Nijjar killing: बेचारे जस्टिन ट्रूडो! आसमान से गिरे, खजूर में अटके! भारत को इन्होने चुनौती देने से पूर्व तनिक होमवर्क कर लिया होता, तो इन्हे पता चलता कि बिना ठोस प्रमाण के तो अमेरिका भी भारत के समक्ष नहीं टिकता, तो फिर उनकी क्या हस्ती थी!
अब अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहे ट्रूडो महोदय ने अपने “मीडिया मित्रों” से सहायता की गुहार लगाई। खुद की मीडिया पूछती भी न, तो अब मरता क्या न करता, कुछ एजेंसियों ने जस्टिन महोदय के दावों को सिद्ध करने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया, जिसमें सबसे अग्रणी था “द वाशिंगटन पोस्ट”।
परन्तु जो काम “द वाशिंगटन पोस्ट” ने किया है, उसे देख तो दो ही संवाद मन में आते हैं। भारतीयों के लिए तो “भाईसाब ये किस लाइन में आ गए आप”, और ट्रूडो प्रशासन के लिए “दुश्मन न करे जो दोस्त ने वो काम किया है!” तो आज हम आपको बताएँगे कि कैसे द वाशिंगटन पोस्ट ने जाने अनजाने ट्रूडो सरकार की गजब पोल खोल दी है!
Nijjar killing: गैंगवॉर की भेंट चढ़े हरदीप?
अब द वाशिंगटन पोस्ट को कौन नहीं जानता? ये वैश्विक मीडिया में एक जाना माना नाम है। इनके पत्रकारों को अधिकतम लोग ‘सम्मान की दृष्टि’ से देखते हैं, और अधिकतम मामलों में भारतीयों के साथ इनका छत्तीस का आंकड़ा रहा है! परन्तु हाल ही में जो इन्होने हरदीप सिंह निज्जर मामले की कवरेज की है, उसे देख तो एक बार को भारतीय भी हतप्रभ हो जायेंगे। वाशिंगटन पोस्ट की माने तो हरदीप सिंह निज्जर के मृत्यु (Nijjar killing) से सम्बंधित जो प्रारंभिक साक्ष्य मिले हैं, वो सभी गैंगवॉर की ओर संकेत देते हैं।
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इतना ही, इस रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा लगता है कि जो हरदीप के साथ हुआ, वह हमने पंजाब और कनाडा दोनों में देखी है, और ऐसे ही एक घटना में 2022 में खालिस्तानी समर्थक गायक सिद्धू मूसेवाला भी मारा गया था। तो समस्या कहाँ है? असल में कुछ हफ़्तों पूर्व कैनेडियाई संसद में ट्रूडो महोदय ने बयान दिया था कि भारतीय एजेंसियों ने हरदीप सिंह निज्जर को मरवाया है, और उनके सरकार के पास पर्याप्त साक्ष्य है! परन्तु तब से एक हफ्ते से अधिक हो चुका है, और न ही ट्रूडो महोदय उन साक्ष्यों के विषय में कुछ बोलना चाहते हैं, और न ही वह साक्ष्य भारत सरकार के साथ साझा करना चाहते हैं। बताओ, चित भी मेरी और पट भी मेरी!
अब वॉशिंगटन पोस्ट के Nijjar killing रिपोर्ट की माने, खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की प्लानिंग बड़े स्तर पर की गई थी। इसमें कम से कम 6 लोग और दो कारें शामिल थीं। हत्यारे सिखों जैसी वेशभूषा में थे जिन्होंने मात्र 90 सेकंड में 34 गोलियाँ निज्जर के शरीर में उतार दीं।
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18 जून, 2022 को सरे में खालिस्तानी आतंकवादी Nijjar killing के मामले में वाशिंगटन पोस्ट की इस रिपोर्ट से कनाडा द्वारा भारत पर लगाए जा रहे आरोपों और जाँच पर सवाल खड़ा हो गया है। वहीं वाशिंगटन पोस्ट की इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि हत्या के 20 मिनट बाद पहुँची पुलिस टीमों के बीच जाँच को लेकर विवाद भी हुआ था। स्मरण रहे, ये द वाशिंगटन पोस्ट है जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं। वे कब भारत के समर्थन में कुछ लिखे थे, इसका मुझे आज तक कोई आभास नहीं।
सितम्बर से पूर्व कोई ठोस जांच ही नहीं?
क्या आपको इस बात का अंदाजा है कि सितंबर आने तक, ट्रूडो और उनके प्रशासन ने वास्तविक जांच शुरू करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया था? लगता है जैसे वे लंबे कॉफ़ी ब्रेक पर थे। लेकिन यहाँ किकर है: द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, यहां तक कि पुलिस भी पार्टी में काफी देर से पहुंची। मेरा मतलब था आ जाओ! उन्हें यह पता लगाने में ही घंटों लग गए कि किस विभाग को मामले को संभालना चाहिए। इतना कच्चा तो पाकिस्तान का ISI भी कभी नहीं था!
लेकिन रुकिए, और भी बहुत कुछ है। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में स्थानीय सिख समुदाय के सदस्यों के हवाले से एक और बम गिराया गया है, जो दावा करते हैं कि कनाडाई अधिकारी अपनी तथाकथित जांच के बारे में चुप्पी साधे हुए हैं।
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उनका कहना है कि पुलिस को घटनास्थल पर पहुंचने में बहुत समय लगा और अंतर-एजेंसी झगड़ों ने मामले को और भी बदतर बना दिया। व्यवसाय के मालिक और गुरुद्वारे के पास रहने वाले लोग कह रहे हैं कि जांचकर्ताओं ने वहां जाकर एक भी सवाल पूछने या सुरक्षा फुटेज का अनुरोध करने की जहमत नहीं उठाई। अब बात करते हैं गुरुद्वारे के केयरटेकर चरणजीत सिंह की। उनके अनुसार रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (आरसीएमपी) के इंटीग्रेटेड होमिसाईड इन्वेस्टिगेशन टीम (आईएचआईटी) को गोलियों की आवाज के बाद सामने आने में कथित तौर पर 12 से 20 मिनट का समय लगा। खासतौर पर तब जब आस-पड़ोस में भीड़ उमड़ रही हो। गोलीबारी की पहली रिपोर्ट रात 8:27 बजे आई, लेकिन ऐसा लगता है कि पुलिस को कोई जल्दी नहीं थी।
परन्तु ये तो कुछ भी नहीं है, एक भारतीय राजनयिक को निलंबित करने के बाद, कनाडाई पुलिस को अब जाकर पड़ोसियों के सीसीटीवी फुटेज में दिलचस्पी हो गई है। हरदीप की जून में हत्या कर दी गई थी, और वे अब सीसीटीवी फुटेज मांग रहे हैं? अगर ट्रूडो के आरोपों में कोई दम होता तो एक नौसिखिया जासूस भी उस सबूत को बहुत पहले ही हथिया लेता। देखो मित्रों, इंटेलिजेंस में कोई पीएचडी नहीं किया, परन्तु इतना जानता हूँ कि अगर ये एक प्रोफेशनल किलिंग का मामला होता, तो ये जल्द हो जाता, और किसी को पता तक न चलता। अब जब स्वयं वाशिंगटन पोस्ट ने अनजाने में अपना संदेह उजागर किया है, तो कब ट्रूडो अपने बेतुके आरोपों का फटा ढोल पीटते रहेंगे?
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