आतंक फंडिंग पर ढिलाई के लिए ट्रूडो को FATF ले जा सकती भारत!

ये तो ट्रूडो ने स्वप्न में

कुछ लोगों पर संकट वज्रपात की भांति गिरता है, कुछ लोगों के लिए स्वयं को गलत समय पर गलत जगह पर पाते हैं। और फिर ऐसे लोग भी हैं, जो डीडीएलजे में कबूतरों को बुलाते अमरीश पुरी के किरदार की तरह, संकट को विशेष निमंत्रण देते हैं। कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो निस्संदेह इस तीसरी श्रेणी में आते हैं।

अपने कुछ राजनेता भी इतने निर्लज्ज न है, जितना जस्टिन ट्रूडो कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे उसका मिशन भारत को नीचा दिखाना है, और वह अटूट प्रतिबद्धता के साथ ऐसा कर रहा है। लेकिन इस बार बाजी पलट सकती है, क्योंकि भारत के पास और भी विकल्प उपलब्ध है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, भारत ट्रूडो के उग्रवाद प्रेम के पीछे FATF तक के द्वार खटखटाने को तैयार है, और ये निस्संदेह कनाडा के लिए कोई गर्व का विषय नहीं।

आज हमारी चर्चा होगी कि आखिर क्यों भारत FATF का विकल्प चुन सकता है, और क्यों इस संभावित कदम से जस्टिन ट्रूडो का समूल विनाश निश्चित है!

 भारत के पास खोने को कुछ नहीं!

भारत आतंकी फंडिंग के विरुद्ध कनाडा की निष्क्रियता को संबोधित करके एक साहसिक कदम उठाने को तैयार है। संडे गार्जियन लाइव की एक रिपोर्ट के अनुसार, नई दिल्ली अपनी सीमाओं के भीतर आतंकी वित्तपोषण गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई करने में कनाडा की अनिच्छा के संबंध में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) से संपर्क करने पर विचार कर रही है। भारत द्वारा कई बार “विश्वसनीय और पुख्ता” सबूत साझा करने के बावजूद, ऐसा लगता है कि कनाडा ने पर्याप्त कार्रवाई नहीं की है।

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अब ये कितना सत्य है, कितना नहीं, ये तो आने वाला समय ही बताएगा, परन्तु ये ऐसे समय पर आया है, जब कुछ मीडिया रिपोर्ट ये दावा कर रहे हैं एफएटीएफ भ्रष्ट NGOs पर नकेल कसने की आड़ में “एनजीओ के उत्पीड़न” के लिए भारत के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।

डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, एफएटीएफ इस बात की जांच कर रहा है कि क्या प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार एमनेस्टी इंटरनेशनल और नीति थिंक टैंक जैसे गैर-लाभकारी संगठनों पर शिकंजा कसने के लिए स्थानीय कानूनों का दुरुपयोग कर रही है।

परन्तु यहाँ पर एक झोल है : रिपोर्ट एक ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु पर प्रकाश डालती है जिसे डेक्कन हेराल्ड ने संभवत: जानबूझकर अग्रिम पंक्ति के पीछे रखा: भारत के मनी लॉन्ड्रिंग कानूनों के उपयोग में किसी भी “अतिउत्साह” को संबोधित करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है। इससे एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है: जब तक नागरिक समाजों और गैर सरकारी संगठनों के कामकाज में भ्रष्टाचार की घुसपैठ नहीं होगी, तब तक सरकार पर अतिरेक का आरोप क्यों लगाया जाएगा?

सब ट्रूडो की कृपा है!

अगर भारतीय एजेंसियां वास्तव में ट्रूडो प्रशासन को FATF तक घसीटने में सफल हुए, तो ये न केवल ट्रूडो प्रशासन, अपितु कनाडा के लिए भी भूचाल से कम नहीं होगा! परन्तु सच कहें, तो ट्रूडो महोदय ने स्वयं इस ‘विनाश’ को आमंत्रित किया है।

कुछ ही दिन पूर्व, एक बेहद बचकाने बयान में, ट्रूडो ने भारत पर वियना कन्वेंशन का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। वो क्यों? ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में यह अनुरोध करने का साहस था कि कनाडा भारतीय धरती पर अपने राजनयिक कर्मचारियों को कम कर दे, जिसके पीछे कनाडा को 41 राजनयिक हटाने भी पड़े। वाह जी, नाच न जाने, आंगन टेढ़ा!

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ब्रैम्पटन, ओंटारियो में हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, ट्रूडो ने दावा किया कि भारत सरकार की कार्रवाइयां “अविश्वसनीय रूप से कठिन” स्थिति पैदा कर रही हैं, जिससे कथित तौर पर भारत और कनाडा दोनों में लाखों लोगों का जीवन बाधित हो रहा है। कोई ट्रूडो को बताये कि ऐसी बकवास कोई च्यूइंग गम नहीं, जिसे जितना चाहो, उतना खींच दो!

ट्रूडो ने इस बात पर जोर दिया कि 41 कनाडाई राजनयिकों की राजनयिक छूट को रद्द करने का भारत का निर्णय वियना कन्वेंशन का उल्लंघन था। उनके अनुसार, यह वैश्विक चिंता का विषय है, कुछ ऐसा जिससे ग्रह पर हर देश की रीढ़ में सिहरन पैदा हो जानी चाहिए। परन्तु साक्ष्य, वो ये नहीं देंगे! गूगल कर लें!

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शायद ये भी एक कारण है जिसके पीछे ट्रूडो आज वैश्विक राजनीति में उपहास का विषय बने हैं! कनाडा की कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पोइलीवरे ने ट्रूडो की पोल खोलते हुए बताया कि कैसे वह ‘भारत समेत’ संसार भर में उपहास का पात्र बन चुके हैं। पोइलिवरे के अनुसार, नई दिल्ली के साथ राजनयिक संबंधों के लिए ट्रूडो का दृष्टिकोण न केवल उल्टा पड़ गया है; इसने उन्हें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में उपहास का पात्र भी बना दिया है।

स्पष्ट शब्दों में, पोइलिवरे ने कहा, “जस्टिन ट्रूडो आठ वर्षों के लंबे समय के बाद कीमत के लायक नहीं हैं। उन्होंने घर पर कनाडाई लोगों को एक-दूसरे के विरुद्ध कर दिया है और उन्होंने विदेशों में हमारे संबंधों को खराब कर दिया है। वह इतने अक्षम और गैर-पेशेवर हैं कि अब हम लगभग बड़े विवादों में हैं दुनिया की हर प्रमुख शक्ति, और इसमें भारत भी शामिल है।”

ट्रूडो की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है। खुद की मीडिया उन्हें टके का भाव नहीं देती, वैश्विक समुदाय भी इनके साथ जुड़ने से पूर्व दस बार सोचते हैं, और भारत से तो इन्होने पन्गा मोल लिया ही है! यदि अब भी ये न चेते, तो वह जल्द ही इतिहास का एक ऐसा अध्याय बन जाएगा जिसे कनाडाई लोग भूलना पसंद करेंगे!

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