क्यों मनीष कश्यप से इतना कुढ़ती है नीतीश सरकार?

नीतीश कुमार का सबसे बड़ा दुःस्वप्न

नीतीश कुमार को सबसे ज्यादा डर किससे लगता है?

क्या ये पीएम नरेंद्र मोदी हैं? क्या ये हैं मास्टर रणनीतिकार अमित शाह? या यह सोनिया गांधी या ममता बनर्जी हैं, जो हास्यास्पद INDI गठबंधन में बड़ा हिस्सा चाहती हैं?

असल में वह व्यक्ति मनीष कश्यप नाम का एक यूट्यूबर है, जो पांच महीने से अधिक समय से सलाखों के पीछे बंद है।

तो, मनीष कश्यप के बारे में ऐसा क्या है जिसने नीतीश कुमार प्रशासन को भयाक्रांत कर दिया है? खैर, यह सब तब शुरू हुआ जब इस निडर यूट्यूबर  ने तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों की दुर्दशा पर प्रकाश डालने का निर्णय किया। उन्होंने अपने शब्दों में कोई कमी नहीं की और मौजूदा बिहार प्रशासन पर इन मजदूरों की पीड़ा के प्रति पूरी तरह से उदासीन और संवेदनहीन होने का आरोप लगाया।

तब से, मनीष कश्यप के साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है जैसे कि वह एक खूंखार अपराधी हो, एवं अफजल गुरु या शरजील इमाम जैसे लोगों से भी ज्यादा ‘खतरनाक’ व्यक्ति हो। कम से कम नीतीश बाबू और उनके चेलों को तो यही लगता है!

बिहार पुलिस ने 22 सितंबर को ‘सच तक न्यूज़’ यूट्यूब चैनल के संस्थापक मनीष कश्यप को राजधानी पटना में स्थित कोर्ट में पेश किया था। इस दौरान मनीष ने मीडिया से बात की थी। इसको लेकर अब प्रशासन ने 5 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया है। दरअसल, मनीष कश्यप ने RJD सुप्रीमो लालू यादव और बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर हमला बोलते हुए कहा था कि वह चारा चोर के बेटे नहीं हैं। इसलिए डरेंगे नहीं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पटना SSP राजीव मिश्रा ने 5 पुलिसकर्मियों के सस्पेंशन की पुष्टि की है। साथ ही कहा कि मामले की जाँच की जा रही है। साथ ही मनीष कश्यप को बेऊर जेल से कोर्ट लाने और ले जाने वाली एस्कॉर्ट टीम में शामिल पुलिसकर्मियों से स्पष्टीकरण माँगा गया है। मनीष कश्यप का वीडियो सामने आने के बाद पुलिस मुख्यालय ने इस पर संज्ञान लिया है।

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वहीं ‘आर्थिक अपराध शाखा’ के एडीजी नैयर हसनैन खान ने कहा कि जुडिसियल कस्टडी के दौरान मनीष कश्यप ने जो बातें कहीं थीं, उस पर पटना एसएसपी को जाँच करने के लिए कहा गया था।

अब ऐसे तो एमके स्टालिन भी कोई दूध के धुले नहीं, परन्तु उनके विरोधी  मरीदास [जो मनीष की भांति यूट्यूबर हैं] का भी ऐसा हाल नहीं हुआ, जैसा मनीष के साथ हो रहा है! और हमें मोहम्मद ज़ुबैर के मामले को नहीं भूलना चाहिए, जो कहीं अधिक गंभीर आरोपों का सामना कर रहा है जिसके लिए उसे आजीवन कारावास की सज़ा हो सकती है। परन्तु उसके साथ भी ऐसा बर्ताव नहीं हुआ, जैसा कि मनीष कश्यप के साथ हो रहा है।

यह डर बिहार में मनीष कश्यप के प्रभाव के बारे में बहुत कुछ बताता है, एक ऐसा प्रभाव जो बिहार सरकार द्वारा कुचलने के दमनकारी प्रयासों के बावजूद कम नहीं हुआ है। ऐसे राजनीतिक परिदृश्य में जहां सत्ता के सामने सच बोलने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, मनीष कश्यप का अटूट साहस एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि लोगों की आवाज से सबसे शक्तिशाली को भी विनम्र किया जा सकता है। जैसे-जैसे उनकी कहानी सामने आती जा रही है, यह स्वतंत्र भाषण की स्थायी शक्ति और अन्याय के खिलाफ खड़े होने के व्यक्तियों के दृढ़ संकल्प का एक प्रमाण बनी हुई है।  मनीष कश्यप के लोकप्रियता से बिहार के भ्रष्ट भयभीत हैं, और ये भय होना भी चाहिए!

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