Festival holidays: क्या ममता नीति का अनुसरण कर रहे नीतीश बाबू?

अब क्या शरिया भी लागू होगा बिहार में?

Festival holidays: क्या नीतीश कुमार बिहार के लिए ममता बनर्जी मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं? हाल की घटनाओं से तो यही प्रतीत हो रहा है। 29 अगस्त को बिहार शिक्षा विभाग ने एक अधिसूचना जारी की, जिससे राज्य भर में चिंताएं की लहर कौंध गई। अधिसूचना में सितंबर और दिसंबर के बीच त्योहार की छुट्टियों (festival holidays) की संख्या में उल्लेखनीय कमी की घोषणा की गई, जिसकी संख्या 23 से अब मात्रा 11 रह गई।

इस अधिसूचना के लिए मुख्य सचिव केके पाठक जिम्मेदार थे, और इसे बिहार में स्कूली शिक्षा प्रणाली में सुधार के उपाय के रूप में तैयार किया गया था।

देखिए, छुट्टियों को कम करना बच्चों को विद्यालय आने के लिए प्रेरित करना उन्नति के लिए महत्वपूर्ण कदम प्रतीत होता है, परन्तु जिस तरह से यह राज्य में केवल हिंदुओं के त्योहार की छुट्टियों (festival holidays) को प्रभावित करता है, उससे एक समुदाय के लिए चिंता अवश्य पैदा होती है और इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए दो बातें कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी

1.ये कोई अकस्मात् निर्णय नहीं है जो रातों रात ले लिया गया है अपितु नीतीश सरकार की एक सोची समझी घटिया राजनीतिक रणनीति है जिसका सीधा सम्बन्ध तुष्टिकरण से है।

2. नीतीश कुमार के तुष्टिकरण की राजनीति और तुगलकी शासन वाले रवैयी में हिंदू और हिंदू त्योहारों के लिए कोई जगह शेष नहीं रहा है।

आपको बता दें की अधिसूचना के अनुसार, रक्षाबंधन की छुट्टी पूरी तरह खत्म कर दी गई है, जबकि दुर्गा पूजा के लिए छुट्टियों (festival holidays) की संख्या छह से घटाकर तीन कर दी गई है. इसी तरह, दिवाली और छठ के लिए पहले आवंटित नौ छुट्टियां अब घटाकर सिर्फ चार कर दी गई हैं।

चिंता बढ़ाने वाला तथ्य यह है कि सीमित अवकाश भत्ता इस तथ्य से और भी कम हो गया है कि इनमें से कुछ छुट्टियां रविवार को पड़ती हैं। उदाहरण के लिए, 3 दिवसीय दुर्गा पूजा अवकाश में रविवार शामिल है, साथ ही 2 दिवसीय छठ अवकाश भी शामिल है। यहां तक कि दिवाली की एकमात्र छुट्टी भी रविवार को पड़ती है, जिससे नीतीश कुमार के तुगलकी फरमान का असर और बढ़ जाता है।

बता दें की पहले, दिवाली से महापर्व छठ पूजा तक नौ दिनों की छुट्टियां होती थीं, जिससे उत्सव और पारिवारिक समारोहों के लिए पर्याप्त समय मिलता था परंतु नए अवकाश कार्यक्रम के साथ, दिवाली के लिए केवल एक दिन और छठ पूजा के लिए रविवार सहित दो दिन की छुट्टी होगी। छुट्टियों (festival holidays) के समय में इस कटौती से बिहार में कई हिंदू खास कर शिक्षक वर्ग स्वाभाविक रूप से परेशान हैं। इससे भी अधिक निराशाजनक बात यह है कि न केवल राजनीतिक पदों पर बैठे सत्ताधीश इस गंभीर मुद्दे को समझने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं, और इनके साथ-साथ राज्य के शिक्षण संकाय के प्रति अधिकारीवर्ग का रवैया भी काफी उदासीन है।

जिस बात ने राज्य में लगे इस आग में घी डालने का काम किया है वह यह है कि इन परिवर्तनों से कोई भी इस्लामी त्योहार प्रभावित नहीं हुआ है और इस असंतुलन के कारण हिंदू समुदाय में भारी आक्रोश फैल गया है, कुछ लोगों ने सरकार पर एक धर्म की तुलना में दूसरे धर्म का पक्ष लेने का आरोप लगाया है जो नीतीश कुमार की सरकार को देखते हुए सत्य ही प्रतीत हो रहा है।

इस पर बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने पोस्ट कर अपनी निराशा व्यक्त की, “शिक्षा विभाग, बिहार सरकार ने दुर्गा पूजा, दिवाली और छठ पूजा पर छुट्टियां रद्द कर दी हैं। कल, वे शरिया लागू कर सकते हैं और हिंदू त्योहारों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा सकते हैं।”

परन्तु इस राजनीतिक धूर्तबाजी के बीच एक बात किसी से नहीं छुपा है वह है बिहार के अध्यापकों पर हो रहा अन्याय।

इस घटना पर पटना के सरकारी स्कूल की शिक्षिका सीमा कुमारी ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “यह सरकार की मनमानी है। वे ‘छठ’ जैसे त्योहार पर केवल एक छुट्टी दे रहे हैं।” यह तो तय है कि उन त्योहारों के दिनों में बच्चों की संख्या बहुत कम होगी। चाहे दो आएं या 20 या 200, हमें आकर पढ़ाना ही है।’

बिहार के शिक्षक संघ, जिसे ‘एजुकेटर्स ऑफ बिहार’ के नाम से जाना जाता है, ने एक बयान जारी कर फैसले की निंदा की। उन्होंने बताया कि 52 रविवार और त्योहारों पर 60 छुट्टियों के बाद भी, स्कूल अभी भी साल में 253 दिन संचालित होते हैं। उन्होंने शिक्षा विभाग के फैसले को तानाशाही माना और अधिसूचना को उलटने का आह्वान किया, विरोध प्रदर्शन की धमकी दी जो राज्य सरकार की नींव को हिला सकता है।

परन्तु ये नीतीश कुमार ठहरे, जिनका मन ऐसी बेचैनी भरी पुकार से कहाँ विचलित होता. विचलित होता तो बस सत्ता से पदच्युत होने के ख्याल से. और इनके रवैये को देखते हुए लगता नहीं है कि कोई बड़ा बदलाव किया जाएगा.

विवाद के जवाब में अपने कुतर्कों से निर्णय को सही बताते हुए माननीय नीतीश बाबू ने छुट्टियों (festival holidays) में कटौती का बचाव करते हुए कहते दिखे, “हम बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं ताकि उन्हें अच्छी शिक्षा मिले, तो इसमें (छुट्टियां कम करने) गलत क्या है? अगर किसी अधिकारी या किसी को इससे कोई समस्या है, उन्हें आकर मुझे बताना चाहिए। मैं सबकी बात सुनूंगा।” धन्य है ‘सुशासन बाबू’, और धन्य है इनका ‘सुशासन’!

जाते जाते याद दिला दें कि ये वही कुर्सी कुमार [क्षमा करें, नीतीश कुमार] हैं, जिन्होंने कभी बख्तियारपुर के नाम का जोरदार बचाव किया था। ऐसे में नीतीश कुमार की मानसिकता में बदलाव और इनसे व्यवहारिकता की आशा करना दीवार से बात करने समान है!

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