तमिलनाडु की राजनीति गठबंधनों का एक मायाजाल है. कांग्रेस और द्रमुक का गठजोड़ है और भाजपा और अन्नाद्रमुक का गठजोड़ था लेकिन कुछ हफ्ते पहले अन्नाद्रमुक प्रवक्ता डी जयकुमार ने स्पष्ट कर दिया कि वर्तमान में उनकी पार्टी का भाजपा के साथ कोई औपचारिक गठबंधन नहीं है। इस वक्तव्य के पीछे के मुख्य कारण और कोई नहीं बल्कि भाजपा के तमिलनाडु प्रमुख अन्नामलाई ही थे, जिन्होंने चुन चुन कर अन्नाद्रमुक के हर दिग्गज नेता की पोल पट्टी खोल डाली थी. इस अपमान को अन्नाद्रमुक बर्दाश्त नहीं कर पायी और भाजपा को तलाक दे दिया.
वैसे भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आगामी चुनावों में लोकसभा सीटों की बड़ी हिस्सेदारी की मांग की थी, उन्होंने तमिलनाडु में भाजपा का प्रभाव बढ़ाने के संकल्प की भी घोषणा कर दी थी- पांच से पंद्रह तक की छलांग। यह स्ट्रेटेजी भाजपा ने अन्य राज्यों में भी इस्तेमाल किया था जहां भाजपा ने धीरे-धीरे अपना पैर बढ़ाया था।
अन्नामलाई की आक्रामकता स्पष्ट थी, और बिना किसी लाग लपेट की थी. उन्होंने अन्नाद्रमुक आइकन सीएन अन्नादुराई द्वारा हिंदू आस्था की आलोचना के बारे में जनता को बताया, जिससे अन्नाद्रमुक के प्रमुख पलानीस्वामी सहित शीर्ष नेतृत्व सकते में आ गयी. अन्नाद्रमुक के बड़े धड़े का यह मानना था कि भाजपा के साथ गठजोड़ से पार्टी अपनी द्रविड़ जडें खो देगी और इसका सीधा फायदा उनके चिर प्रतिद्वंद्वी डीएमके को मिलेगा।
अन्नाद्रमुक की एक और परेशानी थी और वह थी भाजपा की दीर्घकालिक रणनीति जिसका लक्ष्य तत्काल चुनावों से परे, 2026 तक बड़ी संख्या में विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ना है।
और तब वही हुआ जो अन्नामलाई चाहते थे. अन्नाद्रमुक से गठतोड़.
पर प्रश्न वही है, अन्नामलाई आखिर हैं कौन जो अचानक से तमिल नाडू में भाजपा का चेहरा बन गए.
अन्नामलाई एक स्वनिर्मित नेता हैं। वह एक किसान परिवार से आते हैं और उनका उदय किसी प्रेरणा से कम नहीं है। वह भ्रष्टाचार और वंशवाद के खिलाफ एक मुखर आवाज हैं। उन्होंने तमिलनाडु में हिंदुत्व के मुद्दे को उठाया है और हिंदू मठों का समर्थन किया है।
“कर्नाटक का शेर” कहे जाने वाले इस व्यक्ति ने पहली बार 2011 में भारतीय पुलिस सेवा की खाकी वर्दी पहनी थी. उनकी कथा उडुपी जिले के कार्कला उप-मंडल में प्रारंभ होती है, सितंबर 2013 में उन्होंने एक सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में एक ऐसी यात्रा शुरू की जिसने अंततः भारतीय कानून प्रवर्तन के इतिहास में अपना नाम दर्ज करा दिया।
उनके कार्यकाल में उन्हें पुलिस अधीक्षक के पद पर पदोन्नत किया गया, जो कि वीरतापूर्ण कार्यों और हृदयविदारक चुनौतियों से भरा था। उनका सबसे बड़ा धर्मयुद्ध एक 17 वर्षीय छात्रा के साथ हुई जघन्य अत्याचार के खिलाफ था – बलात्कार, हत्या और हमले का एक मामला जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस त्रासदी के बाद, अन्नामलाई ने न केवल मामले को सुलझाया बल्कि आशा की एक नई किरण जलाई, उन्होंने बालिका शिक्षा के लिए समर्पित एक गैर-सरकारी संगठन की स्थापना की, और अपने क्षोभ और क्रोध को न्याय के लिए एक अथक युद्ध में बदल दिया।
उनका प्रभाव इतना व्यापक था कि जब उन्हें पहले उडुपी और फिर चिकमंगलूर से स्थानांतरित करने का प्रयास किया गया, तो लोग, सड़कों पर उतर आए. उनपर निरंतर बरसने वाले पदक और सम्मान केवल कार्यकुशलता के प्रतीक नहीं थे, बल्कि एक ऐसे करियर के प्रमाण थे, जिसमें कई दुस्साहसी ऑपरेशन शामिल थे, जैसे कि बन्नाजे राजा की गिरफ्तारी – एक कुख्यात भगोड़ा जो मोरक्को में छिपा हुआ था।
अन्नामलाई का कार्यकाल अधर्म और अराजकता के खिलाफ एक धर्मयुद्ध था। बाबा बुदंगिरी दंगों के हंगामे के समय, अन्नामलाई यमराज की तरह भीड़ पर टूट पड़े थे. उनकी ईमानदारी और बहादुरी अनदेखी नहीं रही, उनकी मिसाले दी जाने लगी. नशीले पदार्थों और तंबाकू के खिलाफ उनके जोरदार अभियान भी जनता को बहुत पसंद आये. जब उन्होंने एक TED वक्ता के रूप में मंच संभाला, तो उनके शब्द सभागारों की सीमाओं से परे गूंज उठे।
फिर भी, 2019 में, अन्नामलाई ने अपना बैज सरेंडर कर दिया, अधिकारी से लेकर जनता सब सकते में आ गयी। पुनः तमिलनाडु के प्रेमपूर्ण गोद में बैठकर, उन्होंने जैविक खेती करना प्रारंभ किया। अन्नामलाई के पुलिस की नौकरी छोड़ने और समाजसेवा के लिए स्वयं को तैयार करने में भगवान शंकर का भी योगदान था. भगवान शंकर के सुरम्य निवास स्थान कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा के पश्चात, अन्नामलाई ने एक गहन आत्मनिरीक्षण किया और सरकारी नौकरी त्याग दी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से आकर्षित होकर, अन्नामलाई प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिले, जहां उन्होंने आरएसएस के सिद्धांतों के प्रति अटूट आकर्षण और जीवन में एक नया रास्ता बनाने की तीव्र इच्छा व्यक्त की। भाजपा में उनका शामिल होना केवल एक औपचारिकता नहीं थी – यह एक राजनीतिक कायापलट की तैयारी थी।
तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद, अन्नामलाई अपने साथ एक वृहत बदलाव लेकर आए। तमिलनाडु में, जहां द्रविड़ विचारधारा की बर्फ लम्बे समय से जमी हुई थी, अन्नामलाई का प्रभाव हिंदुत्व की अग्नि की तरह था, जो दशकों से स्थिर आधार को जीवित कर रहा था। उनकी अध्यक्षता में पार्टी ने वोट शेयर की नई ऊंचाइयों को छुआ, जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी और जो बीजेपी को तीस साल तक नहीं मिल पाई थी।
अन्नामलाई की व्यक्तिगत चमक और रणनीतिक कौशल ने तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में जया-करुणा के बाद की अवधि में दिशाहीन प्रतीत होने वाली भाजपा को एक चेहरा और दिशा प्रदान की। उन्होंने एक ऐसी छवि बनाई, जिसके कारण प्रदेश के युवा खिंचे चले आये.
अन्नामलाई एक स्वयं निर्मित लीजेंड है, एक किसान के बेटे का तमिलनाडु के राजनीतिक क्षेत्र पर इतना प्रभाव डालना प्रदेश की वंशवादी रीतियों के सर्वथा विपरीत है. जिस प्रकार अन्नामलाई ने सत्ताधारी द्रमुक के शीर्ष नेताओं को भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों से रौंद डाला, कई लोगों को जयललिता की बरबस याद आ गयी।
अन्नामलाई की रणनीति ने तमिलनाडु के सुसुप्त पड़े हिन्दू हृदय को पुनः सक्रिय कर दिया है, हिंदू मठों को पुनः उनकी ध्वनि मिली है. मंदिर प्रशासन में हस्तक्षेप के खिलाफ विरोध हो रहे हैं, पहली बार राज्य में हिंदू चेतना की लपटें धधक रही है।
अन्नामलाई पर न किसी घोटाले का आरोप है न किसी भ्रष्टाचार की शंका. उन्होंने तमिलनाडु में भाजपा को अचानक से खड़ा कर दिया है, न केवल डीएमके के प्राथमिक विपक्ष के रूप में, बल्कि एक उभरती शक्ति के रूप में जो अपने पाँव जमा रही है, राजनीतिक एजेंडा सेट कर रही है, और बरबस लोगों को 2012-13 के नरेन्द्र मोदी के उदय की याद भी दिला रही है।
भाजपा को अन्नामलाई में अपना चैंपियन मिला है – एक ऐसा व्यक्ति जो न केवल राजनीतिक लड़ाई में भाग ले रहा है, बल्कि अपनी दृष्टि और अपनी इच्छा के साथ इस युद्ध को पूरी तरह से बदल रहा है। उनके समर्थन का ज्वार तमिल राजनीति में एक बदलाव ला रहा है – एक पुनर्परिभाषित कथा, एक पुनर्कल्पित भविष्य। एक नया तमिलनाडु. रामनाथस्वामी का तमिलनाडु. बृहदेश्वर का तमिल नाडू. हिन्दुओं का तमिलनाडु.