भारत को अभी इज़राएल से बहुत कुछ सीखना है

अभी दिल्ली दूर है!

विपत्ति के क्षण ही वो समय होता है, जब हम किसी व्यक्ति के असली चरित्र, अथवा किसी नायक के शौर्य से परिचित होते हैं। घोर अंधकार में ये ज्योति के  प्रकाशस्तंभ की तरह चमकते हैं, और हमें मानवता का अद्भुत पाठ पढ़ाते हैं। जैसा कि किसी सज्जन पुरुष ने कहा था, “एक कायर के रूप में पूरा जीवन बर्बाद करने की तुलना में केवल एक दिन नायक के रूप में जीना कहीं बेहतर है”, और इज़राएल इसी भावना का जीता जागता स्वरुप है।

परन्तु इज़राएल को क्या अलग बनाता है? उसकी संस्कृति, उसका शौर्य या फिर उसका प्रशासन? ये सभी कारक सही उत्तर की ओर संकेत तो देते हैं, परन्तु वास्तविक उत्तर है: अदम्य साहस!

उल्लेखनीय बात यह है कि, आंतरिक मतभेदों के बावजूद, जब हमास के आतंकवादियों ने उनके घरों पर हमला किया, तो पूरा देश एक साथ एकजुट हो गया। विपरीत परिस्थितियों में प्रदर्शित एकता अद्भुत और अविश्वसनीय थी, जिसमें भारत के लिए भी बहुत कुछ निहितार्थ है।

आज हमारी चर्चा होगी इज़राएल के इसी अद्वितीय एकता पर, और क्यों ये भारत के निवासियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण सीख समान है!

राष्ट्र है सर्वोपरि!

जैसा कि स्पाइडर मैन में दोहराया गया था, “विथ ग्रेट पावर, कम्स ग्रेट रिस्पॉन्सिबिलिटी!” अर्थात जितनी अधिक शक्ति आपको मिलती है, उतने ही अधिक आपके दायित्व भी होते हैं!  यह एक सार्वभौमिक सत्य है जो इज़राइल पे चरितार्थ होता है, और जहां हर नागरिक इस कहावत को आत्मसात भी करता है।

परन्तु इस छोटे से राष्ट्र के पास भारत को देने या सिखाने के लिए क्या है? बहुत कुछ, विशेषकर जब बात राष्ट्र की रक्षा और आतंकवाद का सामना करने की हो!

इज़राइल में, अपने राष्ट्र की सेवा करना गर्व और कर्तव्य की बात है। यह सिद्धांत उत्पत्ति या विचारधारा की कोई सीमा नहीं जानता। वस्तुतः हर सक्षम इज़राइली ने इस अवसर पर कदम बढ़ाया है। प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बेटे से लेकर हनान्या नफ्ताली जैसे पत्रकार तक, यहां तक कि नफ्ताली बेनेट जैसे विपक्षी नेता और “फौदा” जैसी श्रृंखला में अपनी भूमिकाओं के लिए प्रसिद्ध लियोर रेज़ और इदान अमेदी जैसे प्रसिद्ध अभिनेता – वे सभी फिर से शामिल हो गए हैं इजरायली सशस्त्र बल में। उनका मिशन? हमास के आतंकवादियों को खत्म करना और जितना संभव हो उतने बंधकों को छुड़ाना।

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इसे एकता न कहें तो क्या कहें? वैसे भी, इफ डेर इस ए वॉर, डेर इस ए वॉर! इज़राएल एक ऐसा राष्ट्र है जहां एकजुटता सिर्फ एक शब्द नहीं है; यह भी जीने का एक अद्भुत तरीका है।

यह एकता इज़रायली विपक्ष की प्रतिक्रिया में स्पष्ट है। उन्होंने प्रधानमंत्री नेतन्याहू के ‘एकता सरकार’ बनाने के प्रस्ताव को सहृदय स्वीकार किया। यह सरकार, जिसमें इज़राइल के राजनीतिक स्पेक्ट्रम के सभी कोनों के राजनेता शामिल हैं, हमास की तथाकथित ताकत के खिलाफ संयुक्त मोर्चे के प्रतीक के रूप में खड़ी है।

अक्सर राजनीतिक विचारधाराओं और व्यक्तिगत हितों से विभाजित दुनिया में, आतंकवाद के खतरे पर इज़राइल की प्रतिक्रिया राष्ट्र को पहले रखने की शक्ति को दर्शाती है। यह हमें सिखाता है कि शत्रु का सामना करते समय व्यक्तिगत मतभेदों को किनारे रख देना चाहिए। एकता के महत्व को, विशेषकर विपरीत परिस्थितियों में, अतिरंजित नहीं किया जा सकता। यह एक ऐसा सबक है जो सीमाओं से कहीं आगे तक फैला हुआ है।

क्या भारत में ऐसी एकता देखने को मिलेगी?

परन्तु इज़राएल की इस एकता को देखकर एक प्रश्न मेरे मन में भी कौंधा: ईश्वर न करे कभी ऐसा हो, परन्तु अगर इज़राएल जैसी स्थिति भारत में देखने को मिली, तो क्या यही एकता, राष्ट्र के प्रति ऐसा निस्स्वार्थ समर्पण हमें देखने को मिलेगा, जहाँ तनातनी को साइड रख सब राष्ट्र के लिए एकजुट हो।

इसका उत्तर हाँ भी है, और न भी। कुछ नहीं, अनुच्छेद 370 के समय देशवासियों की प्रतिक्रिया पर दृष्टि डाल लीजिये, या फिर जब उरी में हमारे जवानों पर हमला हुआ था, तो सैनिकों और भारत के साथ कितने राजनेता, बुद्धिजीवी एवं कलाकार खड़े हुए थे? कितने लोगों के लिए राष्ट्र सर्वोपरि था?

अब तनिक सोचिये, यदि कसाब न पकड़ा जाता, तो 26/11 के बारे में हमारे मन मस्तिष्क में क्या बिठाने का प्रयास कर रहे थे कुछ लोग? जैसे आज इज़राएल के नागरिकों पर हुए जघन्य हमलों को अब भी कुछ निर्लज्ज प्राणी उचित ठहरने का प्रयास कर रहे हैं, वैसे ही कई लोग ये दिखाना चाहते हैं कि ये हमला “हिन्दू आतंकवाद” का परिणाम है, और यदि तुकाराम ओम्ब्ले ने कसाब को पकड़ने के लिए अपने प्राणों को दांव पे न लगाया होता, तो इस फर्जी थ्योरी के नाम पर न जाने कितने लोगों का जीवन नष्ट किया जाता।

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आज भी कुछ ऐसे निकृष्ट जीव जंतु है, जो कारगिल के युद्ध और उसमें लड़ने वाले सैनिकों के बलिदान को बलिदान नहीं मानते हैं, और इसे एक पार्टी का निजी युद्ध कहने तक का दुस्साहस करते हैं।

विडंबना यह है कि अपने दावों के खिलाफ कई सबूतों के बावजूद, उन्होंने तुष्टिकरण की रणनीति के कारण हमास समर्थक ब्रिगेड का समर्थन करना चुना है।

निस्संदेह, हमारी विदेश नीति और सैन्य रणनीतियाँ विकसित हुई हैं, लेकिन अगर हम अपनी सीमाओं के भीतर खतरों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं तो यह परिवर्तन अपर्याप्त है। हमारी वैश्विक छवि पर लाल किले की बर्बरता और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों जैसी घटनाओं की गंभीरता को समझने के लिए आपको भू-राजनीति में पीएचडी की आवश्यकता नहीं है।

जैसा कि पूर्व सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने ठीक ही कहा है, हम 2.5 मोर्चों पर युद्ध लड़ रहे हैं। हमारे सैनिक बाहरी मोर्चों को संभालने में काफी सक्षम हैं, लेकिन आंतरिक मोर्चे के लिए हमें इजराइल की तरह एकजुट होना होगा और सतर्क रहना होगा। तभी हम उनकी वीरता की विरासत से मुकाबला करने की उम्मीद कर सकते हैं।

जैसे एक बार नाना पाटेकर ने सर्जिकल स्ट्राइक्स के बाद अपने ही बिरादरी की खबर लेते हुए कहा था, “पाकिस्तान कलाकार और बाकी सब बाद में पहले मेरा देश। देश के अलावा मैं किसी को नहीं जानता और ना ही मैं जानना चाहूंगा। कलाकार देश के सामने खटमल की तरह हैं, हमारी कोई कीमत नहीं है। हमारे असली हीरो हमारे जवान हैं। हम तो बहुत ही मामूली लोग हैं। हम जो बोलते हैं उस पर ध्यान मत दीजिए। तुम्हे समझ आ ही गया होगा कि मैं किन के बारे में बोल रहा हूं। हम जो इतनी पटर-पटर करते हैं उस पर इतना ध्यान मत दो। इतनी अहमियत मत देना किसी को। उनकी औकात नहीं है इतनी अहमियत की।”

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