नितेश तिवारी के लिए रामायण किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं!

ये राह नहीं आसान!

जिन धागों से पिरोई गई है सनातन संस्कृति, उसी का एक अभिन्न अंग है रामायण!
भारत का पर्याय है रामायण,
असत्य पर सत्य की विजय का प्रमाण है रामायण,
प्रेम की अद्वितीय शक्ति का उत्सव है रामायण!

ऐसे महाकाव्य के सार को समझना ही नंगे पैर पहाड़ चढ़ने सामान कठिन है, इसका रूपांतरण तो बहुत दूर की बात रही। कुछ माह पूर्व जो ओम राउत ने “आदिपुरुष” के माध्यम से किया, वह था रामायण की पवित्रता पर लांछन लगाना, जिसके पीछे अब इस महाकाव्य से जुड़े हर प्रोजेक्ट पर जनता की दृष्टि काफी तीव्र और संदेह से परिपूर्ण है, क्योंकि दूध का जला भी छाछ फूँक फूँककर पीता है! रामायण सिर्फ एक कथा नहीं है बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक जड़ों में गहराई से अंतर्निहित एक पवित्र कथा है। कोई भी अनुकूलन अपनी पवित्रता को बनाए रखने और मूल के सार के साथ प्रतिध्वनित होने वाला प्रतिनिधित्व प्रदान करने की जिम्मेदारी वहन करता है।

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ऐसे में जब नितेश तिवारी ने इस राह पर चलने का साहस किया है, तो निस्संदेह ये २ और २ का उत्तर निकालने जितना सरल तो बिलकुल न होगा। उपहास उड़ेगा, संदेह के बादल विद्यमान होंगे, प्रश्न उठेंगे, और सबसे महत्वपूर्ण, इस प्रोजेक्ट से जुड़ने वाले हर कलाकार की दिन रात परीक्षा होगी, चाहे अभिनय को लेकर हो, या फिर चरित्र की।

तो बंधुओं, क्या नितेश तिवारी एक ऐसी प्रस्तुति बना पाएंगे जो अपनी छाप छोड़ेगी, या क्या यह व्यावसायिकता के प्रलोभन के समक्ष घुटने टेक देगी? आइये, इसी पर आज चर्चा करते हैं!

अग्निपरीक्षा से कम नहीं ये फिल्म

हृषिकेश मुखर्जी स्टाइल फिल्में देने के लिए प्रसिद्ध निर्देशक नितेश तिवारी ने सिल्वर स्क्रीन के लिए रामायण को पुनः रूपांतरित करने का बीड़ा उठाया है। उनकी फिल्मोग्राफी में “चिल्लर पार्टी,” “भूतनाथ रिटर्न्स,” “दंगल,” और “छिछोरे” जैसे रत्न शामिल हैं, जिन्होंने दर्शकों के दिलों में जगह बना ली है। परन्तु “आदिपुरुष” ने रामायण के रूपांतरण के नाम पर जो कबाड़ दिखाया, उसने नितेश की इस भव्य परियोजना के साथ न्याय करने की क्षमता पर संदेह की छाया डाल दी है। कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि लोग इस प्रोजेक्ट की ओर आशा कम, संदेह की दृष्टि से अधिक देख रहे!

इसके अतिरिक्त नितेश की पिछली फिल्म “बवाल” ने भी कोई ख़ास प्रदर्शन नहीं किया, उलटे इस फिल्म के ट्रीटमेंट ने जनता के संदेह को और अधिक प्रबल कर दिया। इसमें कोई शक नहीं कि रामायण को दोबारा बनाना नितेश तिवारी और उनकी टीम के लिए अग्निपरीक्षा समान है।

फिर भी, इस समय नितेश तिवारी के लिए कुछ बातें उनके पक्ष में है! प्रथम, “आदिपुरुष” के बाद जनता की आशाएं ऐसे प्रोजेक्ट्स को लेकर निम्नतम है। ऐसे में उनके पास खोने के लिए कम, पाने के लिए अधिक है। दूसरा, ये फिल्म तीन भागों में बनेगी, अर्थात गागर में सागर भरने जैसा दबाव नहीं होगा।

एक उल्लेखनीय पहलू जो परियोजना को आशा देता है वह है भव्य दृश्यों के बजाय सामग्री पर जोर देना। फिल्म के विजुअल आउट ऑफ़ द वर्ल्ड हो न हो, कॉन्टेंट दमदार होना चाहिए, जिससे उस महाकाव्य के सार को संरक्षित किया जा सके जिसे पीढ़ियां पूजती रही हैं।

इसके अतिरिक्त फिल्म का निर्माण एक संयुक्त प्रयास होगा, जिसमें नितेश तिवारी, मधु मंटेना और यहाँ तक कि अल्लू अरविंद भी सम्मिलित होंगे । अल्लू अर्जुन के पिता होने के अलावा निर्माता अल्लू अरविन्द के पास कई उद्योगों में काम करने और आवश्यकता अनुसार उचित कंटेंट देने का विशाल अनुभव है, और ऐसे में वे चाहकर भी भूषण कुमार वाली गलतियां नहीं दोहरा सकते।

क्या असंभव को संभव कर सकते हैं नितेश तिवारी?

जितने महत्वपूर्ण फिल्म के लिए निर्देशक और लेखक, उतने ही महत्वपूर्ण ऐसी फिल्मों के लिए कलाकारों का उचित चयन भी है! जब नितेश तिवारी की रामायण जैसी महत्वपूर्ण परियोजना की बात आती है, तो सही भूमिकाओं के लिए सही लोगों का चयन सर्वोपरि हो जाता है। कास्टिंग विकल्पों की इस परीक्षा में, हम उन संभावनाओं, खतरों और आश्चर्यों का पता लगाते हैं जो सिल्वर स्क्रीन पर हमारा इंतजार कर रहे हैं।

आइए श्री राम की प्रतिष्ठित भूमिका के लिए रणबीर कपूर की पसंद से शुरुआत करें। दर्शकों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है और यह अकारण नहीं है। रणबीर कपूर का ऑफ-स्क्रीन व्यक्तित्व विवादों से घिरा रहा है, और श्री राम के श्रद्धेय चरित्र को चित्रित करना शुरू में सबसे उपयुक्त विकल्प नहीं लग सकता है। हालाँकि, रणबीर कपूर ने अपनी कला के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है जो उनकी सार्वजनिक छवि से परे है।

भाई-भतीजावाद के कुछ उत्पादों के विपरीत, जो पूरी तरह से अपने वंश पर भरोसा करते हैं, रणबीर अपने अभिनय कौशल से इसकी भरपाई करने का प्रयास करते हैं। हालाँकि वह सही विकल्प नहीं हो सकता है, लेकिन उसमें सही विकल्प के रूप में विकसित होने की क्षमता है।

यदि शुद्धतावादी मानकों को शब्दशः लागू किया जाता, तो अरुण गोविल को भी रामानंद सागर के प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया गया होता, क्योंकि, अपने स्वयं के स्वीकारोक्ति के अनुसार, रामानंद सागर के “रामायण” की पवित्र दुनिया में प्रवेश करने से पहले वह एक चेनस्मोकर थे! वैसे भी, ट्रांसफॉर्मेशन भी कोई वस्तु होती है!

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देवी सीता के रूप में साई पल्लवी और रावण के रूप में रॉकिंग स्टार यश के नाम से मशहूर नवीन कुमार गौड़ा की कास्टिंग पर आगे बढ़ते हुए, हमें विकल्प दिलचस्प लगते हैं। हालाँकि वे कल्पना की गई छवि के साथ पूरी तरह से संरेखित नहीं हो सकते हैं, लेकिन उनकी स्क्रीन उपस्थिति और प्रदर्शन किसी भी असमानता को पूरा कर सकते हैं। विशेष रूप से, यश में रावण के रूप में सही मात्रा में भय और क्रोध के सृजन की क्षमता है, बशर्ते इनके पास एक शक्तिशाली स्क्रिप्ट हो।

हालाँकि, इस परियोजना के लिए गेम-चेंजिंग क्षण हनुमान की कास्टिंग हो सकती है। अब आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की गई है, परन्तु बॉलीवुड हंगामा और पिंकविला सहित विभिन्न स्रोतों ने बताया है कि पवनपुत्र हनुमान की शक्तिशाली भूमिका के लिए सनी देओल से संपर्क किया गया है। रिपोर्टों से पता चलता है कि नितेश तिवारी का लक्ष्य एक स्टैंडअलोन फिल्म के माध्यम से हनुमान के जीवन के विभिन्न पहलुओं का पता लगाना है। इस परियोजना में सनी देओल की संभावित भागीदारी एक ऐसी संभावना है जिसने काफी दिलचस्पी जगाई है।

अपनी बेजोड़ तीव्रता और शालीनता के लिए जाने जाने वाले सनी देओल चरित्र में एक महान आयाम ला सकते हैं। यदि यह कास्टिंग निर्णय सफल होता है, तो यह नितेश तिवारी की रामायण के लिए एक निर्णायक क्षण हो सकता है, ठीक उसी तरह जैसे दारा सिंह रंधावा का चयन श्री रामानंद सागर के प्रतिष्ठित टेलीविजन रूपांतरण के लिए था। सनी देओल में, एक ऐसे कलाकार का वादा है जो भूमिका को उस गंभीरता से भर सकता है जिसका वह हकदार है।

रामायण के लिए कास्टिंग विकल्पों से क्षमता, अपरंपरागतता और नई जमीन तोड़ने की क्षमता का मिश्रण पता चलता है। जैसे-जैसे परियोजना आगे बढ़ती है, यह देखना बाकी है कि प्रत्येक अभिनेता अपने चरित्र में कैसे जान फूंकता है और क्या वे प्रारंभिक संदेहों को पार कर एक ऐसा रूपांतरण दे सकते हैं जो कालातीत महाकाव्य का सम्मान करता हो।

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