतिष्ठित उपाधि है – डेमिंग पुरस्कार, जो मूल रूप से ऑटोमोटिव जगत में गुणवत्ता के लिए दिया जाता है। मजे की बात, इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीतने वाली पहली चार भारतीय कंपनियां टीवीएस समूह का हिस्सा हैं।
2016 तक TVS की ब्रैंड वैल्यू 50,000 करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व वाली हो चुकी थी। इन्होने इसे 40000 कुशल कर्मचारियों के सहयोग से पूर्ण किया। परन्तु लेकिन टीवीएस सिर्फ भारत की सीमाओं के भीतर ही नहीं चमकता; यह वैश्विक मंच पर “मेक इन इंडिया” का सच्चा राजदूत है। 2016 में, टीवीएस ने बीएमडब्ल्यू बाइक का उत्पादन शुरू किया और तब से कंपनी ने 79,088 इकाइयों का उत्पादन किया है, जिनमें से 73,183 इकाइयां निर्यात की गईं और 5,905 इकाइयां भारत में बेची गईं।
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वर्तमान वित्त वर्ष में टीवीएस मोटर की बड़ी योजनाएं हैं। वे 1,800 करोड़ रुपये का भारी निवेश करने को तैयार हैं। इसमें से लगभग आधा, 900-1,000 करोड़ रुपये, पूंजीगत व्यय में जाएंगे (यह निर्माण सामग्री के लिए फैंसी बात है), और बाकी, लगभग 800 करोड़ रुपये, अन्य निवेशों के लिए होंगे। इतना ही नहीं: वे अगली तिमाही में अपना बिल्कुल नया इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर पेश करने के लिए तैयार हैं।
TVS का वैश्विक स्तर पर प्रभाव कितना है, ये आप अफ्रीका से पता लगा सकते हैं! चीन अपने दोयम दर्जे के उत्पाद दूसरे देशों में डंप करने के लिए कुख्यात रहा है। परन्तु पहले कोविड और फिर चीन की हेकड़ी से खिन्न होकर कई अफ्रीकी देशों ने चीन से नाता तोड़ना ही बेहतर समझा, जिसमें ऑटोमोबाइल इम्पोर्ट्स भी सम्मिलित थे. इसी बात का भारत ने भरपूर लाभ उठाया, जिसमें TVS और बजाज जैसे कंपनियों ने भी अपना योगदान दिया!
इन सबका ड्राइविंग फ़ोर्स है: टीवीएस का गुणवत्ता के प्रति प्रेम। वे उत्पादों को बेहतर बनाने, परिवर्तन के अनुकूल ढलने और चुनौतियों पर विजय पाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यह सिर्फ बाइक बनाने के बारे में नहीं है; यह सर्वोत्तम बाइक बनाने के बारे में है। तो, टीवीएस की कहानी (TVS success story) सिर्फ बाइक के बारे में नहीं है; यह दृढ़ संकल्प, विस्तार और उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता से भरी यात्रा के बारे में है।
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