या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
Sharada Peeth Puja: एक समय ऐसा भी था, जब हमें कश्मीर में अपना तिरंगा फहराने के लिए भी प्रशासन का मुंह ताकना पड़ता था। परन्तु समय भी बदला, और कश्मीर भी, और आज वह उसी विरासत के पुनरुत्थान का अनुभव कर रहा है, जिसे कई दशकों से भारत विरोधी तत्व देश से छुपाने का भरसक प्रयास थे।
कुपवाड़ा के टीथवाल में स्थित शारदा पीठ (Sharada Peeth) में इसी बात का एक भव्य उदाहरण देखने को मिला, जब 1947 के बाद प्रथमत्या यहाँ शारदीय नवरात्रि का उत्सव मनाया गया। ये केवल अनुष्ठान मात्र नहीं थे, ये कश्मीर के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रतीक हैं। ऋषि कश्यप के जिस कश्मीर की कीर्ति चहुंओर होती थी, जिस कश्मीर में आदि शंकराचार्य और विष्णु शर्मा जैसे विद्वान अपनी साधना और तप करते थे, वह कश्मीर अब अपना स्थान पुनः अर्जित करने को लालायित है!
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आज हमारी चर्चा होगी शारदा पीठ (Sharada Peeth) के नवीनीकरण, इसके सांस्कृतिक महत्त्व, और कश्मीर के सांस्कृतिक पुनर्जागरण पर, जो आने वाले समय में भारत का सांस्कृतिक मानचित्र बदलने की शक्ति रखता है!
“शारदा माई, हम आ रहे हैं!”
कश्मीर में परिवर्तन के बीज हाल ही में कश्मीर के कुपवाड़ा में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास स्थित शारदा पीठ (Sharada Peeth) में नवरात्रि पूजन के दौरान बोए गए थे। 1947 के बाद ये प्रथम अवसर है, शारदा मंदिर में शारदीय नवरात्रि का उत्सव मनाया गया।
Navratri puja was performed today at Sharda Peeth, located on the LoC in Kupwara, Kashmir, for the first time since 1947.
The ancient temple, which had been left abandoned, was reopened after renovation in March 2023 by Amit Shah ji.
That’s why the abrogation of Article 370… pic.twitter.com/fZH9ojUHik
— BALA (@erbmjha) October 16, 2023
दशकों से जीर्ण शीर्ण पड़े इस मंदिर (Sharada Peeth) को कुशलतापूर्वक जीर्णोद्धार के बाद मार्च 2023 में नया जीवन मिला। शारदा मंदिर (Sharada Peeth) का पुनरुद्धार केवल पुनर्निर्माण से कहीं बढ़कर है, ये कश्मीर के वास्तविक विरासत को उसका उचित गौरव दिलाने का दृढ संकल्प है।
It is a matter of profound spiritual significance that for the first time since 1947, the Navratri pujas have been held in the historic Sharda Temple in Kashmir this year. Earlier in the year the Chaitra Navratri Puja was observed and now the mantras of the Shardiya Navratri puja… pic.twitter.com/xWzEfagvPx
— Amit Shah (Modi Ka Parivar) (@AmitShah) October 16, 2023
Kashmir: Home minister Amit Shah's to inaugurate rebuilt Maa Sharda temple at LoC Teetwal Kashmir tomorrow.
Sharada Peeth-'the seat of Sharada' is the Kashmiri name for Goddess Saraswati. Sharada Peeth was one of the foremost ancient universities of the Indian subcontinent. pic.twitter.com/CWxt1UYpMs
— Arun Pudur (@arunpudur) March 22, 2023
शारदा पीठ, या ‘शारदा का स्थान’, देवी सरस्वती का कश्मीरी नाम है, जो हमारे प्राचीन ज्ञान केंद्रों में एक अद्वितीय स्थान रखता है। एक समय शारदा पीठ भारतीय उपमहाद्वीप में अग्रणी विश्वविद्यालयों में से एक के रूप में विद्यमान था। इसके पवित्र प्रांगणों में एक समय विद्वानों और साधकों की भीड़ हुआ करती थी, जिससे यह अध्ययन का एक प्रतिष्ठित समागम बन गया।
परन्तु ये भी जानना अति महत्वपूर्ण है कि पुनर्निर्मित मंदिर मूल शारदा मंदिर नहीं है! शारदा पीठ का मूल परिसर पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर (पीओके) की नीलम घाटी में बसता है। शारदा मंदिर का पुनरुद्धार आशा और नवीनीकरण की किरण के रूप में कार्य करता है, जो हमें हमारी गहन सांस्कृतिक विरासत का स्मरण कराता है। यह सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी हमारी परंपराओं की शक्ति और आध्यात्मिकता की स्थायी शक्ति का प्रतीक है। इस ऐतिहासिक स्थल पर नवरात्रि पूजा की वापसी हमारे राष्ट्र की स्थायी भावना और सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संरक्षण की निरंतर खोज का एक अद्वितीय प्रमाण है।
ये पथ कठिन है, पर सफलता निश्चित
जैसे ही प्रार्थनाओं और मंत्रों की गूँज से पवित्र शारदा मंदिर गुंजायमान हो रहा है, यह हमारे साझा इतिहास और उज्ज्वल भविष्य का एक मार्मिक प्रतीक है जो हमारे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के पुनर्जागरण में निहित है।
फिर भी, कश्मीर की मूल संस्कृति को पुनः प्राप्त करने की राह सरल नहीं है। अब भी ऐसे गुट हैं जो 90 के दशक के कश्मीर की वापसी के लिए तरस रहे हैं, जहाँ हिंसा और रक्तपात आम बात थी। अनुच्छेद 370 का निरस्त होना इनके आधिपत्य को प्रत्यक्ष चुनौती समान थी। परन्तु अब कश्मीर वो अलगाववाद से परिपूर्ण कश्मीर नहीं रहा! यहाँ भारत की जय भी होती है, और सनातन की कीर्ति का मार्ग भी पुनः प्रशस्त रहा है!
उदाहरण के लिए, 2021 में श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में शीतल नाथ मंदिर, जो आतंकवाद और कश्मीरी पंडितों के सामूहिक पलायन के कारण दशकों तक बंद रहा, बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर फिर से खुल गया। मंदिर के पुन: जागरण के उपलक्ष्य में भक्तों ने एक विशेष ‘पूजा’ आयोजित की।
यह एकमात्र घटना नहीं थी, कश्मीर घाटी के कई क्षेत्रों में जन्माष्टमी से लेकर महाशिवरात्रि तक की शोभा यात्राओं को उत्साह के साथ पुनर्जीवित किया गया, जिसमें सभी ने बढ़चढ़कर भाग लिया। परन्तु बात यहीं तक सीमित नहीं । एक महत्वपूर्ण कदम में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर 2020 में जम्मू और कश्मीर भाषा विधेयक 2020 को स्वीकृति दे दी। इस विधेयक ने पांच भाषाओं- हिंदी, कश्मीरी, डोगरी, अंग्रेजी और उर्दू को क्षेत्र की आधिकारिक भाषाओँ के रूप में नामित किया।
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इसके अलावा, अनेक मीडिया रिपोर्टें पर्यटन में वृद्धि का संकेत देती हैं, जो घाटी में भावी परिवर्तन का प्रत्यक्ष प्रमाण है, और ये केवल आम पर्यटन तक सीमित नहीं। 2022 के प्रथम आठ महीनों में, आश्चर्यजनक रूप से 20.5 लाख पर्यटकों ने कश्मीर का दौरा किया, जिसमें अमरनाथ जाने वाले 3.65 लाख से भी अधिक यात्री सम्मिलित थे। पहलगाम, गुलमर्ग और सोनमर्ग जैसे पर्यटक स्थलों के साथ-साथ श्रीनगर के सुरम्य स्थान, होटल और गेस्टहाउस पूरी तरह से बुक रहे और सीजन के दौरान 100 प्रतिशत ऑक्युपेंसी दर्ज की गई।
ऋषि कश्यप का कश्मीर जाग रहा है, और इसकी जागृति एक उज्जवल, अधिक सामंजस्यपूर्ण भविष्य का वचन देती है। जैसे-जैसे यह पुनर्जीवित होता है, यह उस परिवर्तन को परिलक्षित करती है, जो भारत के कोने कोने में पहुँचने की शक्ति रहती है। कश्मीर का सांस्कृतिक ह्रदय एक बार फिर धड़क रहा है और पूरा देश इस परिवर्तन का गौरवशाली भाग बनेगा।
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