AMU ने निकाला हमास के समर्थन में मार्च: इससे बुरा कोई हो सकता है क्या?

मानवता का AMU में कोई स्थान नहीं!

आखिर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को प्रशासित करने वाले और पढ़ने वालों के दिमाग में क्या चलता है, शायद ही कोई जानता होगा। हाल ही में, जब भारत सहित पूरी दुनिया हमास के आतंकवादियों द्वारा इज़राइल में एक संगीत समारोह पर हुए जघन्य हमलों की निंदा करने के लिए एकजुट हुई, तो एएमयू के छात्रों ने इन आतंकवादियों के समर्थन में एक एकजुटता मार्च शुरू किया।

एएमयू के फ़िलिस्तीन समर्थक मुस्लिम छात्रों को “अल्लाह-उ-अकबर” के नारे लगाते और इज़राइल के ख़िलाफ़ घृणित नारे और फ़िलिस्तीन के प्रति समर्थन वाली तख्तियाँ ले जाते हुए देखा गया। ऐसे ही एक तख्ती में खुलेआम घोषणा की गई, ‘एएमयू फिलिस्तीन के साथ खड़ा है, फिलिस्तीन को मुक्त करो, यह भूमि फिलिस्तीन है, इजराइल नहीं।’

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस रैली में सैकड़ों एएमयू छात्रों ने भाग लिया और इस्लामिक मंत्रों के साथ-साथ इजराइल विरोधी और फिलिस्तीन समर्थक नारे भी जमकर लगाए। उन्होंने दावा किया कि इजराइल फिलिस्तीन के खिलाफ अत्याचार कर रहा है और दुनिया भर में इस उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ें उठाई जा रही हैं।

चलिए मान लेते हैं कि इनका आक्रोश इज़राएल के विरुद्ध तार्किक है। वैसे मानना तो नहीं चाहिए, पर मान लेते हैं, परन्तु इज़राएल में घटनास्थल से जो भयावह सत्य सामने आया है, वे बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करती हैं। जिस तरह से एक निर्दोष जर्मन पर्यटक की बेरहमी से हत्या की गई और उसके शव को हमास के आतंकवादियों ने क्षत-विक्षत कर दिया, और छोटे बच्चों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हुए उन्हें पिंजड़े में बंद किया – क्या ये एएमयू छात्र भी इन कृत्यों का समर्थन करते हैं? क्या इनके निर्लज्जता की कोई सीमा नहीं?

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परन्तु फिर हम भी तो भूल जाते हैं, कि यह AMU है, जहाँ देशद्रोह इनके पाठ्यक्रम का अघोषित हिस्सा है, और जहाँ मानवता भी एक समय को बैकसीट लेती है। यह वही विश्वविद्यालय है जहां पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना का पोस्टर आज भी विद्यमान हुआ है। भारत के विभाजन और उसके बाद हुई हिंसा में जिन्ना की भूमिका अच्छी तरह से प्रलेखित है, और एएमयू में उनका महिमामंडन संस्थान के मूल्यों पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

इसके अलावा, यह वही विश्वविद्यालय है जहां 2018 में एक चौंकाने वाली घटना में एक कार्यक्रम के दौरान कश्मीर को भारत के नक्शे से हटा दिया गया था और अरुणाचल प्रदेश को चीन के हिस्से के रूप में दिखाया गया था। इस तरह की कार्रवाइयां न केवल हमारे राष्ट्र की संप्रभुता को कमजोर करती हैं, बल्कि हमारी क्षेत्रीय अखंडता के लिए परेशान करने वाली उपेक्षा को भी उजागर करती हैं।

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एएमयू ने शरजील इमाम जैसे व्यक्तियों को भी जन्म दिया है, जिन्होंने “द चिकन नेक” को तोड़ने की अपनी योजना के लिए कुख्यात हुआ, जो भारतीय क्षेत्र को पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ती है। उसका इरादा असम को भारत से अलग करना था, एक ऐसा कृत्य जिसने हमारे देश की एकता और अखंडता को खतरे में डाल दिया।

हमास आतंकवादियों और इज़राइल में उनके कार्यों के प्रति समर्थन व्यक्त करने में एएमयू छात्रों की तत्परता संस्थान के भीतर प्रचारित किए जा रहे मूल्यों और विचारधाराओं के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा करती हैं। निस्संदेह सभी को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है, परन्तु इसकी आड़ में आतंकवाद और अलगाववाद का समर्थन कभी भी स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।

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