“इजरायल में आतंकवादी हमलों की खबर से गहरा सदमा लगा है। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इजराइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।”
वास्तव में, प्रधानमंत्री मोदी के बयान में जो दिखता है उससे कहीं अधिक है। यह भारत के रुख में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है, जिस पर करीब से दृष्टि डालनी चाहिए। संभवत: पहली बार, भारत ने स्पष्ट रूप से हमास को आतंकवादी करार दिया है, एवं उनके कार्यों की स्पष्ट निंदा की है। यह देश की विदेश नीति में एक क्रांतिकारी क्षण है।
इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि इसे भारतीय जनता का भारी समर्थन मिल रहा है। भारतीय सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं का एक बड़ा समूह इस अवसर पर इजराइल के साथ अटूट एकजुटता की मांग करते हुए आगे आया है। हैशटैग #IStandwithIsrael कई दिनों से ट्रेंड कर रहा है, जो भारतीय लोगों के समर्थन और सहानुभूति की गहराई को दर्शाता है।
आज हमारी चर्चा इसी बात पर होगी कि क्यों इज़राएल के कृतार्थ का ऋण भारत ब्याज समेत चुका रहा है, और संकट के इस घडी में इज़राएल के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़ा है।
ऐसी आशा भारत से कम ही थी
हाल के वर्षों में इज़राइल के प्रति भारत के दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण होने के बाद भी 1990 के दशक के मध्य तक, इज़राएल के साथ हमारे कूटनीतिक सम्बन्ध पुष्ट नहीं हुए थे। 2014 तक भी हम केवल व्यापारिक सम्बन्ध तक ही सीमित थे, पूर्णतया कूटनीतिक साझेदारी के लिए नहीं।
तो, इस झिझक का कारण क्या है? इसका उत्तर इतिहास की छाया में छिपा है, जिसे “नेहरूवादी हैंगओवर” के रूप में वर्णित किया जा सकता है। भारत के पहले प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी को इज़राइल को मान्यता देने पर आपत्ति थी। मजे की बात तो ये कि जिस व्यक्ति ने अपनी ज़िद में भारत के दो टुकड़े करा दिए, वह धार्मिक आधार पर इज़राएल के निर्माण के विरुद्ध था! अब ये अलग बात थी कि सम्पूर्ण भारत इनके विचारों से सहमत नहीं था, और विनायक दामोदर सावरकर, यहाँ तक कि जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं तक ने इज़राएल से बेहतर संबंधों का अनुरोध किया।
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भारत और इज़राएल के बीच काफी कुछ समान है। दोनों का सांस्कृतिक इतिहास काफी समृद्ध है। दोनों ने 1947 और 1950 के बीच अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। फिर भी, 90 के दशक के अंत तक दोनों के बीच आधिकारिक तौर पर संबंध स्थापित नहीं हुए थे। दोनों को अपनी नई संप्रभुता के परिणामस्वरूप सांप्रदायिक विवादों और भौगोलिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। निरंतर संघर्षों वाले क्षेत्र में स्थित इज़राएल, फतह और हमास के बीच की गुत्थम गुत्थी के घातक दुष्परिणामों से जूझ रहा है, जो निरंतर तनाव का स्रोत है।
Yesterday, Israel faced a dastardly terror attack, just like Mumbai was targeted on 26/11/2008. Israel has declared war and their military has struck back. What did India, under a weak kneed Congress, do?
Nothing. It sent dossiers. Infact senior Congress leaders tried to blame… pic.twitter.com/Vj5bI6E8oA
— BJP (@BJP4India) October 8, 2023
भारत की ढुलमुल कूटनीतिक नीतियों के बाद भी भारत की ज़रूरत की घड़ी में इज़राएल का अटूट समर्थन अद्वितीय था। 1971 में, बांग्ला मुक्ति और भारत-पाक युद्ध के दौरान, इज़राइल ने अपने हथियारों की कमी के बावजूद भारत की ओर मदद का हाथ बढ़ाया। जैसा कि डिक्लासिफाइड दस्तावेजों से पता चलता है, इजरायली प्रधान मंत्री गोल्डा मेयर ने ईरान से भारत भेजे जाने वाले हथियारों को भेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस समर्थन ने ढाका पर भारत के सफल पैराट्रूपर हमले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे अंततः 1971 के भारत-पाक युद्ध में जीत हासिल हुई। इसके अतिरिक्त कारगिल युद्ध के समय इज़राएल की अप्रत्याशित सहायता को कैसे भूल सकते हैं?
इज़राएल का कृतार्थ ब्याज़ समेत चुकता!
वो कहते हैं न, “हमें जो सही है उसके लिए खड़ा होना चाहिए, भले ही इससे दूसरे दुखी हों!” ये शब्द इज़राएल के साथ अपने संबंधों पर चरितार्थ होता है, एक ऐसा बदलाव जिसने 2017 में गति पकड़ी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इज़राएल से गर्मजोशी से हाथ मिलाया। तब से, राष्ट्र ने इज़राएल के साथ अपने संबंधों को विकसित करने और मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, और वर्तमान रुख उसी का स्पष्ट प्रमाण है।
इससे पूर्व भारत या तो ‘निष्पक्षता’ के आवरण में छुपा रहता था, अथवा फिलिस्तीनियों के अधिकारों पर चर्चा करता, भले ही वह भारत को घास तक न डालें! ऐसे में इज़राएल का प्रत्यक्ष समर्थन सम्बन्धी भारत का सकारात्मक बदलाव किसी से छुपा नहीं है। भारत में इज़राएल के राजदूत नाओर गिलोन इस परिवर्तन को स्वीकार करते हैं और इसका स्वागत करते हैं। जब आतंकवाद के मुद्दे की बात आती है तो वह दुनिया में भारत की महत्वपूर्ण स्थिति और उसकी समझ की गहराई को रेखांकित करते हैं। गिलोन इस बात पर जोर देते हैं कि इजरायल के लिए भारत का समर्थन ज्ञान से उपजा है, अज्ञानता से नहीं।
गिलोन के अनुसार, “हमारा सोशल मीडिया उन लोगों से भरा है जो अपना समर्थन दिखा रहे हैं। और हम इसकी सराहना करते हैं। हम इसकी बहुत दृढ़ता से सराहना करते हैं। मैं आपको बताता हूँ क्यों। क्योंकि भारत, सबसे पहले, दुनिया का एक बहुत ही महत्वपूर्ण देश है। दूसरे, भारत एक ऐसे देश की स्थिति से आता है जो आतंकवाद को जानता है। इसलिए, यह ज्ञान के बिंदु से आता है, न कि अज्ञानता से!”
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भारत की ओर से समर्थन का विस्तार गहरा और निश्छल रहा है। प्रधान मंत्री मोदी, कई मंत्रियों, व्यापारियों और सिविल सर्वेंट्स के साथ, इज़राइल के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करने में कोई हिचक नहीं दिखाई है। यह विपरीत परिस्थितियों में दोनों देशों के बीच स्थायी बंधन और उनके साझा मूल्यों का एक अद्वितीय प्रमाण है।
यहां तक कि सत्तारूढ़ दल, भाजपा ने भी इज़राएल का अभिवादन करते हुए इन संबंधों पर पिछली सरकारों के ढुलमुल रवैये, विशेषकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों की आलोचना की है। एक हालिया पोस्ट में, भाजपा ने 2008 के मुंबई हमलों और इज़राइल की हालिया कठिनाइयों पर प्रकाश डालते हुए, आतंकवादी हमलों पर भारत की प्रतिक्रियाओं के बीच एक तीव्र विरोधाभास व्यक्त किया। भाजपा आतंक के सामने इजराइल की निर्णायक कार्रवाई को रेखांकित करती है और इसकी तुलना अतीत में भारत द्वारा की गई कमजोर प्रतिक्रिया से करती है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के इस बदलते परिदृश्य में, इज़राइल के लिए भारत का स्पष्ट समर्थन एक परिपक्व साझेदारी को दर्शाता है। यह न केवल रणनीतिक हितों पर आधारित है, बल्कि साझा मूल्यों और आतंकवाद से उत्पन्न चुनौतियों की गहरी समझ पर भी आधारित है। जैसे ही भारत और इज़राइल विपरीत परिस्थितियों में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते हैं, वे दुनिया को एक शक्तिशाली संदेश भेजते हैं: मित्रता के बंधन संकट के क्षणों में बनते हैं, और जो विपत्ति के समय बिना शर्त आपका साथ दे, वही सच्चा मित्र होता है।
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