द गॉडफादर में शायद किसी को ये कहते हुए सुने थे, “कॉन्फिडेंस इज साइलेंट, इनसेक्युरिटीज़ आर लाउड!”, अर्थात आत्मविश्वास मौन रहता है, असुरक्षाएँ चीख चीख कर अपनी उपस्थिति दर्ज करती हैं। अब, इस विचार को भारत-कनाडा के बीच चल रहे गतिरोध पर लागू करें, और आपको एक आश्चर्यजनक प्रतिध्वनि देखने को मिलेगी।
एक और सारे ज़माने को ठेंगा दिखाते हुए जस्टिन ट्रूडो अपनी ज़िद को शाश्वत सत्य सिद्ध करने पर तुले हैं, तो वहीँ विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर ने भी तय कर लिया है कि उनका आगे का रोडमैप क्या होगा! हाल ही में मीडिया को दिए एक संबोधन में, मंत्री जयशंकर ने भारत की स्थिति को सटीकता के साथ स्पष्ट करते हुए जोर दिया कि भारत का रुख कैनेडियाई लोगों के विरुद्ध नहीं; यह ट्रूडो प्रशासन के अलगाववाद प्रेम के विरुद्ध है, और वे तब तक चुप नहीं रहेंगे जब तक ट्रूडो प्रशासन अपनी गलती स्वीकार न कर ले।
तो नमस्कार मित्रों, और आज हम प्रकाश डालेंगे कि कैसे एस जयशंकर ने ट्रूडो प्रशासन के ज़िद्दी रवैये को अपनी शैली में करारा जवाब दिया है, और क्यों जस्टिन ट्रूडो कूटनीति के अखाड़े में अभी भी नौसिखिया है!
उल्टा जस्टिन भारत को डांटे!
हाल ही में एक मीडिया संबोधन में, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 41 कनाडाई राजनयिकों को वापस बुलाने के संबंध में जस्टिन ट्रूडो के विचित्र आरोपों पर स्पष्ट और दृढ़ प्रतिक्रिया दी। डॉ. जयशंकर के बयान के अनुसार, मामले की जड़ भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में कनाडा की असमर्थता है, एक ऐसी चुनौती जो राजनयिक संबंधों पर वियना कन्वेंशन के मूल सिद्धांतों पर आघात करती है।
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डॉ. जयशंकर का यह स्पष्ट बयान कनाडा द्वारा भारत से अपने 41 राजनयिकों को वापस बुलाने के फैसले और मुंबई, बेंगलुरु और चंडीगढ़ में अपने वाणिज्य दूतावासों में वॉक-इन सेवाओं के अचानक निलंबन के मद्देनजर आया है। बाद वाला कदम भारतीय आवेदकों के लिए कनाडाई वीजा के प्रसंस्करण को विशेष रूप से प्रभावित करता है।
भारत का संदेश भी उतना ही प्रत्यक्ष है: वीज़ा सेवाओं की बहाली कनाडा में भारतीय राजनयिकों के लिए कामकाजी परिस्थितियों में ठोस सुधार के अनुपात में लागू होगी । सरल शब्दों में कहें तो हमारे राजनयिकों को सुरक्षा दें और अपने विशेषाधिकार वापस पाएं! डॉ. जयशंकर ने राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अनिवार्यता पर जोर देते हुए वियना कन्वेंशन के मूल सार को रेखांकित किया।
#WATCH | On Visa services in Canada, EAM Dr S Jaishankar says, "The relationship right now is going through a difficult phase. But I do want to say the problems we have are with a certain segment of Canadian politics and the policies which flow from that. Right now the big… pic.twitter.com/GfF7um38Ls
— ANI (@ANI) October 22, 2023
वर्तमान में, इस मौलिक सिद्धांत को कनाडा में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जहां भारतीय राजनयिक खुद को ऐसे माहौल में पाते हैं जो सुरक्षित नहीं है। एक ओर खालिस्तानियों के उपद्रव पर ट्रूडो प्रशासन आँखें मूंदकर बैठा है, और अगर भारतीय प्रतिरोध करे तो उलटे उन्ही को नैतिकता का उपदेश दे रहे हैं!
कनाडा में खालिस्तान समर्थक तत्वों के समर्थन का विशेष रूप से नाम लिए बिना, डॉ. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत की चिंताएँ कनाडाई राजनीति के एक विशिष्ट क्षेत्र और उससे उपजी नीतियों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। उनके अपने शब्दों में, ”अभी रिश्ता मुश्किल दौर से गुजर रहा है। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारी समस्याएं कनाडा की राजनीति के एक निश्चित वर्ग और उससे उत्पन्न होने वाली नीतियों के साथ हैं, आम कनाडा वासी से हमारा कोई बैर नहीं”।
Our #50WordEdit on EAM Jaishankar’s statement on India-Canada ties pic.twitter.com/TAmL4ZMdQ1
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) October 24, 2023
जयशंकर गलत नहीं बोल रहे!
इतना ही नहीं, जयशंकर ने ट्रूडो प्रशासन की मांगों को मानने में भारत की अनिच्छा के लिए एक स्पष्ट तर्क भी दिया। अपने शब्दों में, उन्होंने राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के मूलभूत महत्व पर प्रकाश डाला, जो राजनयिक संबंधों पर वियना कन्वेंशन में निहित एक प्रमुख सिद्धांत है। उन्होंने रेखांकित किया कि इस मौलिक सिद्धांत को कनाडा में काफी चुनौती दी गई है, जहां भारतीय राजनयिक खुद को सुरक्षित माहौल से दूर पाते हैं। यह एक आवश्यक मुद्दा है जिसे भारत कनाडाई लोगों के लिए वीज़ा सेवाएं फिर से शुरू करने से पहले सुधारने पर जोर देता है।
जयशंकर का रुख कनाडा को एक स्पष्ट अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि बिना ठोस साक्ष्य के भारत पर आरोप लगाना मूर्खतापूर्ण है, और सत्य कहें तो ट्रूडो प्रशासन के लिए आत्मघाती भी है। जब से कनाडाई संसद में जस्टिन ट्रूडो के संबोधन के साथ यह कूटनीतिक उथल-पुथल शुरू हुई, तब से कनाडाई पक्ष के पास अपने भारतीय समकक्षों के साथ चर्चा में अपने आरोपों को साबित करने के लिए विश्वसनीय, अकाट्य सबूतों की स्पष्ट कमी रही है।
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ऐसा लगता है मानो ट्रूडो को वैश्विक कूटनीति में दद्दा भी बनना है, और विक्टिम कार्ड चलाने की अनलिमिटेड फ्रीडम भी चाहिए! परन्तु ये इतना ही सरल होता, तो अपने ही देश में ये उपहास और अपमान का विषय थोड़े ही बनते! चाहें तो ज़ेलेन्स्की से पूछ लें!
इसके अलावा, जयशंकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है, बशर्ते कि कनाडा विशिष्ट जानकारी प्रदान कर सके। उन्होंने संगठित अपराध, अलगाववादी ताकतों, हिंसा और उग्रवाद की जटिल और परस्पर जुड़ी प्रकृति को स्वीकार किया जिसने हाल के वर्षों में कनाडा को त्रस्त कर दिया है। ये चिंताएँ आपस में जुड़ी हुई हैं, और भारत विशिष्ट मुद्दों और सूचना साझा करने पर कनाडा के साथ जुड़ने के लिए तैयार है। परन्तु इसका आधा भी अगर ट्रूडो प्रशासन कर दे, तो क्रान्ति आ जाएगी!
देखिये, आगे की राह निस्संदेह सरल नहीं है, परन्तु भारत की अपेक्षाएँ बस इतनी हैं: कनाडा को अगर सम्मान चाहिए तो, उसे हमारे राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, और अपने दावों के लिए अकाट्य साक्ष्य पेश करनी चाहिए। भारत की कूटनीतिक रणनीति स्पष्ट है: हमें किसी से बैर नहीं, परन्तु छेड़ोगे तो छोड़ेंगे भी नहीं! इसके विपरीत, कनाडाई पक्ष का कोलाहल और शोर अंतर्निहित असुरक्षाओं और जल्दबाजी में निर्णय लेने को प्रकट करता प्रतीत होता है। अंत में, यह निराधार दावों और जल्दबाजी के खिलाफ सिद्धांतों और मापी गई प्रतिक्रियाओं के बीच का द्वन्द है, और समय बताएगा कि ये दोनों देश इस कूटनीतिक चुनौती से कैसे निपटते हैं।
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