ऐसा लगता है जैसे नीरो का पुनर्जन्म हो गया है, कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के रूप में! ये मज़ाक नहीं है,क्योंकि प्रधानमंत्री ट्रूडो यूक्रेनी विदूषक ज़ेलेंस्की की तर्ज पर ‘विरोधी’ बनाने और सहानुभूति हासिल करने का प्रयास करने में व्यस्त हैं; हालाँकि, कोई भी वास्तव में उनके दावों को गंभीरता से ले ही नहीं रहा है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि कनाडा लंबे समय से खालिस्तानी अलगाववादियों का समर्थक रहा है। इतना ही नहीं, जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो ने बब्बर खालसा के प्रमुख खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण के भारत के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। परमार ने कनाडा में रहते हुए कनिष्क बमबारी की योजना बनाई, जिसमें 268 कनाडाई लोगों सहित 329 लोग मारे गए।
परन्तु ये मत समझियेगा कि कनेडा में सब चंगा सी! दशकों से क्यूबेक प्रांत के निवासी एक अलग राष्ट्र की मांग कर रहे हैं। क्यूबेक का अधिकांश भाग मुख्य रूप से फ्रांसीसी है, और वहां पहले ही दो जनमत संग्रह हो चुके हैं, जिनमें से दूसरा कनाडा केवल 54,000 वोटों के अंतर से जीता था।
परन्तु क्यूबेक की ‘आज़ादी’ का मामला क्या है? इसकी ओर हाल ही में भाजपा नेता बैजयंत जय पांडा ने कनाडा की ओर से खालिस्तानी आतंकियों के बचाव और उन्हें मिल रहे समर्थन पर क्यूबेक (Quebec) जैसी दुखती रग पर हाथ रख दिया। पांडा ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “कनाडा के साथ दोस्ती को देखते हमें भारत में क्यूबेक की स्वतंत्रता के मुद्दे पर एक ऑनलाइन जनमत संग्रह कराने की व्यवस्था पर विचार करना चाहिए (खालिस्तानी अलगाववादियों को कनाडा की धरती पर ऐसा करने की अनुमति देने के लिए आभार व्यक्त करते हुए)।”
In the spirit of friendship with Canada, we in India must consider facilitating an online referendum on the Quebec independence issue (in gratitude for their allowing Khalistani separatists to try the same on Canadian soil).
Perhaps we should also offer Indian soil for the Quebec…— Baijayant Jay Panda (Modi Ka Parivar) (@PandaJay) September 20, 2023
उन्होंने आगे लिखा, “शायद हमें क्यूबेक स्वतंत्रता आंदोलन के आयोजनों के लिए उनके बलिदानों, बमबारी और हत्या के प्रयासों (फिर से, जैसे कनाडा खालिस्तानियों को अनुमति देने के लिए इतना विचारशील रहा है) के लिए भारतीय जमीन की पेशकश भी करनी चाहिए।” यहाँ उनका तात्पर्य अलगाववादियों को शरण देने से है।
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परन्तु क्यूबेक से ऐसी भी क्या तकलीफ है वर्तमान कनाडा को? दरअसल, क्यूबेक ही असली कनाडा (फ्रेंच कब्जे के समय) है। कनाडा को चार राज्यों के संघ के तौर पर बनाया गया था, जिसका प्रमुख स्तंभ है क्यूबेक। ये बाकी कनाडा से अलग इसलिए भी है, क्योंकि क्यूबेक में अंग्रेजी नहीं, बल्कि फ्रेंच भाषी लोग बहुमत में हैं।
क्यूबेक में 94 प्रतिशत लोग फ्रेंच भाषी (लिखना-पढ़ना-बोलना) हैं और वो बाकी के अंग्रेजी भाषी कनाडा से खुद को अलग देखते हैं। क्यूबेक की आजादी के लिए 1980 और 1995 में दो बार जनमत संग्रह भी हो चुका है। साल 1995 में जनमत संग्रह के नतीजों में सिर्फ 1 प्रतिशत का अंतर था।
दरअसल, अलगाव ना चाहने वाले 50.06 प्रतिशत के मुकाबले अलगाव चाहने वालों की संख्या 49.04 प्रतिशत रही। इस थोड़़े से अंतर के कारण ये जनमत संग्रह गिर गया था और क्यूबेक स्वतंत्र देश बनते-बनते रह गया था। बाद में क्यूबेक को अधिक स्वायत्तता दे दी गई। हालाँकि, अलग देश की माँग अभी भी जारी है।
क्यूबेक कनाडा में आबादी और क्षेत्रफल, दोनों के मामले में क्रमश: पहले और दूसरे नंबर का राज्य है। कनाडा से क्यूबेक के निकलने का मतलब होगा, कनाडा की कमर टूट जाना। वैसे, कनाडा में सिर्फ क्यूबेक ही नहीं, बल्कि कस्काडिया, वेस्टर्न कनाडा, अल्बर्टा और सस्केचेवान जैसे राज्य भी आजादी की माँग करते रहे हैं। ऐसे में अगर भारत ने कनाडा के अलगाववादियों की माँग को हवा दी, तो कनाडा कहीं का नहीं रहेगा। कहीं इसीलिए तो जस्टिन ट्रूडो भारत पर ‘धावा बोल’ कनाडा वासियों का ध्यान नहीं भटकाना चाहते?
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