कनेरिया के ट्वीट गुगली से आरफा का विक्टिम कार्ड ध्वस्त!

अब पाकिस्तानियों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाना पढ़ रहा

भारत द्वारा पाकिस्तान की क्रिकेट कुटाई को लगभग एक पखवाड़ा बीतने को है, परन्तु अपने खान मार्केट मण्डली का दुःख ख़त्म ही नहीं होता! मैदान पर अपनी प्रिय क्रिकेट टीम की पिटाई के बारे में उतना नहीं रो रहे हैं; यह “मैदान से बाहर की पिटाई” है पर पगलाए हुए हैं। घाव लागत है बहुते गहरे हैं!

स्थिति तो ये थी कि द इकोनॉमिस्ट में इतना साहस था कि वह दावा करे कि क्रिकेट का मैदान अब आतताई प्रधानमंत्री मोदी के घृणास्पद राजनीति के अधीन है! इ मजाक पचाने में तो तीन बोतल भी कम पड़ जाए, पर वामपंथी को ऐसे ही “जी का जंजाल” थोड़े ही माना जाता है!

परन्तु जब वामपंथियों की राजदुलारी आरफा खानुम शेरवानी ने अपना दुखड़ा रोया, और पाकिस्तानी दानिश कनेरिया ने जो इनकी खिंचाई करी, तो उससे उत्पन्न ऑनलाइन मनोरंजन तो किसी भी दिन टाइगर श्रॉफ के ‘गणपत’ और बिग बॉस के वर्तमान संस्करण को मीलों पीछे छोड़ दे!

तो नमस्कार मित्रों, और आज हम बताएँगे कि कैसे एक पाकिस्तानी हिन्दू दानिश ने एक भारतीय मुस्लिम आरफा को देश के प्रति निष्ठा का पाठ पढ़ाया, और क्यों आरफा अंत में न घर की रही, और न ही घाट की!

आप पाकिस्तान क्यों नहीं आ जाती”? 

जब अढ़ाई दिन के बाद भी खान मार्केट मण्डली का राष्ट्रीय शोक न कम हो, तो समझ जाइये कि भारत के विजय के ‘ज़ख्म कितने डीप है!’ भारत की विजय से इन्हे ऐसा शोक हुआ, मानो इनके ‘अमन की आशा’ वाले स्वप्न को किसी ने कैंची से तार तार कर दिया हो!

दुखी तो लगभग कई वामपंथी थे, परन्तु सबसे अधिक दुखी तो आरफा खानुम शेरवानी थी! आत्माराम भिड़े के “हमारे ज़माने में” छाप पत्रकारिता का बीड़ा उठाये इस पत्रकार ने अमदावाड़ की जनता द्वारा पाकिस्तानी कट्टरपंथियों की धुलाई पर अपने आंसू बहाने से खुद को न रोक पाई!

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महोदया ट्वीट करती हैं, “विश्व कप मैचों के दौरान कई क्रिकेट प्रशंसकों की निंदनीय उपस्थिति एवं उनका असभ्य व्यवहार मुझे एक भारतीय के रूप में शर्मिंदा और शर्मिंदा महसूस कराती है। खेल के प्रति यह क्षुद्र, असुरक्षित और बहुसंख्यकवादी दृष्टिकोण, जिसका उद्देश्य लोगों को एक साथ लाना था, उस भारत का प्रतीक है जिसे मोदी-आरएसएस ने पिछले दशक में बनाया है”।

अच्छा, तो इसमें नया क्या है, ? यह व्यावहारिक रूप से प्रत्येक भारतीय लिबरल का नित्य कर्म है, जैसा नहाना धोना, भोजन करना इत्यादि। नई बात ये है कि

इस विषय पर दानिश कनेरिया ने उनपर तंज कस्ते हुए ट्वीट किया, “अगर तुम्हें भारतीय होने में शर्म महसूस हो रही है तो मेरे देश पाकिस्तान आ जाओ। भारत को तुम जैसे लोगों की जरूरत नहीं है। मुझे यकीन है कि बहुत से लोग होंगे। भारत में लोग इस यात्रा को प्रायोजित करने में प्रसन्न होंगे।”

लगता है दानिश भाई ने “मैडमजी, मैं आपको लाहौर छोड़ आऊं” को कुछ अधिक गंभीरता से ले लिया है! दानिश कनेरिया ने मूल रूप से उन्हें लाहौर के लिए एकतरफ़ा टिकट की पेशकश की , और लिख के ले लीजिये कि आरफा मैडम उस उड़ान में नहीं बैठेंगी!

भारत के प्रति आप वफादार कब थी?”

परन्तु लगता है कि आरफा मैडम को किसी ने बताया नहीं कि मज़ाक को मज़ाक की भांति कैसे लें! जैसे ही लोगों ने आरफा खानम शेरवानी को जवाब देना शुरू किया, उन्होंने ‘विक्टिम कार्ड’ निकाल लिया। उन्होंने दावा किया कि दानिश कनेरिया ने उनकी ‘ऑनलाइन लिंचिंग’ के लिए भीड़ छोड़ दी है और वो ट्विटर पर ट्रेंड कर रही हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें दुःख है कि कई धर्मों के फैंस द्वारा जिस अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर को प्यार किया गया वो अब एक सांप्रदायिक ट्रोल बन गया है। इसके बाद आरफा ने पाकिस्तान जाने से भी इनकार कर दिया और कहने लगीं कि ‘अपने देश’को छोड़ कर दुनिया में कहीं नहीं जाएँगी।

परन्तु ये तर्क दानिश को बिलकुल भी नहीं पचा, क्योंकि फिर उन्होंने आरफा खानम शेरवानी द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों पर जमकर कटाक्ष किया। उन्होंने साफ़ कहा कि उनके खिलाफ इन प्रोपेगंडा शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए। दानिश कनेरिया ने पूछा कि क्या उन्होंने अपने ट्वीट में कहीं भी सांप्रदायिकता की बात की? दानिश ने कहा कि उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके बाद दानिश कनेरिया ने उनसे स्पष्ट जवाब माँगा है कि क्या उन्होंने कभी भारत या उसकी संस्कृति की तारीफ की है, एक बार भी?

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परन्तु दानिश कनेरिया भी चुप बैठने वालों में से कहाँ थे? उन्होंने आरफा खानम शेरवानी को जवाब देते हुए लिखा, “मैं धर्मांतरण, बहुसंख्यकवाद, हिन्दुओं, भारतीय मुस्लिमों या धर्म/मजहब की बात ही नहीं कर रहा हूँ। मैं सीधे-सीधे तुम्हारी वफादारी के बारे में बात कर रहा हूँ। चलो, एक स्पष्ट जवाब के साथ इस बहस को खत्म करते हैं – मुझे सिर्फ एक ट्वीट ऐसा दिखा दो जिसमें तुमने भारत या इसकी संस्कृति की प्रशंसा की है।” अब यहाँ आरफा की बत्ती गुल, रीट्वीट के अतिरिक्त इनके पास दानिश के विरुद्ध कोई तर्क ही नहीं रहा।

दानिश कनेरिया ने अब भी स्पष्ट कहा है कि उनका जन्म पाकिस्तान में हुआ, उन्होंने क्रिकेट पाकिस्तान के लिए खेला और आज भी वो एक पाकिस्तानी के रूप में गौरव महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ तुच्छ लोगों ने उनके साथ धर्म के आधार पर भेदभाव किया, लेकिन इसके लिए वो सभी को दोष नहीं दे सकते। उन्होंने साफ़ कहा कि वो अपने देश को गाली नहीं दे सकते। हालाँकि, उन्होंने ये भी कहा कि उनके समुदाय के साथ कुछ गलत होता है तो वो चुप भी नहीं रहेंगे, बल्कि आवाज़ उठाएँगे। परन्तु इतनी छोटी सी बात आरफा के मस्तिष्क में समा जाए, तो उनकी एजेण्डावादी दुकान का क्या होगा?

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