कनाडा खोने वाला है अपना सबसे मूलयवान ‘खजाना’: भारतीय विद्यार्थी!

ये तो एक न एक दिन होना ही था!

बहुत समय पहले, एक राजा था; उसे कोई भय न था और न ही उसे कोई बीमारी थी। शत्रु तो शत्रु, उनके मित्र एवं प्रजा भी काफी विस्मित थी, पर एक दिन किसी को पता चला कि राजा का जीवन एक तोते में निहित है। तोते की गर्दन मरोड़ी, और राजा….

यही कथा आज कनाडा में सत्ता के गलियारों में भी गूँज रही है। परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में यदि राजा प्रशासन है, तो तोता कौन? ये हैं प्रवासी भारतीय छात्र, है जो एक प्रकार से कनाडा की अर्थव्यवस्था के लिए ऑक्सीजन समान है। अब यही ‘ऑक्सीजन’ कनाडा के हाथ से रेट की भांति फिसलने वाली है, और कनाडा का प्रशासन चाहकर भी कुछ विशेष नहीं कर सकता!

तो सभी को हमारा नमस्कार, और आज हमारी चर्चा होगी भारत, एवं कनाडा के प्रवासी भारतीय विद्यार्थियों की बदलती प्राथमिकताओं की, और क्यों इनका कनाडा से निकलना कैनेडियन प्रशासन के लिए शुभ समाचार नहीं।

अब भारतीय विद्यार्थियों के पास अन्य विकल्प भी हैं!

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अब भारतीय विद्यार्थी अब विदेशी शिक्षा के लिए अन्य विकल्पों की ओर ध्यान देने को विवश हैं! हाल के दिनों में भारत में ही नहीं, अपितु कनाडा में भारतीय विद्यार्थी समुदाय के भीतर चिंताएँ बढ़ रही हैं, जिससे वे वैकल्पिक अध्ययन स्थलों की तलाश कर रहे हैं। प्राथमिक चिंताएँ छात्र वीज़ा प्राप्त करने में देरी और कनाडा में भारतीय छात्रों की संख्या सीमित करने की बढ़ती संभावना से उपजी हैं।

परिणामस्वरूप, कई भारतीय विद्यार्थी अब अपनी शिक्षा के लिए वैकल्पिक देशों पर विचार कर रहे हैं, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका शीर्ष दावेदारों के रूप में उभर रहे हैं। यही नहीं, भारत से जाने वाले विद्यार्थियों, विशेषकर पंजाबी विद्यार्थियों की प्राथमिकताओं में भी बदलाव आ रहे हैं! इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, डेराबस्सी, मोहाली के निवासी भानु प्रताप ने स्पष्ट रूप से अपना दृष्टिकोण साझा करते हुए कहा, “मैं कनाडा नहीं जाना चाहता। मेरा अब वहां बसने का कोई इरादा नहीं है क्योंकि जो लोग पहले से ही वहां हैं काम मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मैं पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना चाहता हूं।”

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इसी भांति लुधियाना की रहने वाली छात्रा लक्ष्मी शर्मा ने भी कनाडा के बारे में ऐसी ही भावना व्यक्त की। उन्होंने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “मैं ऑस्ट्रेलिया जाने के बारे में सोच रही हूं, लेकिन मेरा सपना लंदन जाने का है। मैं कनाडा नहीं जाना चाहती क्योंकि पंजाब और कनाडा में कोई अंतर नहीं है। भारत-कनाडा के बीच राजनयिक तनाव भारतीय छात्रों के दिमाग पर असर पड़ा है। कुछ यूके जाना चाहते हैं… कनाडा की योजना रद्द की जा रही है।”

कहीं न कहीं भारत और कनाडा के बीच राजनयिक तनाव का असर भारतीय छात्र समुदाय पर नहीं पड़ा है। भले ही आव्रजन एजेंट इसे खुले तौर पर स्वीकार न करें, लेकिन कई छात्र भविष्य को लेकर आशंकित हैं। पटियाला स्थित गायक पंजाब सिंह चीमा ने इस भावना को व्यक्त करते हुए कहा कि राजनयिक तनाव का भारतीय छात्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। उन्होंने टिप्पणी की, “भारत और कनाडा के बीच राजनयिक तनाव का निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा। छात्र निश्चित रूप से ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन या अमेरिका जैसे अन्य देशों में चले जाएंगे।”

पटियाला के एक अन्य छात्र मनप्रीत सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि बढ़ते तनाव के कारण ही उन्होंने कनाडा के बजाय ऑस्ट्रेलिया को चुना है। पंजाब की ये आवाज़ें भारतीय छात्रों के बीच भावनाओं में स्पष्ट बदलाव को रेखांकित करती हैं। कनाडा का आकर्षण, जो कभी उच्च शिक्षा के लिए एक प्रमुख विकल्प था, अब वीज़ा में देरी और छात्र संख्या पर संभावित सीमा के बारे में चिंताओं से प्रभावित हो रहा है।

जैसे-जैसे छात्र अपनी शैक्षणिक यात्राओं पर पुनर्विचार करना और वैकल्पिक गंतव्यों का चयन करना शुरू करते हैं, अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा का परिदृश्य परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। इन छात्रों द्वारा लिए गए निर्णय उनके भविष्य और राष्ट्रों के बीच संबंधों को आकार दे सकते हैं। इस बदलते प्रतिमान में, ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका अवसर के प्रकाशस्तंभ के रूप में उभरे हैं, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्थिर भविष्य की तलाश कर रहे भारतीय छात्रों की आकांक्षाओं को पूरा कर रहे हैं।

 ये तो होना ही था

तो भारतीय विद्यार्थियों की बदलती प्राथमिकताएं कनाडा के लिए चिंताजनक क्यों है? वर्ष 2022 में, कनाडाई अर्थव्यवस्था में भारतीय छात्रों द्वारा किया गया महत्वपूर्ण योगदान लगभग 10.2 बिलियन डॉलर का प्रभावशाली आंकड़ा था। वित्तीय सहायता का यह प्रवाह महज संख्या से परे है, क्योंकि यह पूरे कनाडा में 170,000 से अधिक नौकरियों के भरण-पोषण में भी तब्दील होता है। अंतर्राष्ट्रीय छात्र, विशेष रूप से भारत के छात्र, विभिन्न माध्यमों से कनाडाई अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसमें कनाडाई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के लिए ट्यूशन राजस्व में उनका महत्वपूर्ण योगदान भी शामिल है।

हालाँकि, परिवर्तन की बयार चलनी शुरू हो गई है और इसके निहितार्थ बहुत गहरे हैं। जैसे-जैसे भारतीय छात्र बढ़ती चिंताओं के कारण वैकल्पिक अध्ययन स्थलों की तलाश कर रहे हैं, कनाडा को राजस्व की भारी संभावित हानि का सामना करना पड़ रहा है, जिसका अनुमान लगभग $10 से $15 बिलियन सालाना है।

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फिर भी, कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडाई प्रशासन ने इस आदर्श बदलाव को शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह ध्यान देने योग्य है कि कनाडाई अधिकारियों ने हाल ही में अवैध आप्रवासियों के एक बड़े नेटवर्क का खुलासा किया, जो वास्तव में छात्र थे, जो फर्जी दस्तावेजों का उपयोग करके देश के भीतर रह रहे थे। हालाँकि इन अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने का निर्णय एक सराहनीय कदम है, लेकिन कनाडाई अधिकारियों को इस मुद्दे को संबोधित करने में जो समय लगा, वह उनकी प्राथमिकताओं और दक्षता पर सवाल उठाता है।

सुधारात्मक उपाय करने में यह देरी कनाडाई प्रशासन को परेशान करने वाले एक व्यापक मुद्दे का प्रतीक है। एक समय भारत को नाराज़ करने के अपने दृष्टिकोण में अडिग ट्रूडो सरकार अब खुद को एक अनिश्चित स्थिति में पाती है। परिणामस्वरूप, वह कूटनीतिक चर्चा करने के लिए मजबूर हो गया है, भले ही गोपनीय ढंग से। इन घटनाक्रमों के परिणाम महज कूटनीतिक प्रयासों से परे हैं। वास्तव में, भारत ने राजनयिक और आर्थिक रूप से, कनाडा का अनौपचारिक बहिष्कार शुरू कर दिया है। भारतीय प्रवासियों, विशेष रूप से छात्रों के संभावित पलायन से कनाडा को ऐसी स्थिति में धकेलने का खतरा है जहां से वापसी संभव नहीं है।

भारतीय छात्रों और कनाडा के बीच सहजीवी संबंध दोनों देशों के हितों की आधारशिला रहा है। हालाँकि, वर्तमान स्थिति ने इस रिश्ते पर अनिश्चितता की छाया डाल दी है। कनाडाई अर्थव्यवस्था और भारत के साथ उसके संबंधों का भाग्य अब भगवान् भरोसे है, और यदि कनेडियाई प्रशासन अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आया, तो आने वाले दिन कैनेडा के लिए बहुत ही दुखदायी होने वाला है।

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